रीवा में नशा माफिया का राज: UP से आता है कफ सिरप, पुलिस की मिलीभगत से महिलाएं चला रही हैं नेटवर्क

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश का रीवा शहर, जो अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है, आज एक गंभीर सामाजिक बुराई की चपेट में है। यह बुराई है नशे की। यहां नशे के लिए इस्तेमाल होने वाले कफ सिरप का काला कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है। यह कारोबार इतना संगठित है कि इसका एक पूरा नेटवर्क काम कर रहा है, जिसमें उत्तर प्रदेश से आने वाली सप्लाई चेन से लेकर स्थानीय तस्कर और यहां तक कि पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। यह कोई सामान्य अपराध नहीं, बल्कि एक ऐसा जाल है जो युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले रहा है और समाज की नींव को कमजोर कर रहा है।
इस पड़ताल में सामने आया है कि प्रतिबंधित कोडीन फॉस्फेट युक्त कफ सिरप, जो सिर्फ मेडिकल स्टोर पर डॉक्टर की पर्ची के साथ मिलना चाहिए, वह रीवा और आसपास के छह जिलों में खुलेआम ठेलों पर बिक रहा है। सवाल यह उठता है कि आखिर यह नशीली खेप आती कहां से है और क्यों पुलिस इस पर लगाम नहीं लगा पा रही है? इस सवाल का जवाब खोजने के लिए जब गहराई से पड़ताल की गई, तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। यह पूरा कारोबार एक सोची-समझी रणनीति के तहत चलाया जा रहा है, जिसमें हर कड़ी की भूमिका तय है।
यह सिर्फ रीवा की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक बड़े खतरे का संकेत है जो हमारे समाज में चुपचाप अपनी जड़ें जमा रहा है। जब नशे का कारोबार इतना खुला हो जाए और इसमें कानून के रखवाले ही शामिल हो जाएं, तो समाज का भविष्य खतरे में पड़ जाता है। इस रिपोर्ट में हम इस पूरे नेटवर्क की परतें खोलेंगे, जिसमें तस्करों से मिली जानकारी, मौके पर की गई पड़ताल और पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवालों का विश्लेषण शामिल है।
कफ सिरप की तस्करी कौन कर रहा है: नशे के इस नेटवर्क में कौन शामिल है?
नशे के इस काले कारोबार को समझने के लिए जब एक तस्कर संजू केवट से संपर्क किया गया, तो उसने कुछ हैरान करने वाले राज खोले। संजू ने बताया कि इस पूरे धंधे को चलाने में महिलाएं और लड़कियां प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। रीवा में माल की सप्लाई यूपी के बनारस से होती है। एक गाड़ी में 15 से 20 पेटियां भरी होती हैं, जिन्हें तड़के सुबह 4 से 7 बजे के बीच रीवा लाया जाता है। यह समय इसलिए चुना जाता है ताकि पुलिस की नजर से बचा जा सके, हालांकि हकीकत कुछ और ही है।
संजू ने बताया कि सप्लाई के लिए एक निश्चित जगह तय है - कबाड़ी मोहल्ले की पुलिया के नीचे। यहां जब गाड़ी पहुंचती है, तो दो लड़कियां मौजूद होती हैं। एक लड़की माल उतारती है और दूसरी पैसे का लेन-देन संभालती है। यह पूरा काम मिनटों में हो जाता है।
तस्कर के मुताबिक, "दो मिनट भी नहीं लगता। 20 पेटी उतारने में कितना समय लगता है? अगले 3 मिनट में तो गाड़ी चौराहे पर खड़ी होती है।" इस तेजी से काम करने की वजह यह है कि पुलिस की नज़र से बचना होता है, लेकिन सबसे चौंकाने वाला खुलासा पुलिस की भूमिका को लेकर हुआ।
संजू ने यह भी बताया कि इस धंधे में पैसा बहुत है। उसने एक स्थानीय लड़की, निधि, का उदाहरण दिया, जिसने एक साल में करीब 1 करोड़ रुपये कमाए हैं। यह आंकड़ा बताता है कि यह सिर्फ छोटे-मोटे तस्करों का काम नहीं, बल्कि एक बहुत बड़ा और लाभदायक नेटवर्क है जो समाज को खोखला कर रहा है।
नशे का कारोबार कैसे चलता है: यूपी से रीवा तक कैसे पहुंचती है नशे की खेप?
