रीवा की बर्बादी का जिम्मेदार कौन? निगम अधिकारी फील्ड पर नहीं, खुलेआम रिश्वतखोरी! दूध-दही से लेकर ठेके तक, हर जगह 'ले-देकर सलटाओ' का राज!

 
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सिरमौर पर खुलेआम शराबखोरी और गंदगी, फिर भी सिर्फ ₹2500 का 'जुर्माना'! निगम आयुक्त के सख्त निर्देश भी कागजों पर—रीवा शहर क्यों है गर्त में?

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा शहर की बदहाली का मुख्य कारण आज एक बार फिर सामने आ गया है: दैनिक ड्यूटी में लापरवाही और सिर्फ दिखावे की कार्रवाई! निगमायुक्त डॉ. सौरभ सोनवणे के निर्देश पर सोमवार और मंगलवार को शहर के दो प्रमुख स्थानों (सिरमौर चौराहा और एस.एफ. चौराहा) पर स्थित शराब दुकानों पर चालान काटा गया।

  • कारण था गंभीर: खुले में शराब परोसना, परिसर में गंदगी फैलाना और सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल।
  • सवाल ये है: क्या सिरमौर चौराहे जैसी व्यस्त जगह पर यह सब सिर्फ सोमवार को ही हो रहा था?
  • जनता का आरोप: मीडिया सूत्रों और स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह गंदगी, खुले में शराबखोरी और सिंगल यूज़ प्लास्टिक का उपयोग रीवा शहर की दैनिक हकीकत है। नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारी, चाहे वो स्वच्छता निरीक्षक हों या अतिक्रमण दल, दैनिक निरीक्षण के नाम पर सिर्फ सरकारी पैसा खा रहे हैं और 'मोटा माल' कमाने में व्यस्त हैं।
  • दैनिक कार्रवाई शून्य: यह कार्रवाई दर्शाती है कि जब तक निगमायुक्त या उपायुक्त प्रकाश द्विवेदी जैसे अधिकारी खुद नहीं निकलते, तब तक शहर में कोई काम नहीं होता। ये एकाध दिन की कार्रवाई सिर्फ फोटो खिंचवाकर अपनी 'वाहवाही' लूटने के लिए होती है, ताकि जनता की आँख में धूल झोंकी जा सके।

दलाली का सच: ₹2500 का चालान, ₹1 करोड़ की कमाई पर छूट?
शराब ठेके संचालित करने वाली बड़ी एजेंसी 'जय महाकाल एसोसिएट' की दुकान पर चालान काटा गया है।

  • ₹2500 बनाम लाखों: सिरमौर चौराहे जैसे प्राइम लोकेशन पर खुले में शराब परोसने से रोजाना लाखों का कारोबार होता है, और यह सीधे कानून का उल्लंघन है। इस गंभीर लापरवाही और जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ के बदले सिर्फ ₹2500 या ₹3000 का चालान काटना क्या पर्याप्त है?

  • दलाली का सीधा आरोप: आम जनता और शहर के ठेला-गुमटी संचालक भी जानते हैं कि नगर निगम के छोटे से बड़े अधिकारी अवैध गतिविधियों पर दैनिक 'दल बदल' (Daily Bribe/Commission) लेते हैं। यह छोटा-मोटा चालान सिर्फ इसलिए किया जाता है ताकि मीडिया में खबर छपे, और फिर अगले दिन से 'जय महाकाल' का अवैध धंधा बेरोकटोक जारी रहे। यह एक तरह से 'सर्कस' है!

कठोर कार्रवाई सिर्फ कागजों पर? DHO को सबक, तो इन्हें क्यों छूट?
हाल ही में कलेक्टर प्रतिभा पाल ने मेडिकल स्टोर पर लापरवाही के लिए DHO और ड्रग इंस्पेक्टर को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाबदेही तय की थी।

