Rewa News : नेशनल अस्पताल में इलाज कराने से पहले 10 बार सोचें: फर्जी बिलिंग और क्लेम का बड़ा खुलासा!

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा में नेशनल अस्पताल एक बार फिर से विवादों में घिरा हुआ है। इस बार अस्पताल पर धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा करने का गंभीर आरोप लगा है। एक मरीज के परिजनों ने बताया कि पहले अस्पताल ने उनके मेडिकल क्लेम को लेने से साफ इनकार कर दिया था। इसके बाद परिजनों ने नगद भुगतान करके मरीज को संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया। चौंकाने वाली बात यह है कि मरीज के जाने के बाद नेशनल अस्पताल ने उसी मेडिकल क्लेम की फाइल लगा दी। जब मरीज के परिजनों को इस बात का पता चला, तो उन्होंने तुरंत अस्पताल प्रबंधन से संपर्क किया। अपनी चोरी पकड़ी जाने पर नेशनल अस्पताल प्रबंधन अपनी गलती मानने लगा और कहने लगा कि क्लेम गलती से फाइल हो गया था। इस घटना से अस्पताल की धोखाधड़ी का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

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सिर्फ एक दिन भर्ती, कैश भुगतान के बावजूद 92 हजार का फर्जी क्लेम!
नेशनल अस्पताल पर मरीजों से लूट मचाने का आरोप लगातार लगता रहा है। यह अस्पताल रीवा के सबसे विवादित अस्पतालों में से एक है। अब एक नया मामला सामने आया है जो अस्पताल की धोखाधड़ी को साबित करता है।

मामला क्या है?
एक मरीज के परिजनों को अस्पताल ने पहले हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से कैशलेस इलाज देने में असमर्थता जताई और मेडिक्लेम लेने से इनकार कर दिया। परिजनों ने मजबूरी में एक दिन के इलाज के लिए करीब 23 हजार रुपये नकद भुगतान किया और मरीज को संजय गांधी अस्पताल ले गए।

धोखाधड़ी का खुलासा:
मरीज के जाने के बाद भी नेशनल अस्पताल ने कागजों में मरीज को डिस्चार्ज नहीं किया। हद तो यह है कि अस्पताल में किसी तरह के मेडिकल क्लेम के दस्तावेज नहीं होने के बावजूद, उन्होंने बीमा कंपनी के पास 92 हजार रुपये का क्लेम आवेदन कर दिया। यह राशि उनके द्वारा नकद लिए गए 23 हजार रुपये से लगभग चार गुना अधिक थी। दस्तावेजों की जांच करने पर पता चला कि अस्पताल ने मरीज के परिजनों के फर्जी हस्ताक्षर तक कर डाले थे।

नेशनल अस्पताल से मिनर्वा तक का पूरा खेल
इस धोखाधड़ी के पीछे नेशनल अस्पताल और मिनर्वा मेडिसिटी अस्पताल के बीच मिलीभगत भी सामने आई है।

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कैसे हुई घटना?
रिया मिश्रा (पति अभिनेश तिवारी) को डिलीवरी के लिए पहले नेशनल अस्पताल रीवा में भर्ती किया गया था। डिलीवरी के बाद बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हुई, जिसके बाद डॉक्टरों ने बच्चे को मिनर्वा अस्पताल में भर्ती करने की सलाह दी, यह कहकर कि वहां सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। डॉक्टरों की बात मानकर परिजन बच्चे को 29 जून की रात 9 बजे मिनर्वा अस्पताल ले गए और उसे NICU में भर्ती कराया।

मिनर्वा अस्पताल की भूमिका:
बच्चा मिनर्वा अस्पताल में केवल एक दिन ही रहा। 30 जून को परिजनों ने बच्चे को वहां से डिस्चार्ज कराकर संजय गांधी अस्पताल में भर्ती करा दिया और एक दिन का कैश भुगतान (करीब 23 हजार रुपये) भी कर दिया।

क्लेम का फर्जीवाड़ा:
दरअसल, मरीज के परिजनों ने मेडिकल क्लेम के कागजात नेशनल अस्पताल में ही जमा किए थे। नेशनल अस्पताल वालों ने वही कागजात मिनर्वा अस्पताल को भेज दिए। इसके बाद मिनर्वा अस्पताल ने उन्हीं कागजातों का इस्तेमाल कर बीमा कंपनी से 92 हजार रुपये का क्लेम करने की कोशिश की, जबकि उन्होंने कैश में सिर्फ 23 हजार रुपये ही लिए थे। गनीमत रही कि प्रिया मिश्रा और उनके परिजनों को समय रहते इस फर्जीवाड़े का पता चल गया।

फर्जी जानकारी और फर्जी हस्ताक्षर: अस्पतालों की पोल खुली
इस पूरे मामले में नेशनल अस्पताल और मिनर्वा अस्पताल के कर्मचारियों और अधिकारियों ने मिलकर मरीज के परिजनों के साथ धोखाधड़ी करने की कोशिश की। उन्होंने न केवल कैश में भुगतान लिया, बल्कि मेडिकल क्लेम की राशि भी हड़पने का प्रयास किया।

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नेशनल अस्पताल में जमा किए गए दस्तावेजों में मिनर्वा अस्पताल के लोगों ने फर्जी हस्ताक्षर किए और फर्जी इलाज के विवरण व क्लेम की राशि दर्ज की। जितनी राशि कैश में एक दिन के इलाज के लिए ली गई थी, उससे करीब चार गुना अधिक राशि मेडिकल क्लेम में दर्ज की गई। यह घटना दर्शाती है कि नेशनल अस्पताल और मिनर्वा अस्पताल दोनों के बीच गहरा तालमेल है और वे मरीजों को एक-दूसरे के पास भेजकर लूटने का काम कर रहे हैं। इन अस्पतालों की विश्वसनीयता पर अब गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

रीवा में निजी अस्पतालों की लूट: क्यों है यह चिंता का विषय?
मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला रीवा को मेडिकल हब बनाना चाहते हैं, लेकिन यहां हर दिन खुलने वाले निजी अस्पताल अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने में असफल साबित हो रहे हैं। मरीजों और उनके परिजनों के साथ इन निजी अस्पतालों में लगातार लूट-खसोट की जा रही है।

सरकार और प्रशासन की भूमिका:
इस स्थिति के पीछे मध्य प्रदेश सरकार और प्रशासन की भी भूमिका मानी जा रही है। इन अस्पतालों को कथित तौर पर सरकारी नुमाइंदों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे उन्हें बल मिल रहा है और उन पर किसी तरह की पाबंदी या सख्ती नहीं बरती जाती। यह आरोप भी लगते हैं कि हर निजी अस्पताल में किसी न किसी प्रभावशाली व्यक्ति का पैसा लगा हुआ है, जिसके कारण इन पर कार्रवाई करने से लोग डरते हैं।

संजय गांधी अस्पताल के अधिकांश डॉक्टरों ने अपने निजी अस्पताल खोल लिए हैं, जिसका असर संजय गांधी अस्पताल की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर भी पड़ रहा है। इसी का फायदा ये निजी अस्पताल उठा रहे हैं और मरीजों को लूटने का काम कर रहे हैं।

निष्कर्ष:
यह घटना रीवा में निजी स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को उजागर करती है। मरीजों को इन अस्पतालों में इलाज कराने से पहले सतर्क रहने की आवश्यकता है।

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