'भूत' अटेंडेंस स्कैंडल: DEO ने भूतों को थमाया नोटिस! क्या मृत शिक्षकों के वेतन का हो रहा है फर्जीवाड़ा? उच्चाधिकारी तुरंत बर्खास्त हों!
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) क्या सरकारी सिस्टम इतना अंधा हो चुका है कि वह मृत व्यक्तियों से भी ड्यूटी की अपेक्षा कर रहा है? रीवा के स्कूल शिक्षा विभाग ने अपनी कार्यप्रणाली पर एक ऐसा काला धब्बा लगा दिया है, जिसने पूरे प्रदेश में प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार की हदें खोल दी हैं। एक चौंकाने वाले मामले में, जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) ने उन तीन शिक्षकों को नोटिस जारी कर दिया है, जिनका महीनों और सालों पहले निधन हो चुका है। नोटिस में उनसे ई-अटेंडेंस न लगाने का जवाब तीन दिन के भीतर मांगा गया है। यह घटना दर्शाती है कि सरकारी कागजों में 'भूत' अभी भी न केवल जिंदा हैं, बल्कि उन्हें काम करने के लिए मजबूर भी किया जा रहा है।
शिक्षा विभाग का 'चमत्कार': मृत शिक्षकों को नोटिस जारी
स्कूल शिक्षा विभाग ने इस बार मनरेगा में होने वाले 'भूतों के भुगतान' के भ्रष्टाचार को भी पीछे छोड़ दिया है। जहाँ मनरेगा में मृत मजदूरों के नाम पर भुगतान होता था, वहीं रीवा का शिक्षा विभाग मृत शिक्षकों को ई-अटेंडेंस लगाने के लिए दोषी ठहरा रहा है। यह अपने आप में एक प्रशासनिक 'चमत्कार' है। डीईओ द्वारा जारी किए गए इस हास्यास्पद नोटिस ने विभाग के भीतर व्याप्त अराजकता, निष्क्रियता और घोर लापरवाही को उजागर कर दिया है।
कहाँ से शुरू हुआ ये 'भूतिया' ड्रामा?
यह पूरा 'भूतिया' ड्रामा विभाग के डेटा और रिकॉर्ड को अद्यतन (अपडेट) न करने के कारण शुरू हुआ। शिक्षकों की मृत्यु के बाद भी उनके नाम विभागीय रिकॉर्ड से नहीं हटाए गए। हैरानी की बात यह है कि हाल ही में विभाग में उच्च पद प्रभार (Promotion) के लिए पूरा डाटा अपडेट किया गया, काउंसलिंग का आयोजन हुआ, और पदोन्नतियां भी हुईं, लेकिन इसके बावजूद इन मृत शिक्षकों के नाम फाइलों से नहीं हटे।
क्या इस लापरवाही के पीछे कोई इरादा छिपा है? क्या जानबूझकर इन पदों को भरा हुआ दिखाया जा रहा है ताकि नई नियुक्तियाँ न करनी पड़ें, या इसके पीछे किसी बड़े फर्जीवाड़े की तैयारी थी? यह सवाल अब उच्चाधिकारियों के लिए जाँच का विषय बन गया है।
लापरवाही की हदें पार: नाम क्यों नहीं हटाए गए?
विभाग के भीतर की ये भीषण लापरवाही दर्शाती है कि नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारी कितने लापरवाह हैं। यह एक अपमानजनक स्थिति है जहाँ दिवंगत शिक्षकों के सम्मान को ताक पर रखकर, उन्हें प्रशासनिक कागजी कार्यवाही का हिस्सा बनाए रखा गया।
- रिकॉर्ड में गड़बड़ी: मृत्यु प्रमाण पत्र मिलने के बावजूद भी सर्विस रिकॉर्ड, वेतन रिकॉर्ड और अटेंडेंस सिस्टम में बदलाव नहीं किया गया।
- पदों पर अवरोध: इन मृत शिक्षकों के नाम रिकॉर्ड में बने रहने से उनके पद अभी भी 'भरे हुए' माने जा रहे हैं, जिसके कारण विद्यालयों में शिक्षकों की पदस्थापना नहीं हो पा रही है और छात्रों की शिक्षा प्रभावित हो रही है।
भ्रष्टाचार की गंध: सिर्फ मनरेगा ही नहीं!
