जनता का सीधा सवाल: रीवा पुलिस ने गोलीकांड को 'मारपीट' क्यों बताया? खोखे मिलने के बाद क्या एक्शन?

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा के समान थाना क्षेत्र स्थित इंदिरा नगर के बगीचे में रविवार शाम को हुए दो पक्षों के विवाद ने अब पुलिस की कार्यशैली पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। जिस घटना को पुलिस ने पहले केवल 'मारपीट' बताकर टाल दिया था और गोली चलने की बात से साफ इनकार कर दिया था, वहीं अब घटनास्थल से गोली के खोखे मिलने से हड़कंप मच गया है। यह खुलासा न केवल पुलिस के शुरुआती दावों को झूठा साबित करता है, बल्कि रीवा में कानून-व्यवस्था की स्थिति और पुलिस की जवाबदेही पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है। स्थानीय लोगों में इस घटना के बाद से दहशत का माहौल है, खासकर जब यह इलाका असामाजिक तत्वों का गढ़ बनता जा रहा है।
पुलिस का पहला बयान: 'सिर्फ मारपीट', पर कहानी कुछ और थी
रविवार शाम को इंदिरा नगर के बगीचे में दो गुटों के बीच जमकर झड़प हुई थी। इस विवाद में ऋतिक सेन और आर्यन सिंह बघेल नाम के दो युवक घायल हुए थे, जिन्हें इलाज के लिए अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची। लेकिन चौंकाने वाली बात यह थी कि पुलिस ने इस पूरे मामले को 'सिर्फ मारपीट' की घटना बताया। पुलिस अधिकारियों ने दावा किया था कि घटनास्थल पर गोली चलने जैसी कोई वारदात नहीं हुई है। उन्होंने यह भी कहा था कि घायलों का मेडिकल ओपिनियन लिया जाएगा, जिससे सच्चाई सामने आ सके। पुलिस के इस शुरुआती बयान ने कई लोगों को संदेह में डाल दिया था, खासकर घायलों के परिजनों को, जो लगातार गोलीकांड का दावा कर रहे थे।
खोखे मिले: जब सच्चाई ने पुलिस के दावों को झूठा साबित किया
पुलिस का शुरुआती दावा उस समय पूरी तरह से झूठा साबित हो गया, जब सोमवार दोपहर को एक बड़ा खुलासा हुआ। पुलिस, गिरफ्तार किए गए आरोपी किशन रजक (निवासी प्रधानमंत्री आवास, सुंदर नगर) को लेकर घटनास्थल, यानी इंदिरा नगर के बगीचे में पहुंची। आरोपी की मौजूदगी में की गई तलाशी के दौरान, पुलिस को बगीचे से .32 बोर के तीन खाली गोली के खोखे बरामद हुए। इन खोखों की बरामदगी ने सीधे तौर पर पुलिस के उस शुरुआती बयान को गलत ठहरा दिया, जिसमें गोली चालन की घटना से इनकार किया गया था। यह 'खोखे' सिर्फ धातु के टुकड़े नहीं थे, बल्कि वे पुलिस की कार्यशैली पर लगे एक बड़े सवालिया निशान का प्रतीक बन गए। इसके अलावा, भगदड़ के दौरान छूटे युवकों के जूते-चप्पल और घटना में इस्तेमाल किए गए डंडे भी मौके से बरामद हुए, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि वहाँ एक गंभीर वारदात हुई थी।
मासूम गवाह की जुबानी: 'गोली की आवाज सुनी थी'
खोखे मिलने के बाद, पुलिस की कार्यशैली पर और भी गंभीर सवाल उठने लगे हैं। इस मामले में एक और चौंकाने वाला खुलासा तब हुआ, जब घटनास्थल का मुआयना करते समय, बगीचे से गुजर रही एक नाबालिग बच्ची ने भी पुलिस को बताया कि उसने रविवार शाम को गोली की आवाज सुनी थी। एक मासूम बच्ची की यह गवाही इस बात को और भी पुख्ता करती है कि पुलिस ने शुरुआत में सच को छिपाने की कोशिश की थी। यह सवाल उठता है कि पुलिस ने इतनी बड़ी घटना को क्यों दबाने का प्रयास किया और क्या इसके पीछे कोई और वजह थी? क्या पुलिस किसी को बचाना चाहती थी, या यह केवल लापरवाही का मामला था?
इंदिरा नगर: असामाजिक तत्वों का गढ़ और स्थानीय लोगों की दहशत
स्थानीय निवासियों का कहना है कि इंदिरा नगर का यह बगीचा अब पूरे शहर के असामाजिक तत्वों का जमावड़ा बन गया है। ये तत्व हर 6-8 महीने में ऐसी ही गंभीर वारदातों को अंजाम देते हैं, जिससे इलाके में लगातार दहशत का माहौल बना रहता है। स्थानीय निवासी महेश वर्मा और जगत बहादुर सिंह ने बताया कि जिस तरह से यह पूरी वारदात हुई है, उससे लोगों में भय व्याप्त है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस बगीचे के ठीक सामने दो-दो पूर्व सांसदों के घर बने हुए हैं, फिर भी असामाजिक तत्वों की इतनी हिम्मत है कि कोई भी स्थानीय रहवासी उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता। यह स्थिति रीवा में कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति को दर्शाती है।
पुलिस की कार्यशैली पर उठे गंभीर सवाल: क्या सच दबाया जा रहा था?
इस पूरे घटनाक्रम ने रीवा पुलिस की कार्यशैली पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब परिजन शुरुआत से ही गोलीकांड का दावा कर रहे थे और अब घटनास्थल से खोखे भी मिल गए हैं, तो पुलिस ने पहले गोली चलने की बात से इनकार क्यों किया? क्या पुलिस ने जल्दबाजी में जांच को बंद करने की कोशिश की? या फिर किसी दबाव में सच्चाई को छिपाया जा रहा था? यह घटना पुलिस की पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाती है। जनता का विश्वास पुलिस पर तभी बना रह सकता है, जब वह निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम करे।
एसपी का निर्देश: क्या अब होगी निष्पक्ष जांच?
इस पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए, एसपी विवेक सिंह ने जांच के निर्देश दिए हैं। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन अब देखना यह होगा कि इस जांच में क्या सामने आता है और क्या पुलिस अपनी शुरुआती गलती को स्वीकार करते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करती है। क्या यह जांच निष्पक्ष होगी और क्या उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई होगी जिन्होंने शुरुआत में सच को छिपाने का प्रयास किया था? रीवा की जनता अब इस जांच के नतीजों का बेसब्री से इंतजार कर रही है।
रीवा में कानून-व्यवस्था: क्या जनता सुरक्षित है?
इंदिरा नगर की यह घटना रीवा में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर एक गंभीर बहस छेड़ती है। अगर शहर के बीचों-बीच, पूर्व सांसदों के घरों के सामने भी असामाजिक तत्व खुलेआम गोली चला सकते हैं और पुलिस शुरुआत में इसे दबाने की कोशिश करती है, तो आम जनता की सुरक्षा का क्या होगा? यह घटना रीवा में पुलिस की उपस्थिति, असामाजिक तत्वों पर नियंत्रण और जनता के बीच विश्वास बहाली के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है। क्या रीवा की जनता वास्तव में सुरक्षित महसूस कर सकती है, यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब पुलिस को अपने एक्शन से देना होगा।