रीवा के 'दो सियासी गुंडों' ने हिलाई दिल्ली: फार्महाउस वाला और 'बाहरवाला' कांड! CSP से अभद्रता, MLA पर FIR... क्या MP में गिरेगी 'कोई बड़ी कुर्सी'?

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा में इन दिनों एक ऐसा 'सियासी भूचाल' आया है जिसने पूरे राजनीतिक गलियारे को हिला कर रख दिया है। एक तरफ कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा पर मारपीट का मामला दर्ज होने से राजनीति गरमाई हुई है, तो दूसरी तरफ भाजपा और कांग्रेस सीधे तौर पर आमने-सामने आ गए हैं। इस पूरे ड्रामे के केंद्र में हैं दो "सियासी गुंडे" – जैसा कि सेमरिया की जनता उन्हें कहती है – एक "फार्महाउस वाला" और दूसरा "बाहर वाला"। इस कांड ने न सिर्फ पुलिस-प्रशासन पर दबाव का सवाल खड़ा किया है, बल्कि सत्ता के दुरुपयोग और कानून व्यवस्था की स्थिति पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। Rewa News Media की रिपोर्ट बताती है कि यह मामला अब केवल एक एफआईआर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़े राजनीतिक संग्राम का रूप ले चुका है, जिसकी गूंज दिल्ली तक सुनाई दे सकती है!

फार्महाउस वाले और बाहर वाले: सेमरिया जनता का दर्द 
सेमरिया विधानसभा की जनता का दर्द अब खुलकर सामने आ रहा है। वे कहते हैं, "साहब! आपके पास तो माननीय हैं, हमारे यहां तो सियासी गुंडे हैं। एक फार्महाउस वाले, तो एक बाहर वाले।" यह दर्द रीवा की राजनीति में गहरी जड़ें जमा चुके व्यक्तिगत वर्चस्व की लड़ाई को दर्शाता है। "फार्महाउस वाले" को बाहर से भोला पर भीतर से यमराज का दूत बताया जा रहा है, जबकि "बाहर वाले" का सत्ता का नशा अब तक उतरा नहीं है, जो 56 की टोली में कहीं भी टपक कर न्याय के देवता बनने के चक्कर में "कांड" कर बैठते हैं। यह साफ तौर पर स्थानीय जनता की निराशा और प्रतिनिधियों के आचरण पर उठते सवालों को दर्शाता है। यह स्थिति न केवल कानून व्यवस्था के लिए चिंताजनक है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे कुछ नेताओं का व्यवहार उनके क्षेत्र की जनता के लिए एक आतंक का माहौल पैदा कर रहा है।

चोरहटा थाने में 'कांड': गाली, कुटाई और पुलिस की बेबसी 
इस बार सेमरिया के "कांडियों" ने "कांड" रीवा में किया है, और चोरहटा थाना को "सियासी अखाड़ा" बना दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, एक 'कर्मचारी' की फार्महाउस में कुटाई हुई है। लेकिन सबसे चौंकाने वाला पहलू वह है जो थाने के भीतर हुआ। एक बड़े रैंक वाली महिला पुलिस अधिकारी (CSP ऋतु उपाध्याय) को भद्दी गाली दी गई और उनके साथ अभद्रता की गई। इतना ही नहीं, थाना के दारोगा (TI आशीष मिश्रा) को हालात संभालने के लिए हाथ जोड़ने पड़े, जो पुलिस की बेबसी और कानून का मखौल उड़ाये जाने का स्पष्ट संकेत है। यह घटना दर्शाती है कि कुछ प्रभावशाली व्यक्ति कैसे पुलिस थानों को अपनी "जागीर" समझते हैं और कानून के रखवालों के साथ खुलेआम बदसलूकी करते हैं। यह न सिर्फ पुलिस बल के मनोबल को गिराता है, बल्कि आम जनता के बीच भी कानून के प्रति विश्वास को कम करता है।

कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा पर FIR: सियासी तूफान का केंद्र 
सियासी गलियारों में उस समय हड़कंप मच गया जब कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा पर मारपीट के मामले में एफआईआर (FIR) दर्ज कर ली गई। इस कार्रवाई के तुरंत बाद, कांग्रेस ने भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस के जिलाध्यक्ष राजेंद्र शर्मा के नेतृत्व में पार्टी का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल सोमवार को आईजी गौरव राजपूत से मुलाकात करने पहुंचा। इस प्रतिनिधिमंडल में विधायक की पत्नी और पूर्व लोकसभा प्रत्याशी नीलम मिश्रा भी शामिल थीं, जो इस मामले की गंभीरता को दर्शाती है। कांग्रेस इस एफआईआर को "सत्ता के दबाव में दर्ज" बता रही है और इसे पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित करार दे रही है। यह मामला अब रीवा की राजनीति में एक नए विवाद को जन्म दे चुका है और सत्ता व विपक्ष के बीच सीधा टकराव बन गया है।

कांग्रेस का 'सत्ता के दबाव' का आरोप: प्रदर्शन और सवाल 
कांग्रेस इस एफआईआर को लेकर आक्रामक है। जिलाध्यक्ष राजेंद्र शर्मा ने मीडिया से बात करते हुए इस एफआईआर पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि दो कर्मचारियों की आपसी लड़ाई को लेकर एक विधायक पर मामला दर्ज करना बेहद शर्मनाक है। राजेंद्र शर्मा ने आरोप लगाया कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने थाने में सुबह से रात तक धरना देकर पुलिस पर लगातार दबाव बनाया, जिसके चलते 25 जुलाई की रात को विधायक अभय मिश्रा पर एफआईआर दर्ज की गई। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब एक कर्मचारी की उंगली काट दी गई थी, तब भाजपा नेता उस पर मौन क्यों साधे हुए थे, लेकिन विधायक पर एफआईआर के लिए पुलिस पर दबाव डाला गया। कांग्रेस ने इस एफआईआर का कड़ा विरोध करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित बताया है। उनका कहना है कि यह कांग्रेस विधायक की छवि धूमिल करने की कोशिश है।

भाजपा का पलटवार: 'बर्बर हमला' और सख्त कार्रवाई की मांग 
जहां एक ओर कांग्रेस इस कार्रवाई का विरोध कर रही है, वहीं दूसरी ओर भाजपा ने भी इस मामले में कड़ा रुख अपनाया है। भाजपा के जिला अध्यक्ष वीरेंद्र गुप्ता, सांसद जनार्दन मिश्रा और पूर्व विधायक केपी त्रिपाठी घायल अभिषेक तिवारी से मुलाकात करने पहुंचे। भाजपा नेताओं ने घायल अभिषेक तिवारी की हालत देखी और उनके प्रति संवेदना व्यक्त की। वीरेंद्र गुप्ता ने इस घटना को "बर्बर हमला" करार दिया और मांग की कि अभिषेक तिवारी की एक्सरे रिपोर्ट आने के बाद एफआईआर में और सख्त धाराएं जोड़ी जाएं। उन्होंने पीड़ित के पिता को आश्वासन दिया कि भाजपा इस मामले में अभिषेक तिवारी को हरसंभव न्याय दिलवाने के लिए उनके साथ खड़ी है। भाजपा का कहना है कि कानून अपना काम कर रहा है और दोषी को सजा मिलनी चाहिए, चाहे वह कोई भी हो।