  • निगम पर दोहरी नीति: नगर निगम में भी वही लापरवाही, वही गंदगी और वही अतिक्रमण है, लेकिन कार्रवाई सिर्फ छोटे चालान तक सीमित क्यों? क्या निगमायुक्त डॉ. सौरभ सोनवणे अपने अधीनस्थ लापरवाह अधिकारियों पर भी कलेक्टर जैसा कठोर एक्शन लेंगे, जो शहर की दुर्दशा के लिए सीधे जिम्मेदार हैं?
  • पुनरावृत्ति की चेतावनी का क्या होगा?: आयुक्त ने चेतावनी दी है कि 'पुनरावृत्ति पाए जाने पर सख्त कार्यवाही' होगी। लेकिन जब दैनिक निरीक्षण शून्य है, तो यह चेतावनी अगले चालान तक ही सीमित रहेगी। रीवा शहर को इस 'चालान ड्रामा' से मुक्ति चाहिए, जो सिर्फ सरकारी तिजोरी और अधिकारियों की जेब भरता है, शहर को साफ नहीं करता।

निष्कर्ष: रीवा शहर की बदहाली के जिम्मेदार कौन?
रीवा शहर आज अगर स्वच्छता और सुंदरता के मामले में पिछड़ा है, तो इसका सीधा दोष कर्मचोर और वसूलीखोर नगर निगम अधिकारियों पर है। यह ज़रूरी है कि निगमायुक्त सिर्फ निर्देश न दें, बल्कि एक ऐसा सतत और कठोर निगरानी तंत्र स्थापित करें जो दैनिक आधार पर हर चौराहे, हर ठेले और हर दुकान पर नियमों का पालन कराए। सिर्फ 'बड़ी खबर' छपवाने के लिए किए गए ये छोटे-मोटे चालान रीवा शहर की दुर्दशा को नहीं बदल सकते।

रीवा नगर निगम पर सवाल: चालान सिर्फ कैमरे के लिए या शहर को सच में स्वच्छ बनाने के लिए?
रीवा नगर निगम का 'कुर्सी प्रेम': अधिकारी फील्ड पर क्यों नहीं? दूध डेयरी से लेकर बड़े दुकानदार तक प्लास्टिक पर मौन—क्या हर समस्या का हल 'ले-देकर माल सलटाना' है?

रीवा नगर निगम का 'कुर्सी प्रेम': अधिकारी फील्ड पर क्यों नहीं?
रीवा शहर में गंदगी और अवैधता का आलम इसलिए है क्योंकि नगर निगम के बड़े अधिकारी शायद ही कभी अपनी वातानुकूलित कुर्सी छोड़कर फील्ड पर जाते हों।

  • आम जनता का तीखा सवाल: "रीवा शहर में तमाम जगह गंदगी का ढेर है। अधिकारी अगर कभी फील्ड पर निकलें तो उन्हें खुद पता चल जाएगा, लेकिन अधिकारी कुर्सी पर बैठकर 'माल छाप' (वसूली) रहे हैं और नीचे के कर्मचारी तो 'बाप का राज' समझकर खुलेआम वसूली करेंगे ही।"

यह एक दिन की कार्रवाई नहीं, बल्कि दैनिक कर्तव्य होना चाहिए, लेकिन नगर निगम को 'ले-देकर मामला सलटाने' की आदत पड़ चुकी है।

प्लास्टिक का 'काला कारोबार': दूध-दही डेयरी से बड़े दुकानदारों तक मौन
सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर लगे प्रतिबंध की धज्जियां पूरे रीवा शहर में उड़ रही हैं। नगर निगम की कार्रवाई सिर्फ छोटे-मोटे वेंडर्स तक सीमित है, जबकि...

  • हर बड़े दुकानदार पन्नी (प्लास्टिक) का उपयोग धड़ल्ले से कर रहा है।
  • दूध-दही डेयरी वाले और अन्य बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठान भी प्लास्टिक का उपयोग करते हैं।
  • सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतनी सख्त पाबंदी के बावजूद यह कैसे संभव है?

सूत्रों का सनसनीखेज खुलासा: मीडिया सूत्रों और स्थानीय लोगों के अनुसार, इन बड़े उल्लंघनों का कारण स्पष्ट है— ले-देकर मामला सलटा दिया जाता है! छोटे चालान काटकर फोटो छपवाई जाती है, और फिर 'समझौते' के बाद बड़े दुकानदारों को खुली छूट मिल जाती है। यही 'सिस्टम' रीवा शहर में दलदल की तरह चल रहा है, जहाँ ईमानदारी नहीं, बल्कि दलाली का राज है।

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