रीवा: प्रार्थना अस्पताल का 'भ्रूण हत्या' कांड: क्या न्याय पर 'नोटों' का पर्दा? 18 दिन बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं, क्या सिस्टम बिक गया?

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा के प्रार्थना अस्पताल में हुए कथित भ्रूण हत्या के सनसनीखेज मामले को सामने आए 18 दिन बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हुई है, यह सवाल पूरे शहर में गूंज रहा है। क्या जिला कलेक्टर के जांच के आदेश केवल दिखावा थे? क्या इस जघन्य अपराध पर लाखों-करोड़ों के नोटों का सौदा भारी पड़ गया है, और क्या रीवा का स्वास्थ्य विभाग गहरी नींद में सोया हुआ है या फिर इस 'डर्टी गेम' में उसकी भी मिलीभगत है?

2025-06-18 को REWA NEWS MEDIA द्वारा रिपोर्ट किए गए इस मामले ने एक बार फिर निजी अस्पतालों की बेलगाम मनमानी और अवैध गतिविधियों को उजागर किया था। आरोप है कि प्रार्थना अस्पताल ने न सिर्फ अवैध रूप से भ्रूण हत्या को अंजाम दिया, बल्कि जब मामला सामने आया तो इसे दबाने के लिए खुलेआम पैसों का खेल खेला गया।

क्या 'न्याय' को 'दबाया' गया? 18 दिन बाद भी सन्नाटा क्यों?

यह सबसे बड़ा सवाल है कि जब प्रार्थना अस्पताल पर ऐसे गंभीर और अमानवीय आरोप लगे, तो आखिर 18 दिन बाद भी दोषियों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं की गई? क्या कानून और व्यवस्था के रखवाले अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहे हैं? या फिर इस अमानवीय कृत्य को पैसे के दम पर दबा दिया गया है? यह स्थिति न केवल प्रशासन की उदासीनता दर्शाती है, बल्कि न्याय प्रणाली पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है।

प्रार्थना अस्पताल का विवादों से पुराना नाता रहा है। यह पहले भी नियमों के विपरीत काम करने और विवादों में रहने के लिए जाना जाता रहा है। ऐसे में, यह संदेह गहराता है कि क्या इन अवैध गतिविधियों में ऊपर बैठे कुछ 'सफेदपोश' भी शामिल हैं, जो इन 'भ्रष्टाचार के अड्डों' को संरक्षण दे रहे हैं, और यही कारण है कि कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

रीवा का 'स्वास्थ्य विभाग': क्या वह भी इस 'काले धंधे' का हिस्सा है?

रीवा सहित प्रदेश के कई हिस्सों में ऐसे दर्जनों निजी क्लीनिक और अस्पताल बेखौफ होकर नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। अवैध भ्रूण लिंग परीक्षण, गैर-पंजीकृत डॉक्टर, अनधिकृत ऑपरेशन और बिलों में मनमानी – ये सब ऐसे काले धंधे हैं जो अक्सर पैसे और ऊंची पहुंच के दम पर दबा दिए जाते हैं।

यह बात समझ से परे है कि कलेक्टर ने जांच के आदेश दिए थे, लेकिन उसके बाद भी इस मामले में 'शांत माहौल' क्यों बना हुआ है। क्या जांच फाइलों में ही दफन हो गई है? क्या रीवा के नागरिकों को यह विश्वास दिलाया जा सकता है कि उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाले ऐसे अस्पताल और उनके संरक्षक बेनकाब होंगे?

अब जरूरत है सिर्फ इस एक मामले की नहीं, बल्कि रीवा के सभी निजी अस्पतालों और क्लीनिकों की गहन, पारदर्शी और समयबद्ध जांच की। उन सभी नर्सिंग होम्स और अस्पतालों के लाइसेंस तत्काल रद्द किए जाएं, जो नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। दोषियों को सिर्फ खानापूर्ति के लिए नहीं, बल्कि सख्त से सख्त सजा मिले, ताकि भविष्य में कोई भी अस्पताल इंसानियत के खिलाफ ऐसे अपराध करने की हिम्मत न कर सके।

रीवा के नागरिक अब यह जानना चाहते हैं: इस मामले पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या न्याय को दबाया गया है? क्या अधिकारी बिक गए हैं? जवाबदेही तय होनी चाहिए!