तस्कर संजू केवट से मिली जानकारी को पुख्ता करने के लिए हमारी टीम ने तीन रातों तक प्रयागराज से रीवा हाईवे रूट की रैकी की। इस पड़ताल में यह सामने आया कि रीवा तक अवैध कफ सिरप पहुंचने के दो मुख्य रास्ते हैं। पहला, हाईवे को छोड़कर कच्चे रास्तों से होते हुए बायपास तक पहुंचना। दूसरा, सतना, सीधी और सिंगरौली से होते हुए बायपास से रीवा शहर में प्रवेश करना।
23 जुलाई को जब टीम यूपी से आने वाले हाईवे पर नज़र रख रही थी, तो एक बिना नंबर की बोलेरो गाड़ी दिखी, जिसके पीछे पेटियां रखी हुई थीं। हमारी टीम ने जब उसका पीछा किया, तो वह हाईवे छोड़कर एक कच्चे रास्ते पर चली गई। ड्राइवर ने बताया कि रीवा से लगभग 15 किलोमीटर दूर हाईवे पर चार अलग-अलग रास्ते निकलते हैं, जो शहर में कच्चे रास्तों से दाखिल होते हैं। ये रास्ते हैं- बनकुईया रोड, बीड़ा-सेमरिया रोड, जेपी रोड और कराहिया रोड। इन रास्तों पर पुलिस की गश्त नहीं होती, जिसका फायदा तस्कर उठाते हैं।
जब सुबह 4 से 7 बजे के बीच माल शहर में पहुंच जाता है, तो फिर छोटे-छोटे तस्कर बाइक से सप्लाई लेने आते हैं। एक सीसीटीवी फुटेज में भी यह देखा गया कि बाइक सवार दो युवक एक बोरा ले जा रहे हैं, जिसे वे एक लड़की को सौंपते हैं। यह दिखाता है कि यह कारोबार कितना व्यवस्थित है। तस्कर ज्यादा माल इकट्ठा नहीं करते, ताकि अगर पुलिस छापा मारे तो ज्यादा माल न पकड़ा जाए।
पुलिस क्यों कार्रवाई नहीं करती है: क्या रीवा पुलिस की मिलीभगत है?
इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका सबसे ज्यादा संदेह के घेरे में है। तस्कर ने साफ तौर पर कहा कि "पुलिस के बगैर कुछ होता है क्या? पुलिस डेली का पैसा ले जाती है, इसलिए कार्रवाई नहीं करती।" उसने कुछ पुलिसकर्मियों के नाम भी बताए जो इस धंधे में पूरी तरह से शामिल हैं। इस दावे को पुख्ता करने के लिए जब कबाड़ी मोहल्ले में पड़ताल की गई, तो चौंकाने वाले दृश्य सामने आए।
रिपोर्टर: इस टाइम पर क्या पुलिस नहीं होती?
तस्कर: पुलिसवाले ही एंट्री कराते हैं। दो-चार तो पूरी तरह मिले हुए हैं। जितेंद्र नाम के आरक्षक का तो पूरा मामला सेट है। भले ही उसका ट्रांसफर गढ़ थाने में हो गया हो, लेकिन अभी भी पूरी तरह इन्वॉल्व है। सुबह 4 बजे आता है, एंट्री कराकर 1 घंटे में वापस चला जाता है। चौरहटा थाने का कॉन्स्टेबल शिवाजीत भी है। पुलिस पहले चक्कर काटकर देख लेती है कि आसपास कोई है तो नहीं, फिर गाड़ी लाने का मैसेज कर देते हैं।
रिपोर्टर: कितने समय में गाड़ी खाली हो जाती है?
तस्कर: दो मिनट भी नहीं लगता। 20 पेटी उतारने में कितना समय लगता है? अगले 3 मिनट में तो गाड़ी चौराहे पर खड़ी होती है। 10 पेटी माल तो गांव में उतार दिया जाता है। आजकल गांव में भी 10-10 पेटी के ग्राहक बन गए हैं। इस काम में पैसा बहुत है। हमारे मोहल्ले की निधि नाम की लड़की है। पिछले एक साल में उसने 1 करोड़ तक कमा लिया है।
रिपोर्टर: इसका मतलब पुलिस की पूरी मिलीभगत है?
