लाखों की हेराफेरी, छात्रों का भविष्य दांव पर! क्या रीवा के 'चोर' प्राचार्यों पर चलेगी सरकार की तलवार?

 
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ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा जिले का एक्सीलेंस स्कूल (मार्तण्ड क्रमांक-1) अब अपनी उत्कृष्ट शिक्षा के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के आरोपों और जांच के लिए सुर्खियों में है। इस स्कूल की प्राचार्य की कुर्सी को मानो 'श्रापित' माना जाने लगा है। पिछले कुछ वर्षों में, जो भी इस पद पर बैठा, उसे किसी न किसी जांच का सामना करना पड़ा। पूर्व प्राचार्यों पर भी स्कूल मद की राशि में हेराफेरी के आरोप लग चुके हैं, जिसकी जांच अभी तक जिला पंचायत में लंबित है। अब वर्तमान प्राचार्य जेपी जायसवाल के खिलाफ भी पांच गंभीर बिंदुओं पर शिकायत की गई है, जिससे एक बार फिर यह साबित हो गया है कि इस स्कूल में सब कुछ ठीक नहीं है।

यह मामला तब सामने आया जब स्कूल शिक्षा विभाग में अधिकारियों के बीच चल रही खींचतान खुलकर सामने आई। पहले बीईओ आकांक्षा सोनी के खिलाफ शिकायतें हुई थीं, जिनकी जांच चल रही है। अब उसी जांच टीम के एक सदस्य रहे जेपी जायसवाल पर ही आरोपों की गाज गिर गई है। ऐसा लगता है जैसे अधिकारियों की आपसी लड़ाई ने छात्रों के भविष्य को दांव पर लगा दिया है।

वर्तमान प्राचार्य पर लगे 5 गंभीर आरोप 
संयुक्त संचालक (जेडी) लोक शिक्षण के पास एक अभिभावक एसएन पाण्डेय की तरफ से शिकायत पहुंची है, जिसमें प्राचार्य पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। जेडी ने तत्काल दो सदस्यीय जांच कमेटी का गठन कर दिया है। ये हैं वो पांच मुख्य बिंदु जिनकी जांच की जाएगी:

साइकिल वितरण और प्रवेश में धांधली 

  • साइकिल वितरण में लापरवाही: शिकायत में कहा गया है कि सत्र 2025-26 के लिए छात्रों को मिलने वाली साइकिलों का अभी तक वितरण नहीं किया गया है। सरकारी योजना का लाभ समय पर न मिलने से छात्रों को परेशानी हो रही है।
  • प्रवेश प्रक्रिया में धांधली: यह सबसे गंभीर आरोप है। शिकायतकर्ता का दावा है कि कक्षा 11वीं में 88% और 89.6% जैसे अच्छे अंक लाने वाले छात्रों को प्रवेश नहीं दिया गया। इसके बजाय, कम अंक पाने वाले छात्रों को पहले आर्ट्स या कॉमर्स में दाखिला देकर बाद में गणित या जीव विज्ञान में बदल दिया गया। यह सीधे तौर पर प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और मनमानी को दर्शाता है।

छात्रों के शुल्क और संबल योजना की राशि का हिसाब-किताब 

  • रसीद के बिना शुल्क संग्रह: छात्रों से पत्रिका और शाला शुल्क के नाम पर 1000 रुपये लिए गए, लेकिन इसकी कोई रसीद नहीं दी गई। यह वित्तीय अनियमितता का स्पष्ट मामला है।
  • संबल योजना का पैसा वापस न करना: कक्षा 10वीं के छात्रों से 1200 रुपये लिए गए थे, लेकिन संबल योजना के तहत पात्र छात्रों को आज तक यह राशि वापस नहीं की गई है। यह एक बड़ी वित्तीय गड़बड़ी की ओर इशारा करता है।

कुप्रबंधित छात्रावास और भोजन में घोटाला 

  • अव्यवस्था का आलम: दो साल पहले बनकर तैयार हुए बालक-बालिका छात्रावास का संचालन इस साल ही शुरू हुआ है। लेकिन इसमें न तो कोई वार्डन है और न ही सुरक्षाकर्मी।
  • खरीदी में घोटाला: आरोप है कि छात्रावास के लिए सामग्री की खरीदी चहेते व्यक्तियों के माध्यम से की जा रही है, जिसमें बड़े घोटाले की आशंका है।
  • खराब भोजन: खाने की गुणवत्ता इतनी खराब है कि छात्रों को कई बार सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत करनी पड़ती है। यह दिखाता है कि छात्रों की मूलभूत सुविधाओं से भी खिलवाड़ किया जा रहा है।

आपसी खींचतान या असली भ्रष्टाचार? 
रीवा शिक्षा विभाग में अधिकारियों के बीच की तकरार अब किसी से छिपी नहीं है। पहले बीईओ आकांक्षा सोनी के खिलाफ जांच बैठी थी, जिसकी कमेटी में जेपी जायसवाल भी थे। अब जायसवाल के खिलाफ शिकायत आना कई सवाल खड़े करता है।

क्या यह सिर्फ प्रतिशोध की राजनीति है? क्या किसी ने जायसवाल को फंसाने के लिए चक्रव्यूह रचा है? या फिर ये आरोप वास्तव में सही हैं? शिकायत में उठाए गए बिंदु जैसे रसीद न देना और छात्रावास का कुप्रबंधन काफी गंभीर हैं, और ये किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत खुन्नस से ज्यादा संस्थागत गड़बड़ी की ओर इशारा करते हैं।

इस तरह की आपसी खींचतान का सीधा नुकसान शिक्षा व्यवस्था और छात्रों को होता है। जब अधिकारी अपने निजी स्वार्थों के लिए लड़ते हैं, तो उनकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं और काम पर ध्यान नहीं रहता।

एक्सीलेंस स्कूल में यह 'ग्रहण' क्यों लगा? 
एक्सीलेंस स्कूल में बार-बार ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं? इसके कुछ प्रमुख कारण हो सकते हैं:

  1. जवाबदेही की कमी: पूर्व प्राचार्यों की जांच लंबित होने से एक संदेश गया है कि भ्रष्टाचार करने पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं होती।
  2. सरकारी नियमों की अनदेखी: प्रवेश प्रक्रिया से लेकर वित्तीय लेनदेन तक में नियमों की अनदेखी की जा रही है, क्योंकि अधिकारियों को किसी का डर नहीं है।
  3. ऊपर से दबाव: यह भी संभव है कि कुछ मामलों में बड़े अधिकारियों या राजनेताओं का दबाव हो, जिससे प्राचार्य अपने मनमाफिक काम करने को मजबूर हों।

आगे की राह: क्या जांच से मिलेगी मुक्ति? 
अब जब यह मामला सामने आ गया है, तो सभी की निगाहें जेडी द्वारा गठित जांच कमेटी पर हैं। यह कमेटी निष्पक्ष रूप से जांच कर सच्चाई सामने लाएगी, ऐसी उम्मीद है। अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो सिर्फ प्राचार्य पर कार्रवाई ही काफी नहीं होगी। उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए, जिन्होंने पहले की जांचों को दबाया और इन अनियमितताओं को बढ़ने दिया।

यह मामला एक चेतावनी है कि शिक्षा व्यवस्था में बैठे सभी जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराना बहुत जरूरी है। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता रहेगा।

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