अवैध भ्रूण लिंग परीक्षण, गैर-पंजीकृत डॉक्टर, अनधिकृत ऑपरेशन और बिलों में मनमानी पर कानूनी प्रावधान और दंड

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े इन सभी अवैध कृत्यों को रोकने और दंडित करने के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं।

अवैध भ्रूण लिंग परीक्षण, गैर-पंजीकृत डॉक्टर, अनधिकृत ऑपरेशन और बिलों में मनमानी पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) और अन्य कानूनों के तहत प्रावधान

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े इन सभी अवैध कृत्यों को रोकने और दंडित करने के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं। अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) के लागू होने के बाद आपराधिक धाराओं में बदलाव आएगा।

1. अवैध भ्रूण लिंग परीक्षण (Illegal Sex Determination)

यह सबसे गंभीर अपराधों में से एक है और इसे भ्रूण लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम, 1994 (PC-PNDT Act, 1994) द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। यह अधिनियम विशेष है और इसमें सीधे कोई बदलाव BNS से नहीं आएगा, लेकिन यदि इसके साथ कोई आपराधिक कृत्य जुड़ा है, तो BNS की धाराएं लागू होंगी।

  • PC-PNDT Act, 1994 के प्रावधान:

    • PC-PNDT Act, 1994 की धारा 4: गर्भधारण पूर्व या गर्भावस्था के दौरान लिंग चयन के लिए किसी भी जांच या परीक्षण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाती है। इसमें अल्ट्रासाउंड या कोई अन्य तकनीक शामिल है।

    • PC-PNDT Act, 1994 की धारा 23: इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को दंडित करती है।

      • पहली बार उल्लंघन पर: 3 साल तक का कारावास और 10,000 रुपये तक का जुर्माना।

      • दूसरी बार या उसके बाद के उल्लंघन पर: 5 साल तक का कारावास और 50,000 रुपये तक का जुर्माना।

    • मेडिकल प्रैक्टिशनर के लिए: यदि कोई पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर इस अपराध में शामिल पाया जाता है, तो उसका नाम संबंधित मेडिकल काउंसिल से 5 साल के लिए हटाया जा सकता है, और दोहराव पर स्थायी रूप से हटाया जा सकता है।

    • अल्ट्रासाउंड/जेनेटिक क्लीनिक का पंजीकरण: इस अधिनियम के तहत सभी अल्ट्रासाउंड और जेनेटिक क्लीनिकों का पंजीकरण अनिवार्य है और उन्हें सख्त रिकॉर्ड रखने पड़ते हैं। उल्लंघन पर लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।

  • BNS की संभावित धाराएं (यदि जुड़ा हो): यदि भ्रूण लिंग परीक्षण के बाद भ्रूण हत्या (गर्भपात) की गई हो, तो भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराएं लागू हो सकती हैं:

    • BNS धारा 75-79 (गर्भपात से संबंधित): ये धाराएं गर्भपात से संबंधित अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करती हैं, जो वैध परिस्थितियों (जैसे मां के जीवन को खतरा) के अलावा किया गया हो। इनमें जबरन गर्भपात, मां की सहमति के बिना गर्भपात आदि शामिल हो सकते हैं। (ये IPC की धारा 312-318 की जगह लेंगी)

2. गैर-पंजीकृत डॉक्टरों द्वारा इलाज (Practice by Unregistered Doctors/Quacks)

यह सीधे तौर पर जान को खतरे में डालने जैसा है और BNS के तहत भी कड़े प्रावधान होंगे।

  • भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 / राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019: इन अधिनियमों के तहत, केवल पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर (जिनके पास वैध डिग्री है और जो संबंधित मेडिकल काउंसिल में पंजीकृत हैं) ही चिकित्सा का अभ्यास कर सकते हैं।

  • BNS की संभावित धाराएं:

    • BNS धारा 319 (धोखाधड़ी और बेईमानी): यदि कोई व्यक्ति खुद को डॉक्टर बताकर लोगों को धोखा देता है और बेईमानी से संपत्ति प्राप्त करता है। (यह IPC की धारा 419/420 की जगह ले सकती है)

    • BNS धारा 106 (लापरवाही से मृत्यु): यदि गैर-पंजीकृत डॉक्टर के इलाज से किसी की मृत्यु हो जाती है। (यह IPC की धारा 304A की जगह लेगी)

    • BNS धारा 117 (घोर उपहति पहुंचाना जिससे जीवन को खतरा हो): यदि इलाज से गंभीर चोट पहुंचती है। (यह IPC की धारा 338 की जगह लेगी)

  • राज्य के क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट्स: अधिकांश राज्यों में अपने क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट्स हैं जो क्लीनिकों के पंजीकरण और डॉक्टरों की योग्यता पर नियम बनाते हैं। उल्लंघन पर भारी जुर्माना और क्लीनिक बंद करने का प्रावधान है।

3. अनधिकृत ऑपरेशंस (Unauthorized Operations)

ऑपरेशन एक गंभीर चिकित्सा प्रक्रिया है जिसके लिए विशेष अनुमति, योग्यता और सुविधाएं आवश्यक हैं।

  • भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 / राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019: केवल योग्य और पंजीकृत सर्जन ही ऑपरेशन कर सकते हैं।

  • क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010: इसके तहत सभी क्लीनिकों और अस्पतालों को विशिष्ट सेवाओं (जैसे ऑपरेशन थिएटर) के लिए पंजीकृत होना और मानक सुविधाओं को बनाए रखना आवश्यक है। अनधिकृत ऑपरेशन करने पर पंजीकरण रद्द किया जा सकता है और भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।

  • BNS की संभावित धाराएं:

    • BNS धारा 117 (घोर उपहति पहुंचाना जिससे जीवन को खतरा हो): यदि ऑपरेशन के कारण किसी को गंभीर चोट लगती है। (यह IPC की धारा 338 की जगह लेगी)

    • BNS धारा 106 (लापरवाही से मृत्यु): यदि अनधिकृत ऑपरेशन से मरीज की मृत्यु हो जाती है। (यह IPC की धारा 304A की जगह लेगी)

    • BNS धारा 107/108 (उपहति पहुंचाना): यदि ऑपरेशन से सामान्य चोट लगती है। (यह IPC की धारा 323/325 की जगह लेगी)

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act): मरीज और परिजन चिकित्सा लापरवाही के लिए उपभोक्ता न्यायालय में शिकायत दर्ज करा सकते हैं, जिससे मुआवजे का दावा किया जा सकता है।

4. बिलों में मनमानी (Arbitrary Billing)

यह मुख्य रूप से धोखाधड़ी और उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है।

  • BNS की संभावित धारा:

    • BNS धारा 319 (धोखाधड़ी और बेईमानी): यदि अस्पताल या डॉक्टर जानबूझकर अधिक बिल बनाते हैं या ऐसी सेवाओं के लिए चार्ज करते हैं जो प्रदान नहीं की गईं। (यह IPC की धारा 420 की जगह ले सकती है)

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम: मरीज चिकित्सा सेवाओं का "उपभोक्ता" होता है। अनुचित या अत्यधिक बिलिंग के लिए उपभोक्ता न्यायालय में शिकायत दर्ज की जा सकती है, और अस्पताल को अतिरिक्त राशि वापस करने या मुआवजा देने का आदेश दिया जा सकता है।