24-25 जुलाई की रात का पूरा घटनाक्रम: विवाद की जड़ 
रीवा में अभय मिश्रा का विवाद क्या है? यह पूरा विवाद 24 जुलाई की रात को शुरू हुआ। जानकारी के अनुसार, उस रात अशोक तिवारी नामक व्यक्ति ने अभिषेक तिवारी पर मारपीट और उंगली काटने की एफआईआर सिविल लाइन थाने में दर्ज कराई थी। इसके बाद अगले दिन, 25 जुलाई की सुबह, घायल अभिषेक तिवारी खुद चोरहटा थाने पहुंचा। वहां उसने कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा पर गंभीर आरोप लगाए। अभिषेक तिवारी ने दावा किया कि उन्हें सैलरी मांगने पर हमला किया गया था, और विधायक अभय मिश्रा इस मारपीट में शामिल थे। उनके इस आरोप के बाद मामला और भी गंभीर हो गया।

एफआईआर दर्ज होने तक का सियासी घमासान 
अभिषेक तिवारी के विधायक पर आरोप लगाने के बाद भी जब थाने में तुरंत एफआईआर दर्ज नहीं हुई, तो भाजपा ने इस मामले को जोर-शोर से उठाया। पूर्व विधायक केपी त्रिपाठी अपने समर्थकों के साथ थाने में ही धरने पर बैठ गए और एफआईआर दर्ज करने की मांग करने लगे। इस दौरान भाजपा नेताओं और पुलिस के बीच तीखी बहस भी हुई, जिससे थाने में तनाव का माहौल बन गया। वीडियो में देखा गया कि थाना प्रभारी आशीष मिश्रा को हालात संभालने के लिए हाथ जोड़कर भाजपा समर्थकों से शांत रहने की अपील करते रहे। वहीं सीएसपी ऋतु उपाध्याय लगातार अपनी बात मजबूती से रखती नजर आईं, जबकि पूर्व विधायक ने महिला अफसर पर 'मूर्ख बना रही हो' जैसे शब्द भी कहे। अंततः, भाजपा के लगातार दबाव और प्रदर्शन के बाद, 25 जुलाई की रात को कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा पर एफआईआर दर्ज की गई, जिससे रीवा में सियासी पारा और चढ़ गया।

रीवा में 'सियासी संग्राम' अपने चरम पर: आगे क्या? 
इस पूरे घटनाक्रम के बाद रीवा में कांग्रेस और भाजपा के बीच सियासी तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है। जहां कांग्रेस इस एफआईआर को सत्ता के दुरुपयोग और राजनीतिक बदले की भावना से उठाया गया कदम बता रही है, वहीं भाजपा इसे एक पीड़ित को न्याय दिलाने की पहल बता रही है। Rewa News Media का मानना है कि यह मामला अब केवल एक स्थानीय विवाद नहीं रहा, बल्कि इसने प्रदेश की राजनीति में भी भूचाल ला दिया है। अब देखना यह होगा कि पुलिस जांच आगे क्या रुख लेती है और क्या इस मामले में और गिरफ्तारियां होती हैं। क्या केपी त्रिपाठी द्वारा महिला अधिकारी से की गई अभद्रता पर भी कोई कानूनी कार्रवाई होगी? यह 'सियासी संग्राम' रीवा के राजनीतिक भविष्य को कैसे प्रभावित करता है, यह समय ही बताएगा।

निष्कर्ष 
रीवा में कांग्रेस विधायक पर एफआईआर और उसके बाद का सियासी हंगामा मध्य प्रदेश की राजनीति में एक नए अध्याय को खोल रहा है। यह घटना न सिर्फ सत्ता और विपक्ष के बीच की कटुता को दर्शाती है, बल्कि कानून के रखवालों के प्रति कुछ नेताओं के रवैये पर भी गंभीर सवाल उठाती है। सेमरिया की जनता का दर्द कि उनके पास "माननीय" नहीं बल्कि "सियासी गुंडे" हैं, एक कड़वी सच्चाई को बयां करता है। इस पूरे प्रकरण में पुलिस पर राजनीतिक दबाव और सार्वजनिक मंच पर अभद्रता ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। अब यह देखना होगा कि इस "सियासी गुंडागर्दी" का अंत कहां होता है और क्या यह सरकार में किसी बड़े फेरबदल का कारण बनती है।

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