सिस्टम का AC फेल! रीवा में भ्रष्टाचार की गर्मी में झुलसते मरीज, क्या सब मिलकर खा गए पैसा?

 
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रीवा के स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले के सबसे बड़े अस्पताल में मरीज गर्मी से तड़प रहे हैं। AC खराब, प्रबंधन बेखबर, और सरकारी सुविधाओं का दावा 'ठन-ठन गोपाल' साबित हो रहा है। जिम्मेदार आखिर हैं कहां? 

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) जहां एक ओर स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला अपने गृह जिले रीवा में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएं करते नहीं थकते, वहीं दूसरी ओर उनके गृह जिले के सबसे बड़े संजय गांधी अस्पताल की हकीकत बेहद चौंकाने वाली और दर्दनाक है। उमस भरी गर्मी में मरीज तीसरे माले के मेडिसिन विभाग में हवा के लिए तड़प रहे हैं, और अस्पताल प्रबंधन केवल दिखावटी व्यवस्थाओं का दावा ठोक रहा है। जमीनी हकीकत 'ठन-ठन गोपाल' है, जिससे पता चलता है कि सिस्टम कितना खोखला हो चुका है।

स्वास्थ्य मंत्री के दावों की पोल खोलती 'उमस' 
स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला आए दिन रीवा को नई-नई सौगातें देने और मरीजों के लिए बेहतर व्यवस्थाएं करने का ढिंढोरा पीटते हैं। लेकिन संजय गांधी अस्पताल के मेडिसिन विभाग के तीसरे माले पर लगे एयर कंडीशनर (AC) पूरी तरह से खराब पड़े हैं। इस भीषण गर्मी और उमस में, जहां सामान्य व्यक्ति का भी हाल बेहाल हो जाता है, वहां गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीज बिना AC और पंखे के तड़पने को मजबूर हैं। यह स्थिति स्वास्थ्य मंत्री के उन सभी दावों की पोल खोलती है कि उन्होंने मरीजों के लिए 'यह कर दिया, वह कर दिया'। रीवा के संजय गांधी अस्पताल में एसी कब सुधरेंगे, यह सवाल हर मरीज और उनके परिजनों के मन में है।

'रसूख' और 'आम आदमी' के बीच सुविधाओं का फासला 
सरकारी अस्पतालों में बेहतर सुविधा मिलना, खासकर बिना रसूख के, 'आसमान से तारे तोड़ने' जैसा हो गया है। यह बात संजय गांधी अस्पताल में स्पष्ट रूप से दिख रही है। मरीज और उनके परिजन बेबसी की हालत में हैं, क्योंकि उनके पास शायद कोई 'रसूख' नहीं है जो उन्हें एक अदद AC वाले कमरे या कम से कम एक चालू पंखे की सुविधा दिला सके। ऐसे में रीवा में सरकारी अस्पताल की हालत कैसी है, यह देखना बेहद निराशाजनक है।

अस्पताल प्रबंधन और शासन में बैठे नुमाइंदे शायद यह भूल जाते हैं कि जब वे बीमार पड़ते हैं, तो देश के जाने-माने या नामचीन निजी अस्पतालों में अपना उपचार करवाते हैं। लेकिन जब कोई असहाय, गरीब व्यक्ति इस सरकारी अस्पताल में भर्ती होता है, तो उसकी बेबसी के आंसू ही उसके उपचार का हिस्सा बन जाते हैं। यह स्थिति यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर सरकारी अस्पताल में लापरवाही क्यों हो रही है?

मेन ICU के बगल में तड़पते मरीज: मानवता पर सवाल 
यह और भी शर्मनाक है कि मरीज मेन ICU के ठीक बगल में गर्मी से तड़प रहे हैं। ICU जैसे संवेदनशील क्षेत्र के पास भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव, अस्पताल प्रशासन की संवेदनहीनता को दर्शाता है। एक बार स्वास्थ्य मंत्री को इन मरीजों से मिलना चाहिए, उनकी बेबसी देखनी चाहिए। शायद तब उन्हें समझ आए कि संजय गांधी अस्पताल में सुविधाओं का ढिंढोरा पीटना बंद करके, जमीनी स्तर पर काम करने की कितनी आवश्यकता है। मरीजों को गर्मी से राहत कैसे मिलेगी, यह एक गंभीर प्रश्न है जिसका उत्तर देना आवश्यक है।

बजट आता है, पर सुविधाएं नदारद: भ्रष्टाचार की बू
यह सर्वविदित है कि स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा भारी-भरकम बजट आवंटित किया जाता है। संजय गांधी अस्पताल के लिए भी पर्याप्त बजट आता होगा। फिर भी AC जैसे बुनियादी उपकरण खराब पड़े हैं और मरीजों को मूलभूत सुविधाएँ भी नहीं मिल पा रही हैं। यह सीधे तौर पर भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है, जहां जिम्मेदार अधिकारी जनता के पैसे का दुरुपयोग कर रहे हैं और मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। आखिर सारा बजट आता है तो सब खा लेते हैं? रीवा के स्वास्थ्य सिस्टम में क्या कमी है, यह अब सबको दिख रहा है।

जिम्मेदार अधिकारी गायब, सिस्टम 'सो रहा है' 
इस गंभीर स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है? मरीजों की ऐसी दयनीय हालत के बावजूद कोई भी जिम्मेदार अधिकारी सामने नहीं आ रहा है। ऐसा लगता है कि पूरा सिस्टम सो रहा है और जिम्मेदार लोग गायब हैं, कोई उनका अता-पता नहीं है। यह दिखाता है कि जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी किस हद तक पहुंच चुकी है। संजय गांधी अस्पताल का प्रबंधन क्या कर रहा है, यह एक बड़ा सवाल है। क्या सरकार इस पर ध्यान देगी, यह भी देखना बाकी है।

मुख्यमंत्री और उच्च अधिकारियों से सीधी अपील 
यह सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले के सबसे बड़े अस्पताल की यह हालत अगर है, तो प्रदेश के अन्य दूरदराज के इलाकों के सरकारी अस्पतालों का हाल क्या होगा, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।

मुख्यमंत्री और संबंधित उच्च अधिकारियों को इस मामले में तत्काल संज्ञान लेना चाहिए। केवल जांच समितियां बनाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि तत्काल कार्रवाई करते हुए दोषियों को सजा मिलनी चाहिए और मरीजों को राहत पहुंचाने के लिए युद्ध स्तर पर काम शुरू होना चाहिए। रीवा में सरकारी अस्पताल की हालत कैसी है, इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

यह केवल संजय गांधी अस्पताल का मामला नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य सिस्टम की विफलता का प्रतीक है। जब तक जमीनी हकीकत पर ध्यान नहीं दिया जाएगा और जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार असंभव है। मरीजों की हालत होगी सोचने वाली बात है, लेकिन कोई सोच नहीं रहा।

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