यह घटना स्पष्ट रूप से दिखाती है कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़ा केवल निचले स्तर के विभागों तक सीमित नहीं है। शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण विभाग, जहाँ लाखों बच्चों का भविष्य तय होता है, वहाँ भी इस तरह की असंवेदनशील और भ्रष्ट कार्यप्रणाली चल रही है। यह केवल एक गलती नहीं है, बल्कि सिस्टम की जड़ में सड़ी हुई व्यवस्था का प्रमाण है। इस मामले में उन सभी अधिकारियों पर उच्च स्तर की कार्रवाई होनी चाहिए जो डेटा अपडेट करने और रिकॉर्ड की निगरानी के लिए जिम्मेदार थे।
केस स्टडी: लापरवाही के तीन स्तम्भ
केस 1: छोटेलाल साकेत (जीपीएस दुबगवां)
- मृत्यु: 25 मई 2025
- लापरवाही: मृत्यु के 6 महीने बाद, 12 नवंबर 2025 को DEO द्वारा नोटिस जारी।
केस 2: रामगरीब दीपांकर (जीपीएस बैरिहा)
- मृत्यु: फरवरी 2025
- लापरवाही: 9 महीने बाद ई-अटेंडेंस न लगाने पर दोषी पाया गया और नोटिस जारी हुआ।
केस 3: देवतादीन कोल (जीएचएसएस खर्रा)
- मृत्यु: 29 अप्रैल 2023
- लापरवाही: दो साल से अधिक समय तक कागजों में ज़िंदा रखा गया और अब ई-अटेंडेंस न लगाने पर नोटिस दिया गया।
यह स्पष्ट है कि यह केवल एक क्लर्क की गलती नहीं है, बल्कि जवाबदेही की एक लंबी श्रृंखला की विफलता है। उच्चाधिकारियों को इस मामले में तुरंत संज्ञान लेना चाहिए और जवाबदेही तय करते हुए उन सभी कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जो इस घोर लापरवाही के लिए जिम्मेदार हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. यह मामला किस विभाग से जुड़ा हुआ है और क्या हुआ है?
A: यह मामला रीवा के स्कूल शिक्षा विभाग से जुड़ा हुआ है। विभाग ने उन तीन शिक्षकों को ई-अटेंडेंस नहीं लगाने पर नोटिस जारी किया है, जिनकी मृत्यु कुछ महीने से लेकर दो साल पहले तक हो चुकी है।
Q2. मृत शिक्षकों के नाम रिकॉर्ड से क्यों नहीं हटाए गए?
A: विभाग की घोर लापरवाही के कारण मृत्यु के बाद भी उनके नाम सर्विस रिकॉर्ड और अटेंडेंस सिस्टम से नहीं हटाए गए। उच्च पद प्रभार जैसी प्रक्रियाओं के दौरान भी डेटा को ठीक से अपडेट नहीं किया गया।
Q3. इस लापरवाही का क्या नकारात्मक असर पड़ रहा है?
A: इन मृत शिक्षकों के नाम रिकॉर्ड में होने से उनके पद भरे हुए दिखाई दे रहे हैं, जिसके कारण उन स्कूलों में नए शिक्षकों की पदस्थापना नहीं हो पा रही है और शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है।
Q4. क्या इस मामले में किसी अधिकारी पर कार्रवाई हुई है?
A: समाचार रिपोर्ट के अनुसार, अब तक सिर्फ नोटिस जारी होने की जानकारी है। लेकिन इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार उच्चाधिकारियों और कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग उठ रही है।