रीवा का दिल दहलाने वाला सच: 'अस्पताल' या 'मौत का सौदागर'? 2000 रुपये के लिए मासूम का शव एंबुलेंस से उतारा

रीवा के संजय गांधी अस्पताल में इलाज में लापरवाही और एम्बुलेंस के नाम पर 2000 रुपए की वसूली, मासूम का शव एम्बुलेंस से उतारकर परिजनों को अपमानित किया गया, पूरे विंध्य में आक्रोश
ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा जिले में एक बार फिर मानवता को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई है। संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल में एक मासूम बच्चे की मौत के बाद, उसके शव को घर ले जाने के लिए परिवार से 2000 रुपये की मांग की गई। जब परिवार ने एक निजी एम्बुलेंस से शव को ले जाने का प्रयास किया, तो अस्पताल के सुरक्षाकर्मियों ने उसे वाहन से नीचे उतार दिया। इस घटना के बाद अस्पताल परिसर में जमकर हंगामा हुआ, जिससे माहौल तनावपूर्ण हो गया। इस पूरे मामले ने अस्पताल प्रशासन की कार्यप्रणाली और संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
एम्बुलेंस विवाद: पैसों का खेल या नियमों का हवाला?
बच्चे के परिवार ने आरोप लगाया कि एक अनाधिकृत एम्बुलेंस चालक ने उनसे 2000 रुपये की मांग की। जब वे बच्चे के शव को लेकर एम्बुलेंस से रामपुर बघेलान जा रहे थे, तो अस्पताल के सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोका और अभद्रता करते हुए शव को नीचे उतरवा दिया। वहीं, अस्पताल अधीक्षक डॉक्टर राहुल मिश्रा का कहना है कि प्रबंधन को जब यह जानकारी मिली कि निजी एम्बुलेंस चालक अवैध रूप से पैसों की मांग कर रहा है, तो उन्होंने तुरंत हस्तक्षेप किया और शव को अस्पताल के शव वाहन से भेजने की व्यवस्था की। हालांकि, सवाल यह उठता है कि क्या अस्पताल परिसर में निजी एम्बुलेंस को प्रवेश करने की अनुमति है? यदि नहीं, तो वह वहां तक कैसे पहुंची?
परिजनों का गंभीर आरोप: इलाज में लापरवाही से हुई बच्चे की मौत
एम्बुलेंस विवाद के साथ-साथ, परिजनों ने अस्पताल पर एक और बड़ा आरोप लगाया है। उनका कहना है कि उन्होंने अपने बच्चे को उपचार के लिए पीडियाट्रिक विभाग में भर्ती कराया था, लेकिन वहां उसका ठीक से उपचार नहीं किया गया, जिसके कारण उसकी मौत हो गई। परिजनों का यह आरोप बेहद गंभीर है और यह दर्शाता है कि सिर्फ एम्बुलेंस का मामला नहीं, बल्कि अस्पताल की इलाज व्यवस्था पर भी लोगों को भरोसा नहीं है। इस तरह के आरोप अक्सर सरकारी अस्पतालों में देखने को मिलते हैं, जहां मरीज और उनके परिवार को उचित इलाज और सम्मान नहीं मिल पाता।
अस्पताल प्रशासन की सफाई: नियमों से अनजान हैं परिजन
इस पूरे घटनाक्रम पर अस्पताल प्रशासन ने अपनी सफाई पेश की है। अधीक्षक डॉ. राहुल मिश्रा का कहना है कि परिजनों को अस्पताल के नियमों की जानकारी नहीं थी, इसलिए यह विवाद हुआ। उन्होंने बताया कि अस्पताल में शव को ले जाने के लिए उचित वाहन की व्यवस्था है और निजी एम्बुलेंस को पैसे देने की कोई जरूरत नहीं थी। हालांकि, परिजनों का कहना है कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी और न ही उन्हें अस्पताल के वाहन के बारे में बताया गया। यह अस्पताल प्रबंधन की जिम्मेदारी है कि वह मरीजों और उनके परिवारों को सभी नियमों और सुविधाओं के बारे में सही जानकारी दे।
शव वाहन से जाने की व्यवस्था
अस्पताल के अधीक्षक का कहना है कि जैसे ही उन्हें इस मामले की जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत अस्पताल के शव वाहन की व्यवस्था की ताकि बच्चे के शव को सम्मानपूर्वक उसके घर तक पहुंचाया जा सके। उनका यह कदम सराहनीय है, लेकिन सवाल यह है कि यह स्थिति ही क्यों बनी? यदि पहले ही परिजनों को सही जानकारी और सहायता दी गई होती, तो यह पूरा विवाद पैदा ही नहीं होता। यह घटना सरकारी अस्पतालों में व्याप्त अव्यवस्था और संवेदनहीनता को उजागर करती है।
- क्या सरकारी अस्पताल में मरीजों और उनके परिजनों को नियमों की जानकारी देना स्टाफ की जिम्मेदारी नहीं है?
- यदि निजी एम्बुलेंस को पैसे वसूलने से रोकना ही था, तो क्या शव को उतारकर अपमानित करना ही एकमात्र तरीका था?
- क्या यह प्रशासन की मिलीभगत नहीं है कि निजी एम्बुलेंस परिसर में आकर इस तरह की वसूली करती हैं?
व्यवस्था की आड़ में वसूली का खेल
संजय गांधी अस्पताल में यह कोई पहली घटना नहीं है। अक्सर मरीजों और उनके परिजनों से अलग-अलग सेवाओं के लिए पैसे वसूलने की शिकायतें आती रहती हैं। यह घटना भी उसी वसूली सिंडिकेट का हिस्सा लग रही है, जहां कथित रूप से अनाधिकृत लोग अस्पताल परिसर में सक्रिय रहते हैं। सरकारी शव वाहन की सुविधा होने के बावजूद निजी एम्बुलेंस का सक्रिय रहना सीधे तौर पर सिस्टम की कमजोरी को दर्शाता है। यह एक गंभीर मुद्दा है कि कैसे गरीब और मजबूर लोगों को इलाज के बाद भी 'दलालों' के चंगुल में फंसना पड़ता है।
जिम्मेदार सो रहे हैं या व्यवस्था ही ठप है?
इस घटना ने पूरे विंध्य क्षेत्र में आक्रोश पैदा कर दिया है। लोग सोशल मीडिया पर और स्थानीय स्तर पर यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या रीवा के सरकारी अस्पताल के जिम्मेदार अधिकारी सो रहे हैं? या फिर पूरी व्यवस्था ही ठप हो गई है? एक तरफ सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ जमीनी हकीकत कुछ और ही है। इस तरह की घटनाएं सरकारी व्यवस्था की पोल खोलती हैं और यह बताती हैं कि कैसे जवाबदेही की कमी और भ्रष्टाचार ने पूरे सिस्टम को खोखला कर दिया है।
निष्कर्ष: मासूम की मौत पर भी क्यों राजनीति?
रीवा के संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल में हुई यह घटना सिर्फ एक एम्बुलेंस विवाद नहीं, बल्कि एक मासूम की मौत के बाद उसके परिवार को हुए मानसिक आघात का भी मामला है। जहां एक तरफ परिजन अपने बच्चे को खोने के दुख में डूबे थे, वहीं उन्हें अस्पताल में दुर्व्यवहार और पैसों की वसूली का सामना करना पड़ा। इस तरह की घटनाएं बार-बार होती हैं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। यह जरूरी है कि सरकार इस मामले का संज्ञान ले और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए, ताकि किसी और परिवार को इस तरह के दुखद अनुभव से न गुजरना पड़े।