रीवा में कुत्तों से खौफ: नगर निगम की बड़ी चूक से 600 से ज्यादा लोग पीड़ित, संजय गांधी अस्पताल बना कुत्तों का ठिकाना, मरीज सहमे

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा शहर में इन दिनों आवारा कुत्तों का आतंक चरम पर है। यह समस्या सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं है, बल्कि शहर के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण संस्थानों तक पहुंच गई है। विशेष रूप से, संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, संजय गांधी अस्पताल का परिसर भी अब इन आवारा जानवरों का घर बन गया है। इस स्थिति ने न केवल मरीजों और उनके परिजनों की सुरक्षा पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, बल्कि शहर की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की भी पोल खोल दी है। इन कुत्तों की वजह से डॉग बाइट के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे लोगों में भय और असुरक्षा का माहौल बन गया है। यह समस्या एक प्रशासनिक लापरवाही का सीधा परिणाम है, जिसकी वजह से एक दुखद घटना सामने आई है, जिसने पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया है। यह समझना बेहद जरूरी है कि इस समस्या की जड़ें कहां हैं और इसका समाधान कैसे किया जा सकता है।
संजय गांधी अस्पताल में कुत्तों की घुसपैठ: मरीजों की सुरक्षा पर खतरा कैसे है
संजय गांधी अस्पताल रीवा संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल है, जहां न केवल रीवा बल्कि आसपास के जिलों से भी हजारों मरीज हर दिन इलाज के लिए आते हैं। ऐसे में, इस अस्पताल की सुरक्षा और स्वच्छता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन हाल ही में सामने आई तस्वीरों और खबरों ने एक चिंताजनक तस्वीर पेश की है। अस्पताल परिसर के भीतर, वार्डों में, और यहां तक कि ऑपरेशन थिएटर के पास भी आवारा कुत्ते बेरोकटोक घूमते नजर आ रहे हैं। इस तरह की स्थिति से मरीजों को भारी परेशानी हो रही है। जहां एक तरफ मरीज पहले से ही अपनी बीमारियों से जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ इन कुत्तों का खतरा उनकी तकलीफ को और बढ़ा रहा है। आवारा कुत्ते न केवल संक्रमण फैला सकते हैं, बल्कि अचानक हमला करके गंभीर चोट भी पहुंचा सकते हैं। अस्पताल प्रबंधन ने इस स्थिति पर अपनी चिंता जताते हुए नगर निगम को पत्र भी लिखा है। यह दिखाता है कि समस्या कितनी गंभीर है और इसे तुरंत हल करने की आवश्यकता है।
बढ़ते डॉग बाइट के मामले और चौंकाने वाले आंकड़े क्या कहते हैं
आवारा कुत्तों का आतंक सिर्फ संजय गांधी अस्पताल तक सीमित नहीं है। पूरे शहर में डॉग बाइट के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यह एक चिंताजनक आंकड़ा है कि हर महीने संजय गांधी अस्पताल में 600 से अधिक लोग रेबीज का इंजेक्शन लगवाने आते हैं। यह संख्या अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि समस्या कितनी विकराल हो चुकी है। इस वृद्धि का सीधा संबंध कुत्तों की अनियंत्रित आबादी से है। शहर के अलग-अलग इलाकों में, जैसे कि शिल्पी प्लाजा के सरकारी दफ्तरों में भी आवारा कुत्ते घूमते पाए जाते हैं, जिससे वहां काम करने वाले कर्मचारियों और आम जनता को डर का सामना करना पड़ता है। डॉग बाइट के मामले सिर्फ मामूली चोटों तक ही सीमित नहीं होते, बल्कि रेबीज जैसी घातक बीमारी का खतरा भी पैदा करते हैं, जिसका इलाज अगर सही समय पर न हो तो जानलेवा साबित हो सकता है।
रेबीज के इंजेक्शन के बाद भी मौत: 14 साल के नितिन की कहानी
इस गंभीर समस्या का सबसे दुखद और भयावह परिणाम हाल ही में सामने आया है। रीवा के अमहिया थाना क्षेत्र स्थित नरेंद्र नगर निवासी 14 वर्षीय नितिन नट की मौत ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। नितिन अपनी मौसी के घर गर्मियों की छुट्टी मनाने आया था। 16 जून को जब वह घर के सामने पार्क में खेल रहा था, तभी एक आवारा कुत्ते ने उसकी गर्दन पर काट लिया। इस घटना के बाद नितिन को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे रेबीज से बचाव के लिए तीन इंजेक्शन दिए गए। लेकिन, दुख की बात है कि इन इंजेक्शनों के बावजूद, कुत्ते के काटने के 23 दिन बाद उसकी हालत बिगड़ने लगी। उसकी हरकतें कुत्तों जैसी होने लगीं और आखिरकार उसने दम तोड़ दिया। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि रेबीज कितनी घातक बीमारी है और इसमें थोड़ी सी भी लापरवाही या देरी जानलेवा हो सकती है।
लापरवाही की वजह: बधियाकरण टेंडर का खत्म होना कैसे जिम्मेदार है
नितिन की दुखद मौत और शहर में कुत्तों के बढ़ते आतंक के पीछे की मुख्य वजह सामने आई है, और वह है प्रशासनिक लापरवाही। नगर निगम आयुक्त सौरभ सोनवड़े ने खुद यह स्वीकार किया है कि आवारा कुत्तों के बधियाकरण (नसबंदी) का टेंडर खत्म हो गया था। इस वजह से पिछले कई महीनों से कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने का काम रुका हुआ था। बधियाकरण एक वैज्ञानिक और मानवीय तरीका है, जिससे कुत्तों की आबादी को बढ़ने से रोका जाता है। जब यह काम बंद हो गया, तो कुत्तों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी, जिससे उनका व्यवहार भी आक्रामक होता चला गया। इस टेंडर को समय पर रिन्यू न करना नगर निगम की एक बड़ी चूक है, जिसका खामियाजा अब आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।
नगर निगम की जिम्मेदारी और अब क्या होगी कार्रवाई?
