Rewa News : 3 पीढ़ियां एक साथ खत्म! रीवा में सड़क हादसे का भयावह सच, आरटीओ पर उठे गंभीर सवाल : किसकी जिम्मेदारी? पुलिस, कलेक्टर, डिप्टी सीएम या ट्रैफिक पुलिस?

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। । गुरुवार को रीवा में एक दिल दहला देने वाले सड़क हादसे में सीमेंट पिलर से लदे बल्कर ट्रक के ऑटो पर पलट जाने से 7 लोगों की मौत हो गई। इस भीषण दुर्घटना ने कई घरों को एक साथ उजाड़ दिया, खासकर एक परिवार की तीन पीढ़ियों – दादा, माता-पिता और नाती-पोते – की एक साथ मौत हो गई, जिससे पूरा परिवार सदमे में है।

गुरुवार को रीवा में हुए भीषण सड़क हादसे में 7 लोगों की मौत, जिसमें एक ही परिवार की तीन पीढ़ियां खत्म हो गईं, सिर्फ एक दर्दनाक दुर्घटना नहीं, बल्कि परिवहन विभाग (आरटीओ), पुलिस और स्थानीय प्रशासन की घोर लापरवाही और भ्रष्टाचार का जीता-जागता सबूत है। सीमेंट पिलर से लदे बल्कर ट्रक का ऑटो पर पलटना महज एक हादसा नहीं, बल्कि रीवा की बेलगाम ट्रैफिक व्यवस्था और अधिकारियों की जेब भरने की लालच का सीधा परिणाम है, जिसने कई घरों के चिराग बुझा दिए।

पलक झपकते ही उजड़ गए 3 परिवार
यह दर्दनाक हादसा तब हुआ जब प्रयागराज से गंगा स्नान कर रीवा की तरफ आ रहा एक सीमेंट पिलर से लदा बल्कर ट्रक यूपी-एमपी बॉर्डर पर सोहागी घाटी के पास एक ऑटो को ओवरटेक करने की कोशिश कर रहा था। ओवरटेक के दौरान ट्रक बेकाबू होकर ऑटो पर पलट गया। ऑटो में 10 लोग सवार थे, जिनमें से 4 की मौके पर ही मौत हो गई, 1 ने अस्पताल ले जाते समय दम तोड़ा, और 2 लोगों ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। अभी भी 3 लोग अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं।

एक साथ हुआ पूरे परिवार का अंतिम संस्कार
भमरा गांव के रहने वाले मृतक रामजीत जायसवाल के परिवार पर तो जैसे कहर टूट पड़ा। उनके पिता हीरालाल जायसवाल, पत्नी पिंकी जायसवाल, इकलौती बेटी अंबिका, और बहन के बच्चे मानवी व अरविंद जायसवाल सभी इस ऑटो में सवार थे। हादसे में रामजीत, पिंकी और हीरालाल जायसवाल की मौत हो गई। शुक्रवार दोपहर 12 बजे गांव के श्मशान घाट पर चारों का अंतिम संस्कार किया गया। रामजीत के छोटे भाई दीपक जायसवाल ने सभी का अंतिम संस्कार किया, जिसमें अलग-अलग चिताओं पर हीरालाल जायसवाल, शिवम (रामजीत का बेटा) और पिंकी जायसवाल का अंतिम संस्कार किया गया। परिवार के अंतिम संस्कार में पूरा गांव उमड़ पड़ा, हर आंख नम थी।

सदमे में परिजन: पोते-पोती की याद में छोड़ा खाना-पीना
रामजीत की बहन की सास गीता जायसवाल इस हादसे के बाद पूरी तरह टूट चुकी हैं। अपने पोते-पोती को खोने के सदमे में उन्होंने खाना-पीना और बोलना तक छोड़ दिया है। पोते-पोती की याद आते ही वे बेसुध हो जाती हैं। परिजनों ने बताया कि घर का चिराग ही नहीं, बल्कि पूरा का पूरा घर ही बुझ गया है। संजय गांधी अस्पताल के सीएमएचओ डॉ. यत्नेश त्रिपाठी ने बताया कि तीनों घायलों को स्पेशल वॉर्ड में डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है और उनकी हालत स्थिर है। उम्मीद है कि वे जल्द ठीक हो जाएंगे।

