शर्म करो रीवा! अधिकारी के रीडर ने पत्रकारों को दी गालियाँ, 'चौथा स्तंभ' चुप! यह पत्रकारिता नहीं, सिस्टम की दलाली है

 
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एसडीएम रीडर और पत्रकार के बीच भिड़ंत से बढ़ा विवाद, अपमान के बावजूद FIR दर्ज न होने से पत्रकारिता की गरिमा पर गहरा संकट, 'चमचागिरी' की मानसिकता पर सवाल

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा जिले से सामने आई एक घटना ने पत्रकारिता के पेशे की गरिमा पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। एक निजी चैनल के पत्रकार और सिरमौर एसडीएम के रीडर अभय दुबे के बीच ट्रैफिक जाम को लेकर शुरू हुआ मामूली विवाद, जल्द ही एक शर्मनाक टकराव में बदल गया।

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पत्रकारों को गालियाँ देता अधिकारी का रीडर वीडियो वायरल 

रीडर और अन्य अधिकारियों के बाबू सार्वजनिक रूप से पत्रकारों को भद्दी-भद्दी गालियां देते और अपमानजनक व्यवहार करते देखे गए। यह घटना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि सत्ता के छोटे पद पर बैठे लोग भी पत्रकारों को दबाव और मनमानी का शिकार बनाने से नहीं हिचक रहे हैं। यह एक गहरा आघात है जो पत्रकारिता के स्वतंत्र और निष्पक्ष स्वरूप को खतरे में डालता है।

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अपमान के बावजूद पत्रकारों की चुप्पी: दलाली और वसूली की मानसिकता पर गंभीर सवाल 
विवाद की शुरुआत एक ट्रैफिक जाम को लेकर हुई, जो अधिकारियों और पत्रकारों के बीच टकराव का कारण बना। एसडीएम के रीडर अभय दुबे ने इस दौरान पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार किया, जिसने पेशेवर दूरी को पूरी तरह समाप्त कर दिया और सार्वजनिक विवाद को जन्म दिया। यह दिखाता है कि सत्ता के कुछ तत्वों में अपने पद का अहंकार इतना बढ़ गया है कि वे पत्रकारों को भी अपमानित करने से नहीं चूकते।

अपमान के बावजूद पत्रकारों की चुप्पी: चिंताजनक स्थिति
इस घटना का सबसे चिंताजनक पहलू पत्रकारों की प्रतिक्रिया रही। सार्वजनिक रूप से अपमानित होने और गाली-गलौज का शिकार बनने के बावजूद, किसी भी पत्रकार ने पुलिस में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई।

  • प्रश्न: पत्रकारों की यह चुप्पी किस ओर इशारा करती है?
  • आरोप: यह स्थिति दर्शाती है कि कुछ पत्रकार या तो अधिकारियों के दबाव में हैं, अपनी गरिमा की रक्षा करने में असमर्थ हैं, या फिर अफसरों की खुशामद (चमचागिरी) में लगे हुए हैं।
  • परिणाम: यह निष्क्रियता पत्रकारिता की स्वायत्तता और निष्पक्षता के लिए एक गंभीर खतरा है, क्योंकि यह सत्ता को मनमानी करने की खुली छूट देती है।

दलाली और वसूली की मानसिकता: पत्रकारिता की साख को नुकसान
रीवा और मऊगंज क्षेत्र की यह घटना पहली नहीं है। यह घटना पत्रकारिता के पेशे में व्याप्त एक गहरी समस्या को सामने लाती है।

  • व्यवहारिक सत्य: विवरण के अनुसार, कुछ पत्रकार दलाली और वसूली की मानसिकता में फंस चुके हैं। वे भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलकर काम करते हैं या उनकी चमचागिरी करते हैं।
  • साख का नुकसान: यह प्रवृत्ति असली और सच्ची पत्रकारिता को गंभीर चोट पहुँचाती है, जिससे इस पेशे की साख लगातार घटती जा रही है। इसका सीधा असर जनता के विश्वास पर पड़ता है, जो पत्रकारिता से पूरी तरह टूटता जा रहा है।

पत्रकारिता की गरिमा पर संकट और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका 
इस पूरे मामले ने पत्रकारिता के नैतिक और पेशेवर मूल्यों को खुली चुनौती दी है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, जिसका कार्य सत्ता पर निगरानी रखना और जनता की आवाज उठाना है।

  • सत्ता की मनमानी: जब अधिकारी खुलेआम पत्रकारों को अपमानित करते हैं और पत्रकार चुप्पी साध लेते हैं, तो इससे स्पष्ट होता है कि अधिकारियों को लगता है कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इससे अधिकारियों की मनमानी बढ़ती है।
  • गरिमा का महत्व: अगर पत्रकार स्वयं अपने अधिकारों और गरिमा की रक्षा नहीं करेंगे, तो समाज और सत्ता दोनों के लिए उनका सम्मान कम होता जाएगा। एक कमजोर और डरा हुआ चौथा स्तंभ अंततः लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बन जाएगा।

निष्कर्ष और सच्ची पत्रकारिता की आवश्यकता
यह घटना रीवा जिले की एक कड़वी सच्चाई को दर्शाती है और पूरे देश के मीडिया जगत के लिए एक गंभीर चेतावनी है।

  • आवाज़ उठाने की जरूरत: वीडियो में उठाया गया प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है: पत्रकार कब तक सत्ता और अफसरों की चमचागिरी करते रहेंगे और कब तक वे भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ सच्ची पत्रकारिता की आवाज उठाएंगे?
  • जिम्मेदारी: पत्रकारों को अपने पेशे की गरिमा समझनी होगी। उन्हें अपनी ताकत का इस्तेमाल जनता की लड़ाई लड़ने में करना चाहिए, न कि सत्ता की सेवा में। केवल सच्ची, निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता ही लोकतंत्र की आवाज को दबाने वाले भ्रष्ट सिस्टम को चुनौती दे सकती है और जनता का खोया हुआ विश्वास वापस ला सकती है।

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