रीवा में नए SP की दहाड़ : अंदर और बाहर दोनों जगह 'सफाई'! मेडिकल नशा बेचने वालों के साथ पुलिस पर भी सीधा निशाना

 
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ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा जिले में नवागत पुलिस अधीक्षक शैलेंद्र सिंह ने पदभार संभालते ही अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट कर दिया था, और अब उन्होंने इसे अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है। जिले में लंबे समय से चली आ रही मेडिकल नशे की समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए उन्होंने एक सख्त रुख अपनाया है। एसपी ने सभी अनुभागीय अधिकारियों और थाना प्रभारियों को सीधे तौर पर यह निर्देश दिया है कि उनके-अपने थाना क्षेत्रों में मेडिकल नशे को रोकना उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने साफ चेतावनी दी है कि इस मामले में किसी भी तरह की लापरवाही या ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी, और यदि किसी भी थाना क्षेत्र में यह कारोबार पाया गया, तो संबंधित थाना प्रभारी की भूमिका तय की जाएगी और उन पर कड़ी कार्रवाई होगी।

एसपी का यह कदम दर्शाता है कि वह इस समस्या को सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनौती मान रहे हैं, जिसका समाधान सीधे तौर पर पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी है। उनकी यह नई नीति पुराने तरीकों से हटकर है, जिसमें सिर्फ गिरफ्तारी पर ध्यान दिया जाता था। अब जवाबदेही को निचले स्तर तक पहुंचाया गया है, जिससे हर अधिकारी अपने क्षेत्र में इस समस्या को खत्म करने के लिए बाध्य होगा। यह रणनीति न केवल ड्रग्स के कारोबार को रोकेगी, बल्कि पुलिस बल के भीतर भी एक अनुशासन स्थापित करेगी।

रीवा में नशे का इतिहास: कोरेक्स और टैबलेट्स का बढ़ता कारोबार
रीवा जिला लंबे समय से नशीली सिरप (जैसे कोरेक्स) और नशीली टैबलेट्स के अवैध कारोबार को लेकर सुर्खियों में रहा है। यह एक ऐसा कारोबार है जो समय-समय पर सामने आता रहता है, और इसके सबूत के तौर पर कई फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते रहे हैं। ये सबूत इस बात पर मुहर लगाते हैं कि इस जिले में नशीली दवाओं का कारोबार कितना गहरा है। इस तरह के नशीले पदार्थ, जो अक्सर वैध दवाओं के रूप में शुरू होते हैं, उनका दुरुपयोग युवाओं और किशोरों में तेजी से बढ़ रहा है।

पिछले वर्षों में भी, रीवा में ड्रग्स के खिलाफ बड़ी कार्रवाइयां की गई हैं। पूर्व पुलिस अधीक्षक विवेक सिंह के कार्यकाल में भी इस धंधे पर लगाम लगाने के लिए कई ठोस कदम उठाए गए थे। उन्होंने न केवल तस्करों पर कार्रवाई की, बल्कि उन पुलिसकर्मियों पर भी सख्ती दिखाई जो इस अवैध धंधे में लिप्त पाए गए थे। इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, नवागत एसपी का यह बयान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। यह दिखाता है कि समस्या अभी भी बनी हुई है और इसे पूरी तरह से समाप्त करने के लिए एक नए और अधिक आक्रामक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

पुलिस के भीतर की चुनौती: जब खुद आरक्षक लिप्त पाए गए
किसी भी आपराधिक धंधे को खत्म करने में सबसे बड़ी चुनौती तब आती है, जब खुद कानून के रखवाले ही उसमें शामिल हों। रीवा में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था। एसपी शैलेंद्र सिंह के आने से पहले, दो आरक्षकों को कोरेक्स तस्करों के साथ संपर्क में रहने के आरोप में लाइन अटैच किया गया था। इन आरक्षकों के फोटो और वीडियो भी सोशल मीडिया पर सामने आए थे, जिससे यह साफ हो गया था कि इस अवैध कारोबार की जड़ें पुलिस विभाग के भीतर तक फैली हुई हैं।

पुलिस बल के भीतर इस तरह की मिलीभगत न केवल अपराधियों का मनोबल बढ़ाती है, बल्कि जनता का विश्वास भी तोड़ती है। एसपी शैलेंद्र सिंह ने अपनी प्राथमिकताएं बताते हुए इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि वे न केवल बाहर के अपराधियों पर, बल्कि अंदर के 'ब्लैक शीप' पर भी नजर रखेंगे। उनका यह कदम एक साहसिक और निर्णायक कदम है, जो इस समस्या को जड़ से खत्म करने के उनके इरादे को मजबूत करता है।

जड़ों तक पहुंचने का संकल्प: सोर्सेस पर होगी कड़ी कार्रवाई
एसपी शैलेंद्र सिंह ने अपने सख्त निर्देशों के पीछे की सोच को भी साझा किया। उन्होंने बताया कि उन्हें इस बात की जानकारी हुई है कि जिले में नशीली सिरप का नशा अत्यधिक मात्रा में किया जाता है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पिछले पुलिस अधीक्षकों ने इस पर काफी बड़ी कार्रवाइयां की थीं और धंधे की कमर तोड़ी थी, लेकिन जो लोग अभी भी इस धंधे में बचे हुए हैं, उन पर भी कड़ी कार्रवाई होगी।

एसपी ने कहा, "आने वाले समय में उन सभी लोगों पर भी कड़ी कार्यवाही करते हुए इसके सोर्सेस तक पहुंचेंगे और कड़ी से कड़ी कार्यवाहियां करेंगे ताकि इसे जड़ से समाप्त किया जा सके।" यह बयान सिर्फ गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अवैध कारोबार के पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करने की योजना को दर्शाता है। पुलिस अब सिर्फ उन लोगों को नहीं पकड़ेगी जो नशीली दवाएं बेचते हैं, बल्कि उन बड़े सप्लायरों और डीलरों तक भी पहुंचेगी जो इस धंधे को नियंत्रित करते हैं।

निष्कर्ष
रीवा के नवागत एसपी शैलेंद्र सिंह का मेडिकल नशे पर यह सख्त रुख जिले में एक बड़े बदलाव का संकेत है। उनकी 'जीरो टॉलरेंस' की नीति और थाना प्रभारियों पर जवाबदेही तय करने का फैसला, एक प्रभावी रणनीति की ओर इशारा करता है। यह देखना बाकी है कि यह सख्ती जमीनी स्तर पर कितनी कारगर साबित होती है, लेकिन एसपी के शुरुआती कदम से यह उम्मीद बंधी है कि रीवा को जल्द ही इस गंभीर समस्या से छुटकारा मिल सकता है।

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