मुख्यमंत्री ने जताया दुख, मुआवजे का ऐलान
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस दुखद हादसे पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपए और घायलों को 50-50 हजार रुपए की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है।

सोहागी घाटी में लगा लंबा जाम, सड़क की डिजाइन पर सवाल
एडिशनल एसपी विवेक लाल ने बताया कि हादसे के कारण सोहागी पहाड़ से टोल प्लाजा तक लगभग तीन किलोमीटर लंबा जाम लग गया था, जिसे पुलिस प्रशासन ने आधे घंटे की कड़ी मेहनत के बाद खुलवाया।

आरटीओ: चेक पोस्ट सिर्फ उगाही का अड्डा?
स्थानीय लोगों का आक्रोश साफ बता रहा है कि यह हादसा आरटीओ की 'अंधेरगर्दी' का नतीजा है। 4 सीटर ऑटो में 10 लोगों का सफर करना अपने आप में एक बड़ा अपराध है, लेकिन सवाल यह है कि आरटीओ की चेक पोस्ट से यह ओवरलोडेड ऑटो आखिर गुजरा कैसे? क्या चेक पोस्ट सिर्फ कागजी खानापूर्ति और 'हफ्ते वसूली' का अड्डा बनकर रह गई है? नियमों को ताक पर रखकर सड़कों पर दौड़ते ये ओवरलोडेड वाहन, खासकर बसें, आरटीओ अधिकारियों की मिलीभगत और निष्क्रियता का प्रमाण हैं। अगर आरटीओ अपनी जिम्मेदारी निभाता, तो शायद ये 7 जानें बच सकती थीं।

रीवा की ट्रैफिक व्यवस्था: 'भगवान भरोसे' या 'भ्रष्टाचार भरोसे'?
रीवा शहर में ट्रैफिक व्यवस्था का हाल किसी से छिपा नहीं है। शहर के बस स्टैंड हों या पुराना स्टैंड, बसों का नियम विरुद्ध तरीके से चलना आम बात है। बस संचालक खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं, जिससे पूरे शहर में जाम की स्थिति बनी रहती है। बजरंग नगर से लेकर न्यू बस स्टैंड तक अतिक्रमण और बसों के बेतरतीब खड़े होने से सड़कें सिकुड़ गई हैं। एंबुलेंस को भी रास्ता नहीं मिलता, ऐसे में आम आदमी का क्या हाल होता होगा, समझा जा सकता है।

किसकी जिम्मेदारी? पुलिस, कलेक्टर, डिप्टी सीएम या ट्रैफिक पुलिस?
सवाल उठता है कि इस भयावह स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या पुलिस, आरटीओ, कलेक्टर, डिप्टी सीएम और ट्रैफिक पुलिस इन सब से अंजान हैं? या इनकी आंखों पर 'पैसे की पट्टी' बंधी हुई है? सड़कों पर खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, लोग मर रहे हैं, लेकिन अधिकारी सिर्फ 'मातम' मनाकर और मुआवजे का ऐलान कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। क्या ये अधिकारी तब तक नहीं जागेंगे जब तक कोई बड़ा हादसा उनके अपने दरवाजे तक न पहुंच जाए?

पूर्व विधायक का सवाल: 32 करोड़ कहां गए?
पूर्व विधायक श्यामलाल द्विवेदी का यह बयान कि सड़क की डिजाइन ठीक नहीं है और इसके सुधार के लिए 32 करोड़ की राशि आवंटित की जा चुकी है, अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर एक और बड़ा सवाल खड़ा करता है। आखिर जब सड़क की डिजाइन खराब थी, तो इसे पास क्यों किया गया? और जब सुधार के लिए पैसे आवंटित हो चुके थे, तो अब तक क्यों कोई काम नहीं हुआ? क्या ये 32 करोड़ भी किसी अधिकारी की जेब में चले गए?

रीवा के नागरिकों को अब सिर्फ मुआवजा नहीं, बल्कि जवाबदेही और एक सुरक्षित परिवहन व्यवस्था चाहिए। कब तक अधिकारी अपनी लापरवाही का खामियाजा आम जनता की जान से चुकाते रहेंगे?

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