नगर निगम आयुक्त ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए कहा है कि बधियाकरण के टेंडर की प्रक्रिया को दोबारा शुरू किया जाएगा। हालांकि, यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि इस टेंडर को समय रहते क्यों नहीं बढ़ाया गया? जब यह स्पष्ट था कि शहर में आवारा कुत्तों की समस्या बढ़ रही है, तब नगर निगम ने कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया? अब जबकि एक बच्चे की जान चली गई है, तो इस मामले पर तेजी से कार्रवाई का आश्वासन दिया जा रहा है। लोगों की उम्मीद है कि यह सिर्फ एक आश्वासन बनकर न रह जाए, बल्कि जल्द से जल्द बधियाकरण का काम शुरू हो, ताकि भविष्य में इस तरह की दुखद घटनाएं न हों।
आवारा कुत्तों की समस्या के पीछे के कारण क्या हैं
आवारा कुत्तों की समस्या सिर्फ बधियाकरण के टेंडर के रुकने से ही नहीं हुई है, बल्कि इसके पीछे कई अन्य कारण भी हैं। शहर में कचरा प्रबंधन की कमी एक बड़ा कारण है। जब लोग अपने घर का कचरा खुले में फेंकते हैं, तो कुत्ते भोजन की तलाश में वहां जमा हो जाते हैं। इसके अलावा, कुछ लोग अपने पालतू कुत्तों को बिना बधियाकरण के ही छोड़ देते हैं, जिससे उनकी संख्या बढ़ती जाती है। शहर में जागरूकता की कमी भी एक समस्या है। लोग अक्सर कुत्तों के प्रति या तो बहुत आक्रामक होते हैं या फिर बहुत लापरवाह, जिससे समस्या और भी जटिल हो जाती है। एक स्थायी समाधान के लिए इन सभी पहलुओं पर ध्यान देना जरूरी है।
रेबीज क्या है और इंजेक्शन के बाद भी मौत क्यों हुई?
रेबीज एक जानलेवा वायरल बीमारी है जो संक्रमित जानवरों (आमतौर पर कुत्ते) के काटने से फैलती है। एक बार जब रेबीज के लक्षण दिखना शुरू हो जाते हैं, तो यह लगभग हमेशा घातक होती है। नितिन के मामले में, यह संभव है कि रेबीज का वायरस उसके शरीर में फैल गया हो और इंजेक्शन लगने के बाद भी, वायरस पर पूरी तरह से नियंत्रण नहीं पाया जा सका। रेबीज के इंजेक्शन (रेबीज वैक्सीन) और रेबीज इम्यून ग्लोबुलिन (RIG) दोनों का सही समय पर और सही तरीके से लगाया जाना बहुत महत्वपूर्ण है। कुत्ते के काटने के तुरंत बाद ही इलाज शुरू कर देना चाहिए। नितिन की दुखद मृत्यु यह बताती है कि रेबीज को हल्के में नहीं लेना चाहिए और कुत्ते के काटने पर तुरंत चिकित्सा सहायता लेना अनिवार्य है।
एक स्थायी समाधान की ओर: क्या किया जा सकता है?
आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान सिर्फ एक टेंडर शुरू करने से नहीं होगा। इसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा। सबसे पहले, नगर निगम को बधियाकरण और टीकाकरण के कार्यक्रम को बिना किसी रुकावट के चलाना होगा। दूसरा, शहर में कचरा प्रबंधन को बेहतर बनाना होगा, ताकि कुत्ते भोजन की तलाश में एक जगह जमा न हों। तीसरा, लोगों को जागरूक करना होगा कि वे अपने पालतू कुत्तों का ध्यान रखें और उन्हें जिम्मेदारी से पालें। इसके अलावा, अस्पताल जैसे संवेदनशील स्थानों पर कुत्तों के प्रवेश को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे। यह समस्या पूरे शहर की है, और इसका समाधान भी पूरे शहर के सहयोग से ही संभव है।