CM के राज में 'लापरवाहों' को मौन संरक्षण! NOC फेल, Gyno OT में आग : फायर NOC के बिना चल रहे रीवा के तीनों बड़े अस्पताल, 'सुशासन' के दावों की खुली पोल

 
vgh
सरकारी उदासीनता की हद! फायर NOC के बिना चल रहे रीवा के तीनों बड़े अस्पताल; गायनी OT में लगी आग ने खोली CM और Deputy CM के 'सुशासन' के दावों की पोल

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा के प्रतिष्ठित संजय गांधी अस्पताल (Sanjay Gandhi Hospital - SGMH) की सुरक्षा व्यवस्था और प्रबंधन पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। रविवार दोपहर करीब 1 बजे अस्पताल के महत्वपूर्ण गायनी ऑपरेशन थिएटर (OT) में भीषण आग लगने की घटना ने पूरे सिस्टम की पोल खोल कर रख दी है। यह सिर्फ एक हादसा नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे जिम्मेदार सिस्टम ने जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा को ताक पर रख दिया है।

गायनो ओटी में आग: लापरवाही की चरम सीमा
यह घटना विशेष रूप से गंभीर है क्योंकि यह आग अस्पताल के सबसे संवेदनशील क्षेत्र यानी गायनो ओटी में लगी, जहाँ नवजात शिशुओं और प्रसूता माताओं से संबंधित ऑपरेशन होते हैं। एक ऐसे क्षेत्र में आग लगना जहाँ ऑक्सीजन सिलेंडर, एनेस्थीसिया गैसें और संवेदनशील उपकरण मौजूद होते हैं, लापरवाही की पराकाष्ठा को दर्शाता है।

अस्पताल के अंदरूनी सूत्रों और मरीजों के परिजनों का कहना है कि संजय गांधी अस्पताल, खासकर गायनी विभाग और ओटी, में छोटे डॉक्टर हों या बड़े, या जिम्मेदार अधिकारी, हर स्तर पर लापरवाही आम है। उपकरणों के रखरखाव से लेकर बिजली के तारों तक, हर जगह जवाबदेही का अभाव स्पष्ट झलकता है।

गायनो ओटी में लापरवाही क्यों होती है? 
ओटी में आग लगने का प्रारंभिक कारण अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन शॉर्ट सर्किट या पुरानी तकनीकी खराबी की आशंका जताई जा रही है। यह साफ इंगित करता है कि अस्पताल प्रबंधन ने समय रहते उपकरणों का निरीक्षण और रखरखाव नहीं कराया।

आग लगने से ऑपरेशन थियेटर में हड़कंप मच गया।

आग लगने से ऑपरेशन थियेटर में हड़कंप मच गया।

भीषण आग का दृश्य: दहशत और अफरा-तफरी 
रविवार दोपहर जब ओटी से धुआं उठना शुरू हुआ, तो अस्पताल परिसर में अफरा-तफरी मच गई। मरीजों, उनके परिजनों और स्टाफ में दहशत फैल गई।

  • धुएं को देखते हुए, एहतियातन गायनी ओटी के आसपास के सभी वार्डों को तुरंत खाली करा लिया गया।
  • मरीजों को आनन-फानन में सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया गया।
  • सूचना मिलते ही फायर ब्रिगेड की गाड़ियां मौके पर पहुंचीं और आग पर काबू पाने का प्रयास शुरू किया।
  • गनीमत रही कि अब तक किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है, लेकिन यह घटना एक बड़ी त्रासदी बन सकती थी।

सबसे बड़ा खुलासा: तीनों प्रमुख अस्पतालों के पास फायर NOC नहीं 
यह घटना केवल एक शॉर्ट सर्किट नहीं है, बल्कि यह रीवा के स्वास्थ्य सिस्टम की जड़ें हिला देने वाला खुलासा है। जानकारी के अनुसार, रीवा के तीनों बड़े और महत्वपूर्ण अस्पताल— संजय गांधी अस्पताल, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल और गांधी स्मारक अस्पताल— के पास इस समय वैध फायर एनओसी (No Objection Certificate) नहीं है।

फायर एनओसी के बिना अस्पताल क्यों चल रहा है?

