रीवा SGMH में बड़ी लापरवाही: A+ मरीज को थमा दी O+ की पर्ची, जागरूक पति ने 'यमराज' के गेट से पत्नी को खींचा 

 
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संजय गांधी अस्पताल में महिला मरीज को गलत ब्लड ग्रुप की पर्ची दी। पति की सतर्कता से बची जान। अधीक्षक ने 'ठंड' को बताया गलती की वजह।

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के रीवा स्थित संजय गांधी स्मृति चिकित्सालय (SGMH) में एक ऐसी लापरवाही सामने आई है, जो किसी की जान ले सकती थी। अस्पताल के ब्लड बैंक ने एक महिला मरीज की जांच रिपोर्ट में ब्लड ग्रुप ही बदल दिया। गनीमत रही कि मरीज के परिजन शिक्षित और जागरूक थे, जिन्होंने समय रहते इस घातक चूक को पकड़ लिया, अन्यथा अस्पताल के भीतर एक बड़ी अनहोनी तय थी।

मरीज को मिली दो अलग-अलग ग्रुप्स की पर्चियां।

मरीज को मिली दो अलग-अलग ग्रुप्स की पर्चियां।

जागरूकता ने बचाई जान: पति की एक नजर और टल गया हादसा 
नईगढ़ी निवासी सेवानिवृत्त कर्मचारी उमेश कुमार यादव अपनी पत्नी के घुटने के ऑपरेशन (Knee Replacement) के लिए अस्पताल आए थे। डॉक्टरों ने ऑपरेशन से पहले खून की व्यवस्था करने को कहा।
उमेश यादव ने बताया कि उनकी पत्नी का ब्लड ग्रुप 'A पॉजिटिव' है और उन्हें पहले भी इसी ग्रुप का खून चढ़ाया जा चुका है। लेकिन जब वे ब्लड बैंक पहुंचे और वहां के टेक्नीशियन ने रिपोर्ट दी, तो उसमें ग्रुप 'O पॉजिटिव' लिखा था। उमेश ने तुरंत इस पर आपत्ति जताई और हंगामा शुरू कर दिया। उनकी सतर्कता ने उनकी पत्नी को गलत खून चढ़ने से बचा लिया।

अस्पताल अधीक्षक का 'ठंड वाला तर्क' और तकनीकी चूक
जब यह मामला अस्पताल अधीक्षक डॉ. राहुल मिश्रा के पास पहुँचा, तो उन्होंने इस लापरवाही के पीछे मौसम का हवाला दिया।

क्या है एग्लूटिनेशन
अधीक्षक ने तर्क दिया कि ठंड के मौसम में कभी-कभी ब्लड सैंपल में 'एग्लूटिनेशन' (खून का थक्का जमना) हो जाता है, जिससे जांच के परिणाम भ्रामक (False Positive/Negative) आ सकते हैं।

हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए टेक्नीशियनों को केवल 'स्लाइड विधि' पर भरोसा नहीं करना चाहिए था। उन्हें 'ट्यूब विधि' से क्रॉस-वेरिफिकेशन करना अनिवार्य था, जो नहीं किया गया। यह सीधे तौर पर प्रोटोकॉल का उल्लंघन और गंभीर मानवीय चूक है।

अगर गलत खून चढ़ जाता तो क्या होता? 
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, यदि किसी मरीज को गलत ग्रुप का खून (जैसे A+ को O+) चढ़ा दिया जाए, तो शरीर में 'एक्यूट हेमोलिटिक ट्रांसफ्यूजन रिएक्शन' हो सकता है। इसमें शरीर का इम्यून सिस्टम चढ़ाए गए खून की कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है, जिससे किडनी फेलियर, शॉक और कुछ ही मिनटों में मरीज की मौत हो सकती है।

नोटिस की खानापूर्ति: क्या कार्रवाई केवल कागजों तक सीमित रहेगी? 
मामले के तूल पकड़ने के बाद दो कर्मचारियों को नोटिस थमा दिया गया है। लेकिन क्या एक 'नोटिस' उस सदमे की भरपाई कर सकता है जो मरीज के परिवार ने झेला है? इस तरह की घटनाओं के लिए केवल छोटे कर्मचारियों पर गाज गिराना काफी नहीं है, इसके लिए पूरी चैन की जवाबदेही तय होनी चाहिए।

निष्कर्ष: अस्पताल आएं तो आंखें खुली रखें 
यह घटना सिखाती है कि सरकारी सिस्टम पर आंख मूंदकर भरोसा करना जानलेवा हो सकता है। रीवा SGMH की यह लापरवाही सिस्टम की सड़न को दर्शाती है। आज उमेश यादव की पत्नी बच गईं, लेकिन कल किसी अनपढ़ या सीधे-साधे इंसान के साथ यह 'खूनी खेल' दोबारा खेला जा सकता है। दोषियों को सस्पेंड करना और उन पर एफआईआर (FIR) दर्ज करना ही एकमात्र न्याय होगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. SGMH रीवा में क्या मामला हुआ था? ब्लड बैंक ने 'A पॉजिटिव' मरीज को 'O पॉजिटिव' ग्रुप की पर्ची जारी कर दी थी, जिससे गलत खून चढ़ने का खतरा पैदा हो गया था।
Q2. क्या गलत ब्लड ग्रुप से मौत हो सकती है? हाँ, गलत ब्लड ट्रांसफ्यूजन से शरीर में गंभीर रिएक्शन (Reaction) हो सकता है, जो जानलेवा साबित होता है।
Q3. अस्पताल अधीक्षक ने क्या सफाई दी? अधीक्षक डॉ. राहुल मिश्रा ने कहा कि ठंड की वजह से सैंपल में थक्का जमने (Agglutination) के कारण रिपोर्ट में गड़बड़ी हुई।
Q4. परिजनों को क्या सावधानी बरतनी चाहिए? मरीज का ब्लड ग्रुप हमेशा पहले से पता रखें और अस्पताल से मिलने वाली पर्ची या ब्लड बैग पर लिखे ग्रुप का मिलान स्वयं जरूर करें।
Q5. दोषी कर्मचारियों पर क्या कार्रवाई हुई? दो कर्मचारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है।

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