तस्कर: पुलिस के बगैर कुछ होता है क्या? पुलिस डेली का पैसा ले जाती है, इसलिए कार्रवाई नहीं करती। ऊपर से ज्यादा प्रेशर आता है तो कभी-कभार पकड़ती है, बाद में पैसा लेकर छोड़ देती है।
25 जुलाई को दिन के समय एक पुलिसकर्मी वर्दी में तस्करों से बातचीत करते हुए कैमरे में कैद हुआ। बाद में एक और कांस्टेबल एक महिला तस्कर के पास पहुंचा, लेकिन जैसे ही उसे शक हुआ, वह गली में गायब हो गया। यह साफ तौर पर पुलिस और तस्करों के बीच की मिलीभगत को दर्शाता है।
इस इलाके में एक और बड़ी समस्या है - यह इलाका दो थानों (कोतवाली और सिविल लाइन) के बीच बंटा हुआ है। इसका फायदा उठाकर तस्कर एक-दूसरे के थाना क्षेत्र में चले जाते हैं। जब कोतवाली पुलिस कार्रवाई करती है, तो तस्कर वार्ड 6 (सिविल लाइन) में चले जाते हैं, और जब सिविल लाइन पुलिस कार्रवाई करती है, तो वे वार्ड 19 (कोतवाली) में चले जाते हैं। इससे पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगता और धंधा चलता रहता है।
नशा करने वाले क्या सोचते हैं: इतिहास और समाज पर असर
रीवा में कफ सिरप के नशे का इतिहास तीन दशक पुराना है। शहीद भगत सिंह सेवा समिति के अध्यक्ष सुजीत द्विवेदी ने बताया कि इसकी शुरुआत 1994 में घोड़ा चौक के पास एक मेडिकल स्टोर से हुई थी। उस समय एक बोतल की कीमत 10 रुपये थी, और कॉलेज जाने वाले कुछ लड़कों ने इसका नशा करना शुरू किया था। आज आलम यह है कि हर दूसरा युवक इसकी गिरफ्त में है।
नशे का यह कारोबार सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से भी हमारे समाज को खोखला कर रहा है। युवा पीढ़ी, जो देश का भविष्य है, इस नशे की लत में फंसकर अपना भविष्य बर्बाद कर रही है। नशा करने वाले अक्सर अपने परिवार और समाज से कट जाते हैं, जिससे अपराध और सामाजिक तनाव बढ़ता है। इस समस्या से निपटने के लिए सिर्फ पुलिस की कार्रवाई पर्याप्त नहीं है, बल्कि समाज के हर वर्ग को जागरूक होना होगा।
पुलिस की कार्रवाई पर आईजी का बयान: दाम बढ़ने से माफिया परेशान
शहर में नशे के कारोबार पर पुलिस की कार्रवाई को लेकर जब भास्कर ने आईजी गौरव राजपूत से सवाल किया, तो उन्होंने अपनी टीम की उपलब्धियों पर जोर दिया। आईजी ने बताया कि पुलिस ने '100 दिन में तस्करों की कमर तोड़ने' का लक्ष्य रखा था, जिसके लिए सभी एसपी को निर्देश दिए गए थे। उन्होंने कहा कि इस अभियान के तहत मुखबिर सिस्टम को मजबूत किया गया, जिससे लोगों ने नशा बेचने वालों की सूचना दी।
आईजी राजपूत के मुताबिक, "पिछले 100 दिनों में हमने करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये के नशीले पदार्थ जब्त किए हैं।" उनका दावा है कि इस अभियान का ही नतीजा है कि जो कफ सिरप पहले ₹120 में मिलता था, अब उसकी कीमत दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है, जिससे माफिया को माल लाने में मुश्किलें आ रही हैं।
जब पुलिसकर्मियों की मिलीभगत के बारे में पूछा गया, तो आईजी ने स्वीकार किया कि आईजी ऑफिस और सभी एसपी ने मिलकर एक 'रेड फ्लैग लिस्ट' तैयार की है। इस लिस्ट में उन पुलिसकर्मियों के नाम हैं जो तस्करों के साथ मिले हुए हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे पुलिसकर्मियों को चेतावनी दी गई है और कुछ का तबादला भी किया गया है।
युवाओं को नशे से कैसे बचाएं: समस्या का समाधान क्या है?
इस गंभीर समस्या का समाधान सिर्फ पुलिस की कार्रवाई से नहीं हो सकता। इसके लिए एक बहु-आयामी रणनीति की जरूरत है।
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कड़ी पुलिस कार्रवाई: सबसे पहले, पुलिस को अपनी मिलीभगत खत्म करनी होगी और ईमानदारी से कार्रवाई करनी होगी। दो थानों के बीच बंटे इलाके के लिए जॉइंट ऑपरेशन चलाए जाने चाहिए।
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सप्लाई चेन को तोड़ना: यूपी से आने वाली सप्लाई चेन को पूरी तरह से खत्म करना होगा। कच्चे रास्तों पर निगरानी बढ़ानी होगी और बड़े तस्करों को पकड़ना होगा, न कि सिर्फ छोटे ग्राहकों को।
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जागरूकता अभियान: युवाओं और उनके परिवारों को नशे के खतरों के बारे में जागरूक करना होगा। स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
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नशा मुक्ति केंद्र: नशे के शिकार लोगों के लिए पर्याप्त नशा मुक्ति केंद्र और काउंसलिंग की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वे इस लत से बाहर आ सकें।
यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम इस समस्या के खिलाफ खड़े हों और अपने समाज को नशे से मुक्त करें।