  • राज्य के क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट्स: कुछ राज्यों के नियमों में बिलिंग पारदर्शिता और अधिकतम दरों पर भी प्रावधान होते हैं।

कार्रवाई न करने वाले अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई (Action Against Inactive Officials)

यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है, खासकर जब प्रशासन की मिलीभगत या उदासीनता का संदेह हो। BNS में लोक सेवकों से संबंधित कुछ प्रावधानों में बदलाव प्रस्तावित हैं।

  • BNS की संभावित धाराएं:

    • BNS धारा 173 (लोक सेवक द्वारा विधि के अधीन निदेश की अवज्ञा): यह धारा उन लोक सेवकों पर लागू हो सकती है जो जानबूझकर किसी कानून या नियम का उल्लंघन करते हैं, जिससे किसी व्यक्ति को नुकसान होता है, या वे अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते। (यह IPC की धारा 166 और 166A की जगह लेगी)

    • BNS धारा 211 (विधि के विरुद्ध जाकर व्यक्ति को दंड या संपत्ति को जब्त होने से बचाना): यदि कोई लोक सेवक किसी अपराधी को बचाने के इरादे से कार्रवाई नहीं करता है। (यह IPC की धारा 217 की जगह ले सकती है)

  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act, 1988): यदि यह साबित हो जाता है कि अधिकारी ने किसी प्रकार का लाभ (रिश्वत) लेकर कार्रवाई नहीं की है या मामले को दबाया है। इस अधिनियम में अधिकारी को कारावास और जुर्माना दोनों हो सकता है। इस अधिनियम में सीधे कोई बदलाव BNS से नहीं आया है।

  • सेवा नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई: लोक सेवकों के लिए अपने-अपने सेवा नियम होते हैं (जैसे सिविल सेवा नियम, पुलिस अधिनियम)। इन नियमों के तहत लापरवाही, कर्तव्य में विफलता, भ्रष्टाचार या मिलीभगत के लिए अधिकारियों को निलंबित किया जा सकता है, वेतन वृद्धि रोकी जा सकती है, या यहां तक कि सेवा से बर्खास्त भी किया जा सकता है।

  • उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप (Mandamus): यदि अधिकारी अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हैं, तो पीड़ित पक्ष उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में 'मैंडामस' (परमादेश) रिट याचिका दायर कर सकता है, जिसमें न्यायालय अधिकारियों को उनके कानूनी कर्तव्यों का पालन करने का निर्देश दे सकता है।

  • जनहित याचिका (PIL): ऐसे मामलों में जहां बड़े पैमाने पर जनता का हित प्रभावित हो रहा हो, कोई भी नागरिक या संगठन जनहित याचिका दायर कर सकता है, जिससे न्यायालय हस्तक्षेप कर अधिकारियों को जवाबदेह ठहराए।

प्रार्थना अस्पताल के मामले में विशेष रूप से BNS के तहत क्या हो सकता है:

प्रार्थना अस्पताल के मामले में जहां भ्रूण हत्या (PC-PNDT Act) और पैसे लेकर मामला दबाने के आरोप हैं, वहां न केवल अस्पताल प्रबंधन और शामिल डॉक्टरों पर PC-PNDT Act, BNS की धोखाधड़ी (BNS धारा 319) और गर्भपात संबंधी धाराएं (BNS धारा 75-79) तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई हो सकती है।

इसके अलावा, जिन अधिकारियों ने इस मामले में उदासीनता दिखाई है या कार्रवाई नहीं की है, उन पर BNS धारा 173 (लोक सेवक द्वारा विधि के अधीन निदेश की अवज्ञा) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई हो सकती है। उनकी सेवा नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है, जिससे उन्हें निलंबित या बर्खास्त भी किया जा सकता है। न्यायालय जनहित याचिका या मैंडामस रिट के माध्यम से भी हस्तक्षेप कर सकता है ताकि अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जा सके।

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