REWA : अमहिया कांग्रेस के चिराग की पीठ पर अपनों ने ही घोपा खंजर, मजबूरी में कांग्रेस को कहा अलविदा

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा। कहते हैं कि राजनीति में सब कुछ संभव है और जायज भी। जो जिसे राजनीति में आगे बढ़ाता है वह व्यक्ति कुछ पा जाने के बाद सबसे पहले उसे ही बर्बाद करता है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नैतिक राजनीति का पतन बहुतायत में देखा जा रहा है, राजनीति में नैतिकता बची नहीं और इतिहास सदैव अपने को दोहराता भी है। जो जैसा बोता है वो वैसा पाता भी है।

रीवा की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। जिस तिवारी परिवार और अमहिया के नाम से रीवा और विंध्य में कांग्रेस जानी जाती रही। वह तिवारी परिवार और अमहिया धीरे धीरे कर कांग्रेस को अलविदा कह अब भाजपाई हो चुका है। जानकर बताते हैं कि यह पूरा घटनाक्रम एक दिन का नहीं है, इसमें वह सभी शामिल हैं जो कभी तिवारी परिवार के अत्यंत करीबी रहे और तिवारी परिवार की कृपा से फूले फले।

पिछले दिनों स्व. श्रीनिवास तिवारी के पौत्र और इकलौते राजनीतिक वारिश सिद्धार्थ तिवारी राज कांग्रेस को अलविदा कर भोपाल में बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बी डी शर्मा और शिवराज सिंह चौहान के हांथो भाजपा में शामिल हो गए। इनके बीजेपी में शामिल होने की कहानी को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा और वह पूरा घटनाक्रम समझना होगा जिस कारण यह कांग्रेसी से भाजपाई हो गए। श्रीनिवास तिवारी और सुंदरलाल तिवारी के निधन के बाद हुए 2018 के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में सिद्धार्थ तिवारी पर कांग्रेस ने भरोसा जताया लेकिन सिद्धार्थ दोनों चुनाव हार गए। 2018 विधानसभा चुनाव में हालात ये हुए की कांग्रेस रीवा जिले के आठों विधानसभा सीट हार गई। इस हार के अनेकों कारण हैं। टिकट वितरण से लेकर तमाम। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, 15 माह चली पुनः बीजेपी ने सरकार बनाई।

बीजेपी में जिन्होंने रीवा जिले की आठों सीट पर जीत दिलाई सरकार में वे शामिल नहीं हो पाए। इन सब के बाद निकाय चुनाव का बिगुल बजा और सभी कांग्रेसी एकजुट होकर अजय मिश्रा बाबा को महापौर का टिकट दिलाया। इस चुनाव में रीवा जिले में कांग्रेस का खाता खुला और अजय मिश्रा बाबा महापौर का चुनाव जीत गए। इनकी जीत के पीछे कांग्रेस की एकजुटता, बीजेपी में फूट और बीजेपी के बड़े नेता का अंदरूनी सहयोग रहा। इस जीत के बाद से कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व को तिवारी परिवार से भरोसा उठ गया और इस भरोसे को और अधिक बल दिया रीवा महापौर अजय मिश्रा बाबा और लगातार चुनाव हार चुके राजेन्द्र शर्मा ने। प्रदेश नेतृत्व इनकी बातों, झांसों और फर्जी सर्वे रिपोर्ट के आधार पर इस चुनाव के कुछ महीने पहले कांग्रेस के संगठन में बदलाव किया और राजेंद्र शर्मा को जिला कांग्रेस कमेटी ग्रामीण  का अध्यक्ष बना दिया। चुनाव आते आते तिवारी परिवार की टिकट से आस टूट गई और वो कांग्रेस को अलविदा कर भाजपाई हो गए।

बड़ा ब्राम्हण नेता बनने की होड़

तिवारी परिवार और अमहिया से राजनीति का ककहरा सीखने वाले अजय मिश्रा बाबा और राजेंद्र शर्मा रीवा जिले में बड़ा ब्राम्हण नेता बनने की जुगत में हैं। प्रदेश नेतृत्व को बरगलाया और हालात ये हैं कि वर्तमान कांग्रेसी जिन पर प्रदेश नेतृत्व को भरोसा है वो एक तरफ और जिन पर जनता को भरोसा है वो एक तरफ हो चुके हैं और कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं। अब वर्तमान कांग्रेसियों के हालात भी समझ लीजिए सबसे पहले जिला कांग्रेस कमेटी ग्रामीण के अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा के बारे में- लगातार दो चुनाव हार चुके हैं इस बार जमानत जब्त होने के कगार पर हैं। टिकट मिलने का कारण जो भोपाल में चर्चा में है रीवा मेयर अजय मिश्रा बाबा के करीबी हैं। अब ये किसके करीबी हैं वो तो आने वाला वक्त बतायेगा।

अब जिनके करीबी हैं उनके हालात समझिए अजय मिश्रा बाबा रीवा महापौर। तिवारी और अमहिया परिवार से जुड़े। स्व. सुंदरलाल तिवारी ने पार्षद का टिकट दिलवाया चुनाव जितवाया और नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष बनाया। प्रदेश के बड़े नेताओं से पहचान कराई। महापौर के टिकट में तिवारी परिवार ने सहयोग किया। कांग्रेस एकजुट होकर इन्हें महापौर बनाया क्योंकि इस तिवारी परिवार और अमहिया परिवार से रीवा के 80 फीसदी लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हैं। इनकी जीत सुनिश्चित कराई। जानकर बताते हैं कि जीत के बाद इन्होंने नेतृत्व को झांसे में लेकर तिवारी परिवार का ही गढ्ढा अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए खोदना चालू किया यह क्यों, इसलिए कि बड़ा ब्राम्हण नेता बनना है। अब यह तो समय और रीवा की जनता बतलायेगी की ब्राम्हणों का नेता कौन?

