SP, IG, मंत्री सबको 'हफ्ता'? रीवा में नशे के काले कारोबार पर सनसनीखेज आरोप : 'स्कूल-कॉलेज की बसों में नौटंकी क्यों, कबाड़ी मोहल्ले पर कार्रवाई कब?'

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा पुलिस द्वारा चलाए जा रहे नशामुक्ति अभियानों की दिशा और प्रभावशीलता पर अब जनता के तीखे सवाल खड़े हो रहे हैं। एक तरफ पुलिस बसों और शैक्षणिक संस्थानों में जागरूकता के कार्यक्रम चला रही है, तो दूसरी तरफ शहर के भीतर कोरेक्स और गांजा जैसे नशीले पदार्थों का अवैध कारोबार बेखौफ फल-फूल रहा है। नागरिकों का कहना है कि जब तक नशे के आयात और निर्यात की कमर नहीं टूटती, तब तक ये अभियान महज एक 'नौटंकी' बनकर रह जाएंगे।
अभियान की 'हकीकत': स्कूल-कॉलेज तक सीमित कार्रवाई, माफिया को छूट?
आम जनता में इस बात को लेकर गहरा आक्रोश है कि नशामुक्ति अभियान अक्सर स्कूलों और कॉलेजों की बसों तक ही क्यों सीमित रहते हैं। सवाल यह है कि अगर पुलिस के पास पर्याप्त बल और संसाधन हैं, तो फिर कबाड़ी मोहल्ले जैसे चिन्हित क्षेत्रों में सीधी और प्रभावी कार्रवाई क्यों नहीं की जाती, जहां नशे का कारोबार खुलेआम चलता बताया जाता है? लोगों का तर्क है कि बसों में भाषण देने से ज्यादा जरूरी उन गैंगों और नेटवर्क पर लगाम लगाना है जो रीवा में नशे की सप्लाई कर रहे हैं।
अवैध नशे का स्रोत: 'चेकिंग' के बावजूद शहर में घुसपैठ कैसे?
यह एक बड़ा रहस्य बना हुआ है कि रीवा शहर की सीमाओं पर कथित कड़ी चेकिंग के बावजूद, प्रतिदिन बड़ी संख्या में गांजा और कोरेक्स की खेप शहर में कैसे पहुंच जाती है। लोगों का कहना है कि यह बिना किसी 'संरक्षण' के संभव नहीं है। यह सीधे तौर पर इंगित करता है कि कहीं न कहीं सिस्टम में बड़ी खामियां हैं या ऐसे तत्व मौजूद हैं जो इस अवैध धंधे को बढ़ावा दे रहे हैं। जब नशा आसानी से उपलब्ध हो, तो नशामुक्ति के उपदेश कितने प्रभावी हो सकते हैं?
कबाड़ी मोहल्ला: नशे का गढ़ और 'मासिक वसूली' के गंभीर आरोप
शहर के कबाड़ी मोहल्ले को लेकर लगाए जा रहे आरोप सबसे ज्यादा गंभीर हैं। स्थानीय निवासियों का दावा है कि यह क्षेत्र अब नशे का गढ़ बन चुका है, जहां हर घर में, यहां तक कि छोटे बच्चे भी नशे की चपेट में आ रहे हैं। इससे भी बढ़कर, बेहद गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं कि इस अवैध कारोबार को चलाने के लिए पुलिसकर्मियों को 'मासिक' भुगतान किया जाता है। जनता के बीच ऐसी बातें फैल रही हैं कि प्रत्येक थाने के पुलिसकर्मियों को इस धंधे से पैसा मिलता है, और यह संख्या 65 पुलिसकर्मियों तक बताई जा रही है। यहां तक कि एसपी, आईजी, डीआईजी और सीएसपी जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को भी हर महीने मोटी रकम दिए जाने के सनसनीखेज आरोप लगाए जा रहे हैं।
यदि ये आरोप सत्य हैं, तो यह पुलिस प्रशासन की ईमानदारी और नशामुक्ति अभियान की गंभीरता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। ऐसे में यह अभियान सिर्फ 'आंखों में धूल झोंकने' जैसा प्रतीत होता है, जबकि वास्तविक समस्या जस की तस बनी रहती है।
युवाओं का भविष्य खतरे में: सिस्टम कब हिलेगा?
यह बेहद चिंताजनक है कि रीवा में स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे भी भारी मात्रा में कोरेक्स और गांजे का सेवन कर रहे हैं। यह स्थिति शहर के भविष्य को सीधे तौर पर खतरे में डाल रही है। जनता की स्पष्ट मांग है कि पुलिस प्रशासन इस 'नौटंकी' को बंद करे और निर्ममता से उन नेटवर्क पर कार्रवाई करे जो नशे के कारोबार को चला रहे हैं। जब तक इन गंभीर आरोपों की निष्पक्ष और उच्च-स्तरीय जांच नहीं होती, और जब तक अवैध धंधे में शामिल 'बड़ों' पर हाथ नहीं डाला जाता, तब तक रीवा को नशे के इस दलदल से निकालना असंभव प्रतीत होता है। सवाल यह है कि आखिर यह सिस्टम कब हिलेगा और कब रीवा के युवा नशे के अभिशाप से मुक्त होंगे?
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1: रीवा में नशामुक्ति अभियान की प्रभावशीलता पर क्या सवाल उठाए जा रहे हैं?
A1: सवाल यह है कि अभियान केवल जागरूकता तक सीमित क्यों है और नशे के आयात-निर्यात पर ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हो रही।
Q2: कबाड़ी मोहल्ले को लेकर क्या विशिष्ट आरोप हैं?
A2: आरोप है कि यह नशे का गढ़ बन चुका है, जहां से नशीले पदार्थ वितरित होते हैं, और पुलिसकर्मियों व वरिष्ठ अधिकारियों को मासिक भुगतान किया जाता है।
Q3: रीवा में कौन से नशीले पदार्थ प्रमुखता से बेचे जा रहे हैं?
A3: मुख्य रूप से कोरेक्स और गांजा जैसे नशीले पदार्थों के खुलेआम बिकने की बात कही जा रही है।
Q4: पुलिस प्रशासन पर लगे आरोपों की गंभीरता क्या है?
A4: आरोप हैं कि पुलिसकर्मी और यहां तक कि वरिष्ठ अधिकारी भी अवैध नशे के कारोबार को 'संरक्षण' दे रहे हैं, जिससे अभियान की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं।
Q5: नशे की समस्या से सबसे ज्यादा कौन प्रभावित हो रहा है?
A5: रीवा के स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे और युवा इस नशे की चपेट में आ रहे हैं, जिससे उनके भविष्य पर गंभीर खतरा है।