"रीवा का 'अंधेर नगरी' अस्पताल: डीन की सुस्ती ने छीनी मरीजों की ऑक्सीजन, वेंटिलेटर पर मरीज और जांच मशीन का सामान गायब! आखिर किसकी मर्जी से हुआ ये घातक खेल?" प्राइवेट लैब की चांदी!"
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा के सबसे बड़े अस्पताल, संजय गांधी स्मृति चिकित्सालय (SGMH) से एक ऐसी खबर सामने आई है जो स्वास्थ्य व्यवस्था की संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। अस्पताल प्रशासन ने एक ऐसा फैसला लिया है जिससे ICU में भर्ती सैकड़ों गंभीर मरीजों की जान पर बन आई है। अस्पताल के मेडिसिन विभाग में होने वाली अनिवार्य ABG (Arterial Blood Gas) जांच अचानक बंद हो गई है। इसके पीछे की वजह जानकर आप दंग रह जाएंगे—अस्पताल के पास उपलब्ध एकमात्र लाइफ-सेविंग रिएजेंट कार्टेज को यहाँ से हटाकर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल भेज दिया गया है।
लापरवाही की इनसाइड स्टोरी: 'दान' में दे दी मरीजों की जिंदगी
संजय गांधी अस्पताल के मेडिसिन, सर्जरी, नेफ्रो, शिशु रोग और गायनी विभाग के ICU वार्डों में हर समय सैकड़ों मरीज मौत से जंग लड़ रहे होते हैं। इन मरीजों के लिए ABG जांच आक्सीजन की तरह जरूरी है। मेडिसिन विभाग के पास दो कार्टेज आए थे, जिनमें से एक उपयोग हो रहा था और दूसरा बैकअप के लिए था।
इसी बीच, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के CTVS (Cardiothoracic and Vascular Surgery) विभाग में कार्टेज खत्म हो गया। वहाँ के अधीक्षक ने पत्र लिखा और SGMH के विभागाध्यक्ष (HOD) ने बिना दूरगामी परिणाम सोचे अपना सुरक्षित कार्टेज 'दान' कर दिया। नतीजा यह हुआ कि सुपर में भर्ती मुट्ठी भर मरीजों की जांच तो शुरू हो गई, लेकिन SGMH के मुख्य अस्पताल में भर्ती सैकड़ों मरीजों के लिए 'जांच का ताला' लग गया।
ABG जांच का विज्ञान: इसके बिना इलाज 'अंधेरे में तीर' जैसा
आम आदमी के लिए यह सिर्फ एक टेस्ट हो सकता है, लेकिन वेंटिलेटर या ICU में भर्ती मरीज के लिए यह जीवन-मरण का सवाल है।
- PH लेवल की माप: यह जांच बताती है कि मरीज के खून में अम्लता (Acidity) कितनी है।
- गैसों का संतुलन: खून में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का सटीक स्तर पता चलता है।
- अंगों की स्थिति: इससे डॉक्टर समझ पाते हैं कि मरीज के फेफड़े और किडनी सही से काम कर रहे हैं या नहीं।
वर्तमान में SGMH के डॉक्टर बिना रिपोर्ट के सिर्फ अंदाजे पर इलाज कर रहे हैं, जिससे इन्फेक्शन और मल्टी-ऑर्गन फेल्योर का खतरा बढ़ गया है।
सप्लाई चेन की विफलता: 28 दिन की लाइफ और डीन कार्यालय की सुस्ती
इस पूरे संकट की जड़ में श्याम शाह मेडिकल कॉलेज (SSMC) के डीन कार्यालय की लेटलतीफी बताई जा रही है।
- कार्टेज की लाइफ: ABG मशीन में लगने वाले एक कार्टेज की शेल्फ लाइफ सिर्फ 28 दिन होती है और इससे अधिकतम 750 जांचें की जा सकती हैं।
- स्टोरेज की सीमा: इसे ज्यादा समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता, इसलिए नियमित ऑर्डर देना अनिवार्य है।
- ऑर्डर में देरी: भोपाल स्थित सप्लाई कंपनी को समय पर भुगतान और ऑर्डर न मिलने के कारण सप्लाई रुक गई। डीन कार्यालय की इस प्रशासनिक चूक की सजा आज गरीब मरीज भुगत रहे हैं।
ग्राउंड रियलिटी: गरीबों की जेब पर डाका और प्राइवेट लैब की चांदी
SGMH में जांच बंद होने का सीधा फायदा शहर के निजी पैथोलॉजी सेंटरों को मिल रहा है। गंभीर मरीजों के परिजन पागलों की तरह अस्पताल से बाहर भाग रहे हैं ताकि समय पर जांच करा सकें। एक ओर मरीज की सांसें उखड़ रही हैं, दूसरी ओर परिजनों को बाहर मोटी रकम चुकानी पड़ रही है। यह स्थिति तब है जब सरकार 'नि:शुल्क जांच' का दावा करती है।
सुपर स्पेशलिटी का 'VVIP' कल्चर बनाम आम मरीज
सुपर स्पेशलिटी के CTVS विभाग में ओपन हार्ट सर्जरी वाले मरीज होते हैं, जहाँ हर आधे घंटे में जांच की जरूरत होती है। वहाँ की मशीन पर SGMH के सामान्य मरीजों की जांच नहीं लगाई जाती। ऐसे में SGMH का कार्टेज वहां भेज देना "गरीब का हक मारकर अमीर को देने" जैसा साबित हो रहा है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. SGMH रीवा में ABG जांच क्यों बंद है? अस्पताल के पास उपलब्ध रिएजेंट कार्टेज को सुपर स्पेशलिटी अस्पताल भेज दिया गया है और नए कार्टेज की सप्लाई अभी तक नहीं हुई है।
2. ABG जांच न होने से मरीजों को क्या खतरा है? बिना इस जांच के डॉक्टरों को मरीज के शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर का पता नहीं चलता, जिससे गलत इलाज या मौत का खतरा बढ़ जाता है।
3. इस लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार है? प्रारंभिक तौर पर मेडिकल कॉलेज के डीन कार्यालय और सप्लाई कंपनी के बीच समन्वय की कमी को मुख्य कारण माना जा रहा है।
4. क्या प्राइवेट में यह जांच उपलब्ध है? हाँ, लेकिन प्राइवेट लैब में इसके लिए मोटी रकम वसूली जा रही है, जिससे गरीब मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है।