Rewa News : 16 साल की स्नेहा पांडेय की कहानी, "किताब लिखने का सपना और रीवा का नाम रोशन"

 
cvbfg

रीवा जिले के एक छोटे से गाँव ग्राम गहिरी, पोस्ट गुढ़, जिला रीवा, भूपेंद्र पांडेय पिता और माता प्रभा पांडेय है. स्नेहा पांडेय आज हर युवा के लिए मिसाल बन गई हैं। जहाँ ज़्यादातर किशोर अपनी पढ़ाई, मोबाइल गेम्स और सोशल मीडिया में उलझे रहते हैं, वहीं स्नेहा ने महज 16 साल की उम्र में अपनी पहली किताब 'The Art of Being Seventeen' लिखकर रीवा का नाम पूरे देश में रोशन कर दिया। जहाँ ज़्यादातर किशोर अपनी पढ़ाई, मोबाइल गेम्स और सोशल मीडिया में उलझे रहते हैं, वहीं स्नेहा ने महज 16 साल की उम्र में अपनी पहली किताब 'The Art of Being Seventeen' लिखकर रीवा का नाम पूरे देश में रोशन कर दिया।

dsff

                                                                                                                          स्नेहा के पिता भूपेंद्र पांडेय

कैसे शुरू हुई लिखने की कहानी?
स्नेहा को बचपन से ही लिखने और पढ़ने का शौक था। अपनी डायरी में वो रोज़ कुछ न कुछ लिखा करती थीं — कभी कोई कविता, कभी अपने मन की बात, तो कभी दोस्तों से हुए झगड़े या स्कूल में मिली कोई तारीफ़। धीरे-धीरे उनके लिखने का ये शौक एक जुनून में बदल गया।

dfgg

किशोरावस्था में कदम रखते ही स्नेहा को महसूस हुआ कि इस उम्र में हर लड़का-लड़की कई तरह के भावनात्मक और मानसिक बदलावों से गुजरता है। दोस्ती, पढ़ाई का दबाव, करियर की चिंता, परिवार की उम्मीदें और खुद की पहचान की तलाश — इन सबने स्नेहा को इतना कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया कि उन्होंने अपने दिल की बात कागज़ पर उतारनी शुरू कर दी।

‘The Art of Being Seventeen’ की रचना
स्नेहा ने करीब 8 महीने तक लगातार इस किताब पर काम किया। हर दिन अपने विचार, अनुभव और आसपास के दोस्तों के किस्से नोट करती रहीं। उन्होंने किताब में किशोरावस्था की उन उलझनों को ज़िंदा कर दिया, जिनसे हर युवा गुजरता है।

किताब में 17 साल की उम्र की वो कहानी है, जहाँ एक किशोरी अपने सपनों, डर, प्यार, दोस्ती और ज़िन्दगी की सच्चाइयों से जूझती है।

इस किताब का मकसद सिर्फ कहानी कहना नहीं, बल्कि हर उस युवा को ये समझाना है कि जो कुछ भी तुम आज महसूस कर रहे हो, वो हर किसी के साथ होता है और ये उम्र ही तुम्हारी असली पहचान तय करती है।

dgg

प्रकाशन और उपलब्धता
इस किताब को अस्तित्व प्रकाशन, बिलासपुर ने प्रकाशित किया है। किताब 25 अप्रैल 2025 को रिलीज़ हुई और अब Amazon, Flipkart और Meesho जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध है।

खास बात ये है कि लॉन्च होते ही Flipkart पर किताब की लिमिटेड अमाउंट सेल क्रॉस कर चुकी है।

स्नेहा की पढ़ाई और परिवार
स्नेहा पांडेय ने अपनी पढ़ाई De Paul School, Rewa से की है। उनके माता-पिता हमेशा उनकी पढ़ाई और लेखन के सपोर्ट में रहे। परिवार ने कभी भी लड़का-लड़की का फर्क नहीं किया और हमेशा उनकी हर अच्छी सोच में साथ दिया।

सपने अभी बाकी हैं…
स्नेहा यहीं नहीं रुकना चाहतीं। वो भविष्य में और किताबें लिखने, युवाओं के लिए मोटिवेशनल स्पीकर बनने और अपने शहर रीवा को साहित्य और लेखन के क्षेत्र में एक नई पहचान देने का सपना देख रही हैं।

स्नेहा का कहना है —
"हर लड़की और लड़के को अपने सपनों का पीछा करना चाहिए। उम्र मायने नहीं रखती, बस हौसला होना चाहिए। जो दिल कहे, वही करो। एक दिन पूरा शहर, पूरा देश तुम्हारा नाम लेगा।"

Related Topics

Latest News