रीवा: जनसुनवाई से टूट रहा जनता का भरोसा, बार-बार आने के बाद भी नहीं हो रहा समाधान

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा। रीवा ज़िले में हर मंगलवार को लगने वाली जनसुनवाई का उद्देश्य है – जनता की समस्याओं को सुनकर उनका त्वरित समाधान करना। लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग है। अब यह मंच सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह गया है, जहां लोग बार-बार अपनी फरियाद लेकर पहुंचते हैं, लेकिन न्याय की उम्मीद अधूरी रह जाती है।
बार-बार शिकायत, फिर भी समाधान शून्य
एक ही मामले को लेकर लोग लगातार हफ्तों से जनसुनवाई में दस्तक दे रहे हैं। कुछ मामलों में तो महीनों से शिकायतें हो रही हैं, लेकिन अधिकारियों द्वारा सिर्फ सुनने की औपचारिकता निभाई जाती है, समाधान की कोई ठोस प्रक्रिया नहीं दिखाई देती।
जनसुनवाई में पहुंचे एक पीड़ित ने बताया,
"मैं चार बार शिकायत कर चुका हूं, हर बार कहा जाता है – 'हो जाएगा', लेकिन न कोई कॉल आया, न कोई कार्रवाई। अब तो लगता है, शायद हमें बार-बार बुलाकर थकाया जा रहा है।"
अधिकारियों की अनिच्छा या सिस्टम की कमजोरी?
जनता की शिकायतें सुनने वाले अफसरों की मेज पर फाइलें तो खूब आती हैं, लेकिन उनमें से कितनी आगे बढ़ती हैं, इसका कोई रिकॉर्ड नज़र नहीं आता। न तो शिकायतकर्ता को फॉलोअप की जानकारी दी जाती है, और न ही कोई तय समयसीमा होती है, जिसमें हल निकले।
कानूनी और संवैधानिक सवाल
भारत के संविधान का अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) कहता है कि हर नागरिक को निष्पक्ष, समयबद्ध और पारदर्शी न्याय मिलना चाहिए। अगर बार-बार जनसुनवाई में जाकर भी नागरिकों को न्याय नहीं मिलता, तो यह प्रशासनिक लापरवाही और संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन माना जा सकता है।
आखिर समाधान कहां है?
क्या रीवा प्रशासन जनसुनवाई को गंभीरता से ले रहा है?
क्या अधिकारियों की जवाबदेही तय है?
क्या हर शिकायत की ट्रैकिंग और फॉलोअप सिस्टम है?
अगर इन सवालों के जवाब "नहीं" हैं, तो ये चिंता की बात है।
हमारा मकसद
हम किसी अधिकारी या विभाग को बदनाम करने का प्रयास नहीं कर रहे। लेकिन जनता की आवाज़ उठाना हमारी ज़िम्मेदारी है।
अगर पीड़ित बार-बार दरवाज़े खटखटा रहे हैं,
तो यह सवाल पूछा जाना चाहिए —
"सुनवाई तो हो रही है, पर क्या न्याय भी मिल रहा है?"