इसका सीधा अर्थ है कि ये तीनों अस्पताल नगर निगम के फायर सेफ्टी मानकों (Fire Safety Standards) को पूरा नहीं करते हैं। इन अस्पतालों में आग से सुरक्षा के पर्याप्त उपकरण, निकासी मार्ग (Evacuation Routes) या चेतावनी प्रणालियाँ मौजूद नहीं हैं। यह एक गंभीर अपराध है, जहाँ अस्पताल प्रबंधन जानबूझकर सैकड़ों मरीजों और उनके स्टाफ की जान को प्रतिदिन खतरे में डाल रहा है। यह लापरवाही नहीं, बल्कि मानव जीवन के प्रति उदासीनता है।

आग की लपटें, प्रशासन का 'पल्ला झाड़' बयान 

  • जब आग लगी और अफरा-तफरी मची, तो प्रशासन की ओर से आया बयान और भी ज़्यादा हैरान करने वाला था।
  • निगमायुक्त सौरभ सोनवड़े ने साफ कहा है कि अस्पताल प्रबंधन को कई बार नोटिस दिए गए, लेकिन फायर सेफ्टी के पैमाने पूरे नहीं हुए, इसलिए आगजनी की स्थिति में नगर निगम की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।

निगमायुक्त पर सीधा सवाल: अगर आपको पता था कि जनता की जान खतरे में है, तो सिर्फ नोटिस क्यों दिए? आपने इन असुरक्षित अस्पतालों का संचालन क्यों नहीं रुकवाया? यह बयान जिम्मेदारी से भागने और जनता को उनके हाल पर छोड़ने जैसा है। ऐसे गैर-जिम्मेदार अधिकारियों को तुरंत पद से हटाया जाना चाहिए!

तुरंत कठोर कार्रवाई हो: सिर्फ नोटिस नहीं, इस्तीफा चाहिए
यह मामला अब सिर्फ अस्पताल प्रबंधन या निगमायुक्त तक सीमित नहीं है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री (जो कि स्वयं उपमुख्यमंत्री हैं) और मुख्यमंत्री को अब जनता के सामने आकर जवाब देना होगा और कठोर कार्रवाई करनी होगी।

सिस्टम मज़ाक बना हुआ है— अब इस मज़ाक को बंद करने का समय आ गया है।

  • CM का हस्तक्षेप: मुख्यमंत्री को तुरंत हस्तक्षेप करते हुए तीनों अस्पतालों में फायर NOC 48 घंटे में सुनिश्चित करने का आदेश देना चाहिए और दोषी अधिकारियों को तुरंत सस्पेंड करना चाहिए।
  • उपमुख्यमंत्री से इस्तीफ़ा: स्वास्थ्य विभाग की इतनी बड़ी विफलता के लिए उपमुख्यमंत्री को नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए इस विभाग से इस्तीफ़ा देना चाहिए या मुख्यमंत्री को उन्हें हटाना चाहिए।
  • आपराधिक मुकदमा: फायर एनओसी के बिना मरीजों की जान खतरे में डालने के लिए अस्पताल प्रबंधन और लापरवाही बरतने वाले निगमायुक्त पर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए।

क्या रीवा में मरीजों की जान सुरक्षित है (Are patients' lives safe in Rewa)? जब अस्पताल ही मौत का जाल बन जाए, तो जनता किस पर भरोसा करे? इस घटना ने सिद्ध कर दिया है कि रीवा का स्वास्थ्य सिस्टम पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है और इसे आमूलचूल परिवर्तन (System Change) की तत्काल आवश्यकता है।

सीधे CM के राज में स्वास्थ्य सुविधाओं का मज़ाक 

  • यह बेहद शर्मनाक है कि रीवा जैसे महत्वपूर्ण संभाग मुख्यालय के तीनों सबसे बड़े अस्पताल— संजय गांधी, सुपर स्पेशलिटी और गांधी स्मारक— महीनों या वर्षों से वैध फायर एनओसी (NOC) के बिना चल रहे हैं।
  • क्या मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को इस बात की जानकारी नहीं थी? जब शहर का निगमायुक्त नोटिस जारी कर चुका है, तो क्या यह जानकारी उच्च स्तर तक नहीं पहुँची? यह दर्शाता है कि या तो सूचना तंत्र पूरी तरह ध्वस्त है, या जानबूझकर इस लापरवाही को नज़रअंदाज़ किया गया, जो अक्षम्य है।

"यह सीधा सवाल CM और Deputy CM से है: आपके राज में, जहाँ आप 'डबल इंजन' के सुशासन की बात करते हैं, वहाँ मरीजों की जान खतरे में क्यों डाली जा रही है? क्या अस्पतालों को Fire NOC न होने के बावजूद चलने देना एक 'सुशासन' है?"