स्वार्थ न होता तो पहला इस्तीफा महापौर का होता

राजनीतिक स्वार्थ और बड़ा नेता बनने की चाह न होती तो पहला इस्तीफा अजय मिश्रा बाबा का होता और दूसरा राजेन्द्र शर्मा का। खैर सभी का अपना राजनीतिक भविष्य है और सोच भी। राजनीति करने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपना भला देखता है और समय के अनुसार बदल जाता है। यह अलग बात है कि समय ही साथ न दे।

जैसे को तैसा

राजनीति के शीर्ष व चरम पर जब स्व.श्रीनिवास तिवारी पहुंच चुके थे तब उन्होंने भी कांग्रेसियों को ऐसे ही किनारे लगाया था। उन्हीं के बदौलत राजेंद्र शुक्ल 1998 में ही कांग्रेस को अलविदा कह चुके थे तो वहीं दूसरा स्व.अच्युतानंद मिश्र के परिवार की राजनीति को खत्म किया। उन्होंने कांग्रेस तो नहीं छोड़ी लेकिन राजनीति में कांग्रेस 2003 के बाद रीवा में कभी नहीं पनप पाई। 2023 में भी शायद ऐसा ही कुछ हो रहा है लेकिन इस बार इसका केंद्र प्रदेश नेतृत्व है और उसको प्रेरित करने वाले वे लोग जिन्होंने राजनीति का ककहरा अमहिया से ही सीखा और आर्थिक रूप से भी वहीं से मजबूत हुए।

अब अंतिम चरण में

रीवा की वर्तमान राजनीति की बात हो और अभय मिश्रा की एंट्री उसमें न हो तो यह विषय पूरा नहीं होता। तो अंत में अभय मिश्रा को भी थोड़ा से पढ़ ही लेते हैं। वर्षों पहले कांग्रेसी वहाँ से दुनिया का वह सारा गलत काम कर सम्पति बनाई फिर बीजेपी से राजनीति की शुरुआत। 2008 में विधायक खैर उनका राजनीतिक सफर आप तो जानते ही होंगे। आगे आपको बतायें तो साफ छवि वाले राजेन्द्र शुक्ल को टक्कर देने 2018 में कांग्रेसी होकर रीवा से चुनाव लड़े। लंबा झटका लगा तो शराब कारोबारी बन पूरे रीवा को नशे में डुबोकर पैसा कमाया। आगे बढ़े तो पता चला कि रीवा में दाल नहीं गलेगी तो सेमरिया कि ओर भाग दिए। कुछ दिन बाद पता चला कि टिकट न मिलेगा तो पुनः बीजेपी में चले गए। बीजेपी ज्वाइन किये।

भोपाल में मीडिया से चर्चा

कहा कि किसी पद और टिकट के लिए बीजेपी में नहीं आये हैं। अपने परिवार में आये हैं। 2 महीने में ही चुनाव नजदीक आते आते पता चला कि बीजेपी टिकट नहीं देगी तो पुनः कांग्रेस में आ गए। सूत्र बताते हैं कि यह जो कांग्रेस से टिकट मिली है वे प्रदेश के बड़े नेता और संगठन की जिम्मेदारी लेकर बाहर से आये नेता के घंटो चरण पकड़ने और रीवा जिले की अन्य विधानसभा में भी कांग्रेस को आर्थिक मदद करने से मिली है।

हालांकि टिकट तो कांग्रेस से मिली है लेकिन इस बहुरूपिया आदमी का चेहरा एक बार पुनः जनता के सामने आ गया। इनके बारे में एक बात और जान लीजिए ये ऐसे व्यक्ति हैं कि सारे गलत काम खुद करो और गाली किसी और को दो। पहले साफ स्वच्छ छवि वाले राजेन्द्र शुक्ल की छवि खराब करने की कोशिश की गई और जब वहाँ दाल नहीं गली तो रूख सेमरिया की ओर कर लिया।

कुछ समय पहले एक ऐसे यूट्यूबर को अपने साथ लाये जो कि इन्हीं की भांति है कि खुद लाखों गंदे कामों का रिकॉर्ड उसके नाम है और अन्य लोगों को वह सर्टिफिकेट देते घूमता है। उस व्यक्ति की मदद से सेमरिया के वर्तमान विधायक के पी त्रिपाठी की छवि धूमिल करने का भरसक प्रयास किया। लेकिन जनता सब जानती है कौन अच्छा और कौन बुरा। कांग्रेस से अभय मिश्र को टिकट मिलने के बाद पूरे कांग्रेसी संगठन ने इस्तीफे की पेशकश कर दी है। अब हालात तो ये हैं कि इस चुनाव के बाद पूरी जिंदगी कुछ लोगों को चुनाव सपने तक में भी नहीं आएगा और यदि आ गया तो ये हार्ट अटैक का शिकार भी हो सकते हैं।

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