सरकारी सिस्टम फेल! डीन की कमाई के चक्कर में भागे डॉक्टर, क्या अब PG छात्र करेंगे विंध्य का इलाज? डीन की लापरवाही पर डिप्टी CM का एक्शन कब?

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के प्रतिष्ठित श्याम शाह मेडिकल कॉलेज (SSMC), रीवा से संबद्ध गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल (GMH) इन दिनों एक बड़े आंतरिक घमासान का केंद्र बन गया है। खबर है कि कॉलेज के डीन डॉ. सुनील अग्रवाल की कथित लापरवाही और उदासीनता ने पूरे सिस्टम को तहस-नहस कर दिया है, जिसका सीधा खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।

हालात इतने बिगड़ गए हैं कि विभाग के कई वरिष्ठ डॉक्टरों ने या तो नौकरी छोड़ दी है या आपस में खींचतान कर रहे हैं। डॉक्टरों के बीच मचा यह घमासान स्पष्ट रूप से डीन के ढीले प्रबंधन की ओर इशारा करता है, जिन्हें समस्याओं की जानकारी होने के बावजूद उन्होंने आपसी सामंजस्य स्थापित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

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लापरवाही का केंद्र: प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग 
इस पूरे विवाद का सबसे अधिक प्रभाव प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग पर पड़ा है। यह विभाग मरीजों के इलाज के लिए पर्याप्त चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है। विभाग के अंदर का तनाव इतना बढ़ गया है कि सभी डॉक्टर एच.ओ.डी. डॉ. बीनू सिंह के खिलाफ लामबंद हो गए हैं, जिससे काम का माहौल पूरी तरह बिगड़ चुका है। एचओडी ने स्वयं डीन डॉ. सुनील अग्रवाल को सभी विवादों की जानकारी दी थी, लेकिन उनकी सुस्ती के कारण मामला शांत होने के बजाय और ज्यादा गहराता चला गया। प्रसूति विभाग में डॉक्टर क्यों छोड़ रहे हैं, इसका जवाब डीन की निष्क्रियता में छिपा है।

डॉक्टरों का पलायन और मरीजों पर असर 
विभाग में स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि दो डॉक्टरों ने इस्तीफा सौंप दिया है, और एक अन्य चिकित्सक अवकाश पर चली गई हैं। सूत्रों के अनुसार, अभी भी कई डॉक्टर इस्तीफा देने की फिराक में हैं। इस डॉक्टरों के पलायन का सीधा असर मरीजों के इलाज पर पड़ रहा है। अब विभाग का सारा काम-काज पोस्ट ग्रेजुएशन (PG) के छात्रों के भरोसे चल रहा है, जो गंभीर मरीजों के लिए जोखिम भरा हो सकता है। यदि हालात नहीं सुधरे तो यह महत्वपूर्ण विभाग पूरी तरह से खत्म हो जाएगा, जिससे रीवा और विंध्य क्षेत्र के मरीजों के लिए इलाज का संकट खड़ा हो जाएगा।

एच.ओ.डी. डॉ. बीनू सिंह के आरोप और सफाई 
विवाद के केंद्र में आईं प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की एच.ओ.डी. डॉ. बीनू सिंह ने खुद पर लगाए गए मानसिक प्रताड़ना के आरोपों को निराधार बताया है। 7 डॉक्टरों ने उनके खिलाफ डिप्टी सीएम से 11 बिंदुओं पर शिकायत की थी। एचओडी ने इस शिकायत पर डीन डॉ. सुनील अग्रवाल को अपना स्पष्टीकरण सौंप दिया है और डीन से आरोपों का प्रमाण भी मांगने का आग्रह किया है। यह सब इस बात का प्रमाण है कि श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में क्या विवाद चल रहा है।

डॉ. पूजा गंगवार पर एच.ओ.डी. का पलटवार 
डॉ. बीनू सिंह ने इस्तीफा देने वाली डॉक्टर, डॉ. पूजा गंगवार, पर पलटवार करते हुए उन पर ही उंगलियां उठाई हैं। डॉ. सिंह ने बताया कि डॉ. गंगवार ने पहले व्यक्तिगत कारणों से इस्तीफा दिया था। बाद में, ड्यूटी रोस्टर पर विवाद हुआ। एचओडी ने आरोप लगाया कि डॉ. गंगवार ने 4 साल की नौकरी में 228 दिन का संतान पालक अवकाश और 180 दिन का मैटरनिटी अवकाश लिया था। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि 2 नवंबर को डॉ. गंगवार की ड्यूटी में हुई मातृ मृत्यु के मामले में उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया था और इसी के बाद उन्होंने मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए इस्तीफा सौंप दिया। उन्होंने इन सभी जानकारियों से डीन को अवगत कराने की बात कही।

डीन डॉ. सुनील अग्रवाल की भूमिका पर सवाल 
विंध्य बुलेटिन जैसे स्थानीय मीडिया लगातार इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि डीन डॉ. सुनील अग्रवाल के आने के बाद से ही मेडिकल कॉलेज की व्यवस्थाएं बेपटरी हुई हैं। उनकी निष्क्रियता के कारण ही संस्थान से कई महत्वपूर्ण डॉक्टर नौकरी छोड़ चुके हैं।

  • सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के सीटीवीएस सर्जन डॉ. राकेश सोनी का इस्तीफा।
  • यूरोलॉजी विभाग के डॉक्टर का जाना।
  • गायनी विभाग की पूर्व एचओडी डॉ. कल्पना यादव का नौकरी छोड़ना।

इतने सारे वरिष्ठ और कुशल डॉक्टरों के जाने के बावजूद डीन डॉ. सुनील अग्रवाल क्या कर रहे हैं, यह एक बड़ा सवाल है। ऐसा लगता है जैसे उन्हें व्यवस्था बनाने के लिए लाया गया था, लेकिन उनकी कथित लापरवाही पूरे अस्पताल को बंद कराने और व्यवस्था चौपट करने में सहायक साबित हो रही है।

मातृ मृत्यु और लापरवाही की सच्चाई 
एच.ओ.डी. डॉ. बीनू सिंह के बयान से यह गंभीर सच्चाई उजागर होती है कि अस्पताल में मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ किया जाता है। डॉ. सिंह ने खुद माना कि मातृ मृत्यु की जांच में डॉक्टरों की लापरवाही स्पष्ट रूप से सामने आई है, जिसमें मरीज के ऑपरेशन से संबंधित कमियां पाई गई थीं। यह स्वीकारोक्ति इस बात पर बल देती है कि मातृ मृत्यु की जांच कैसे करें और स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही कितनी घातक हो सकती है। विवाद में उलझे डॉक्टर अपनी कुर्सी बचाने के लिए भले ही एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हों, लेकिन इस खींचतान में मरीजों की सुरक्षा दाँव पर लगी है।

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