आग की वजह से बेड खाली कराना पड़ा।

आग की वजह से बेड खाली कराना पड़ा।

निगमायुक्त का बयान: जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ता प्रशासन
नगर निगम आयुक्त सौरभ सोनवड़े का इस मामले में आया बयान तो और भी चौंकाने वाला है, जो प्रशासन के जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के रवैये को दर्शाता है।

  • निगमायुक्त पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि निगम की ओर से अस्पताल प्रबंधन को कई बार नोटिस जारी किए गए हैं, लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने अब तक फायर एनओसी के पैमाने पूरे नहीं किए। उनका कहना है कि:
  • "चेतावनी दी जा चुकी है, इसलिए आगजनी की स्थिति में नगर निगम की जिम्मेदारी नहीं होगी।"

यह बयान हास्यास्पद और निंदनीय है। क्या नगर निगम का काम सिर्फ नोटिस जारी करना है? जब निगम को पता है कि तीन बड़े अस्पताल बिना सुरक्षा मानकों के चल रहे हैं और मरीजों की जान खतरे में है, तो निगम ने उन्हें बंद करने या संचालन पर रोक लगाने के लिए कठोर कार्रवाई क्यों नहीं की? अस्पताल की सुरक्षा कौन सुनिश्चित करेगा (Who will ensure hospital safety)? यह बयान यह दिखाता है कि पूरा सिस्टम मज़ाक बना हुआ है और हर कोई अपनी जिम्मेदारी दूसरे पर डाल रहा है।

स्वास्थ्य सुविधाओं का मज़ाक: जान जोखिम में क्यों?
रीवा विंध्य क्षेत्र का सबसे बड़ा स्वास्थ्य केंद्र है, जहाँ दूर-दराज से गंभीर मरीज इलाज के लिए आते हैं। इन प्रमुख अस्पतालों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी सीधे तौर पर लाखों लोगों की जान को खतरे में डाल रही है।
फायर एनओसी न होने का मतलब है कि, भगवान न करे, यदि आग बड़ी होती तो भगदड़ मच सकती थी, और बचाव कार्य भी नियमों के अनुसार नहीं हो पाता। सिस्टम को यह समझना होगा कि अस्पताल कोई सामान्य इमारत नहीं है; यहाँ जिंदगी और मौत का संघर्ष चलता रहता है।

रीवा अस्पताल की जिम्मेदारी किसकी है?

इस मामले में जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन (अधीक्षक, डीन), स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारी और नगर निगम (जो सुरक्षा मानकों को लागू कराता है) तीनों की है।

सिस्टम में बदलाव की मांग: अब और कितनी लापरवाही

यह समय निंदा करने और मज़ाक बनाने का नहीं, बल्कि कठोर कार्रवाई का है। इस घटना को एक अंतिम चेतावनी के रूप में लिया जाना चाहिए।

  • तत्काल एनओसी सुनिश्चित करें: सरकार और प्रशासन को एक सप्ताह के भीतर तीनों अस्पतालों में सभी फायर सेफ्टी मानकों को पूरा करने और एनओसी प्राप्त करने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए।
  • जवाबदेही तय हो: गायनी ओटी में हुई लापरवाही के लिए संबंधित डॉक्टरों, तकनीशियनों और प्रबंधन अधिकारियों की जवाबदेही तय हो और उन पर सख्त कार्रवाई की जाए।
  • निगमायुक्त पर सवाल: नगर निगम आयुक्त से स्पष्टीकरण मांगा जाना चाहिए कि उन्होंने नोटिस देने के बाद भी अस्पतालों को क्यों चलने दिया।
  • नियमित ऑडिट: स्वास्थ्य मंत्री को व्यक्तिगत रूप से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रीवा के अस्पतालों में न केवल फायर सेफ्टी बल्कि सभी बुनियादी सुविधाओं और उपकरणों का नियमित थर्ड पार्टी ऑडिट हो।

रीवा की जनता को यह जानने का पूरा हक है कि जिस अस्पताल में वे इलाज करा रहे हैं, वह उनकी जान के लिए सुरक्षित है। पूरा सिस्टम मज़ाक बना हुआ है— अब इस मज़ाक को तुरंत बंद करने की ज़रूरत है।

देखिए तस्वीरें...

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
  1. रीवा के संजय गांधी अस्पताल में आग कब और कहाँ लगी? आग रविवार दोपहर करीब 1 बजे संजय गांधी अस्पताल के गायनो ऑपरेशन थिएटर (OT) में लगी थी।
  2. आग लगने का मुख्य कारण क्या हो सकता है? आग लगने का कारण अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन अधिकारियों द्वारा शॉर्ट सर्किट या तकनीकी खराबी की आशंका जताई जा रही है, जो खराब रखरखाव को दर्शाता है।
  3. क्या आग से कोई हताहत हुआ है? फिलहाल किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है, क्योंकि वार्डों को समय रहते खाली करा लिया गया और मरीजों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया गया।
  4. रीवा के कितने बड़े अस्पतालों के पास फायर एनओसी नहीं है? संजय गांधी अस्पताल, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल और गांधी स्मारक अस्पताल— तीनों प्रमुख अस्पतालों के पास वर्तमान में नगर निगम का फायर एनओसी नहीं है।

Related Topics

Latest News