REWA : 15 करोड़ के फर्जी बैंक गारंटी पर हासिल किया शराब का ठेका : हाईकोर्ट ने रीवा कलेक्टर, SP एवं EOW को जारी किया नोटिस, पढ़िए पूरा मामला

 
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रीवा। संभाग के दूसरे जिले की फर्जी बैंक गारंटी के आधार पर रीवा जिले में शराब का ठेका हासिल करने के प्रकरण को लेकर हाईकोर्ट जबलपुर में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस रवि मलिमथ एवं जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने प्रमुख सचिव वाणिज्यिक कर, आयुक्त आबकारी विभाग म.प्र., कलेक्टर रीवा, एसपी रीवा एवं एसपी ईओडब्ल्यू रीवा को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के अंदर जबाव तलब किया है।

चार सप्ताह में तलब किया गया जबाव
कोर्ट ने नोटिस जारी करने के निर्देश गत 26 अप्रैल को पारित आदेश में दिये हैं। उक्ताशय की जानकारी देते हुये याचिकाकर्ता बृजेन्द्र कुमार माला एडवोकेट रीवा ने बताया कि सहकारी बैंक की मोरवा शाखा के तत्कालीन शाखा प्रबंधक से आपसी सांठगांठ कर रीवा जिले के शराब कारोबारी द्वारा लगभग 15 करोड़ की फर्जी बैंक गारंटी तैयार कराई जाकर शासकीय मदिरा समूह दुकानों का ठेका हासिल कर लिया गया था।

आबकारी विभाग रीवा की उक्त मामले में भूमिका संदिग्ध बताते हुये एडवोकेट माला ने बताया कि शिकवा शिकायत के बाद संस्थित जांच में समूचे फर्जीबाड़े का खुलासा हुआ तथा यह बात सामने आई कि रीवा एवं सतना जिले के शराब कारोबार में जिला सहकारी बैंक सीधी की मोरवा ब्रांच से जारी बैंक गारंटी लगी हुई है। उन्होंने बताया कि जांच में प्रथम दृष्टया दोष सिद्ध होने पर तत्कालीन शाखा प्रबंधक नागेन्द्र सिंह को निलंबित कर दिया गया था किन्तु फर्जीबाड़ा में संलिप्त संबंधितों के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की गई।

मामले की प्रकृति की गंभीरता को देखते हुये उन्होंने हाईकोर्ट जबलपुर में एक याचिका क्र. डब् ल्यूपी/08259/2024 दायर कर दी। हाईकोर्ट ने दायर याचिका पर सुनवाई करते हुये प्रमुख सचिव वाणिज्यिक कर विभाग, आयुक्त आबकारी विभाग, कलेक्टर रीवा, एसपी रीवा एवं एसपी आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ को नोटिस जारी कर सख्त नाराजगी जाहिर कर पूछा है कि एफआईआर दर्ज कराने में किसलिये इतनी देरी हुई है? बकौल एडवोकेट माला उनके प्रकरण में अधिवक्ता अमित सिंह हाईकोर्ट जबलपुर में कर रहे हैं।

को-आपरेटिव बैंक को नहीं था अधिकार
याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने बताया कि सहकारी बैंक को आबकारी ठेका के लिये बैंक। गारंटी जारी करने का अधिकार नहीं है बावजूद उसके भी सहकारी बैंक की मोरबा ब्रांच द्वारा लगभग 15 करोड़ की बैंक गारंटी बिना मार्जिन मनी जमा कराये अथवा बिना किसी वैध दस्तावेज के जारी कर दी गई। इतना ही उस बैंक गारंटी के आधार पर शराब ठेकेदार रीवा एवं सतना में एक वर्ष तक अपना व्यवसाय कर कमाई करते रहे। उन्होंने बताया कि कमिश्नर, कलेक्टर, एसपी एवं ईओडब्ल्यू रीवा से लेकर शासन स्तर तक वर्ष 2022-23 के फर्जी बैंक गारंटी पर शराब कारोबार मामले की शिकायत की गई मगर जब कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई तब उन्होंने अपने अधिवक्ता के माध्यम से जनहित याचिका हाईकोर्ट जबलपुर में दायर कर दी।

अधिवक्ता माला ने बताया कि हाईकोर्ट की डबल बेंच ने नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जबाव प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। इस प्रकरण में आईपीसी की धारा के अलावा मनी लॉड्रिंग का केस भी बन सकता है। उन्होंने अंदेशा व्यक्त किया है कि फर्जी बैंक गारंटी मामले में हो रही हीलाहवाली के पीछे राजनैतिक दबाव भी हो सकता है। उन्होंने इस बात का भी संदेह जाहिर किया कि मुमकिन है कि किसी सफेदपोश का धन शराब कारोबार में लगा रहा हो और नेताजी किसी कार्रवाई के लपेटे में न आ जायें इसलिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रहे हों?

इनका आया था नाम
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक सीधी की मोरवा शाखा द्वारा जिन आबकारी ठेकेदारों को करोड़ों की अनाधिकृत बैंक गारंटी जारी की गई थी उनमें बैकुंठपुर, नईगढ़ी, हनुमना, इटौरा, रायपुर कर्चुलियान, समान नाका समूह रीवा के साथ रेलवे स्टेशन समूह सतना का नाम भी सामने आया था। बैकुण्ठपुर समूह को 1 करोड़ 45 लाख 55 हजार, लौर समूह को 1 करोड़ 6 लाख 97 हजार, नईगढ़ी समूह को 9 लाख 3 हजार, हनुमना समूह को 1 करोड़ 27 लाख 77 हजार, इटौरा समूह को 1 करोड़ 56 लाख 37 हजार, रायपुर कर्चुलियान समूह को 78 लाख 10 हजार, समान नाका समूह को 2 करोड़ 45 लाख तथा रेलवे स्टेशन समूह सतना को 2 करोड़ 23 लाख रुपये की बैंक गारंटी जारी होना बताया गया था।

इस मामले में आबकारी विभाग रीवा की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि विभाग के जिम्मेदार आंखों से दृष्टिबाधित तो है नहीं, सभी की आंखों की रोशनरी सलामत है। यदि कोई अंधा होता तब भी यह शंकाओं की परिधि में रहता। उसकी वजह यह है कि बैंक गारंटी हो या परफार्मेस गारंटी या फिर एफडी, उन सबका सत्यापन कराने की जिम्मेदारी विभाग की बनती है। जब स्पष्ट आदेश है कि सहकारी बैंक की गारंटी आबकारी विभाग में मान्य नहीं है और न ही सहकारी बैंक को बैंक गारंटी जारी करने का अधिकार है तब विभागीय जिम्मेदारों द्वारा वेरीफिकेशन में क्या किया गया था? आबकारी विभाग रीवा में कतिपय लोग हैं जो खुद को होशियार एवं चालाक समझते हैं और संभव है कि फर्जी बैंक गारंटी मामले में पर्दे के पीछे से उनका किरदार अहम् रहा हो ?

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