रीवा के 'मेडिकल हब' सपने को लगा 'महा-झटका'! SSMC से एक साथ 3 डॉक्टरों का इस्तीफा, स्वास्थ्य सेवा खतरे में

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा का प्रतिष्ठित श्याम शाह मेडिकल कॉलेज (SSMC) और उससे जुड़ा सुपर स्पेशलिटी अस्पताल एक बड़े संकट का सामना कर रहा है। एक ऐसे समय में जब मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री, जो रीवा से ही आते हैं, इस शहर को 'मेडिकल हब' बनाने का सपना देख रहे हैं, उसी जिले में डॉक्टरों का लगातार नौकरी छोड़कर जाना एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। हाल ही में, एक साथ तीन प्रमुख डॉक्टरों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है, जिससे कॉलेज और अस्पताल प्रशासन में हड़कंप मच गया है। इस सामूहिक इस्तीफे ने न केवल अस्पताल के भीतर व्यवस्थाओं पर सवाल उठाए हैं, बल्कि क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं के भविष्य पर भी गहरा असर डालने की आशंका पैदा कर दी है।

यह स्थिति दर्शाती है कि सिर्फ बड़े सपने देखना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें साकार करने के लिए जमीनी हकीकत और कर्मचारियों की संतुष्टि पर भी ध्यान देना आवश्यक है। श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर क्यों छोड़ रहे हैं? यह सवाल अब आम जनता के साथ-साथ चिकित्सा जगत में भी गूंज रहा है।

इस्तीफे की वजहें: व्यक्तिगत, पेशेवर और आंतरिक संघर्ष
नौकरी छोड़ने वाले इन तीन प्रमुख चिकित्सकों में से दो सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के यूरोलॉजी विभाग से हैं, और एक गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल (जीएमएच) की स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। उनके इस्तीफे के पीछे अलग-अलग वजहें बताई जा रही हैं, जो कॉलेज और अस्पताल के अंदरूनी हालात को बयां करती हैं:

  • डॉ. विवेक शर्मा (यूरोलॉजिस्ट, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल): इन्होंने पारिवारिक कारणों का हवाला देते हुए नौकरी छोड़ी है। यह एक व्यक्तिगत कारण हो सकता है, लेकिन अक्सर असंतोष भी इस तरह के फैसलों में भूमिका निभाता है।
  • डॉ. विजय शुक्ला (यूरोलॉजिस्ट, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल): इनके नौकरी छोड़ने की वजह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाई है। इस अस्पष्टता ने कई तरह की अटकलों को जन्म दिया है, जो अक्सर कार्यस्थल पर आंतरिक असंतोष या प्रबंधन के साथ समस्याओं की ओर इशारा करती हैं।
  • डॉ. कल्पना यादव (स्त्री रोग विशेषज्ञ, जीएमएच): बताया जा रहा है कि इनका विभाग में अन्य चिकित्सकों के साथ तालमेल नहीं बैठ पा रहा था। कार्यस्थल पर सामंजस्य की कमी और पेशेवर संबंधों में खटास डॉक्टरों के लिए असहज माहौल पैदा कर सकती है। इसके अतिरिक्त, वह अब अपना पूरा समय निजी अस्पताल में देना चाहती हैं, जिससे पता चलता है कि शायद उन्हें सरकारी व्यवस्था में वे अवसर या सुविधाएं नहीं मिल पा रही थीं जो उन्हें निजी क्षेत्र में मिल सकती हैं।

इन तीनों चिकित्सकों ने अपना इस्तीफा डीन को सौंप दिया है और उन्हें एक महीने का अल्टीमेटम दिया गया है। यह घटनाक्रम कॉलेज के भीतर चल रहे मुद्दों को उजागर करता है। SSMC में क्या समस्या चल रही है? यह सवाल इन इस्तीफों के बाद और गहरा गया है।

रीवा को मेडिकल हब बनाने का सपना और जमीनी हकीकत
उपमुख्यमंत्री, जो स्वयं रीवा से आते हैं, का यह सपना है कि रीवा को मध्य प्रदेश का एक प्रमुख 'मेडिकल हब' बनाया जाए। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सुपर स्पेशलिटी अस्पताल जैसी पहल की गई हैं। हालांकि, डॉक्टरों का लगातार इस्तीफा देना इस सपने को साकार करने की राह में बड़ी बाधा बन रहा है। एक 'मेडिकल हब' बनने के लिए सिर्फ इमारतें और उपकरण पर्याप्त नहीं होते, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाले और समर्पित डॉक्टरों की एक स्थिर टीम की आवश्यकता होती है। जब मौजूदा डॉक्टर ही संस्थान छोड़ रहे हैं, तो यह मेडिकल हब के दावे की जमीनी हकीकत से विपरीत स्थिति पैदा करता है। रीवा को मेडिकल हब कैसे बनाएं? इसके लिए सबसे पहले डॉक्टरों को रोकना और उन्हें बेहतर सुविधाएं देना जरूरी है।

यह स्थिति स्थानीय लोगों के लिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि वे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की उम्मीद लगाए बैठे हैं। डॉक्टरों का पलायन सीधे तौर पर मरीजों की देखभाल और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा। यदि सरकार और कॉलेज प्रबंधन इस समस्या पर गंभीरता से ध्यान नहीं देते हैं, तो 'मेडिकल हब' का सपना केवल एक सपना बनकर रह जाएगा।

सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की बदहाली: डॉक्टरों का पलायन
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, जिसे गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए अत्याधुनिक सुविधा केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था, वह स्वयं बदहाली का शिकार दिख रहा है। अस्पताल में पहले से ही डॉक्टरों के कई पद खाली हैं, और जो डॉक्टर कार्यरत हैं, वे भी बारी-बारी से नौकरी छोड़कर जा रहे हैं। इसके पहले भी आधा दर्जन से अधिक चिकित्सक यहां से जा चुके हैं। डिप्टी सीएम का सीधा ध्यान सुपर स्पेशलिटी अस्पताल पर रहता है, फिर भी कॉलेज प्रबंधन, खासकर डीन, यहां की जिम्मेदारियों का ठीक से निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं।

यह स्थिति डॉक्टरों को आवश्यक सुविधाएं, बेहतर कार्य वातावरण या सहयोग प्रदान करने में विफलता को दर्शाती है। सुविधाओं की कमी, अत्यधिक कार्यभार, प्रशासनिक उदासीनता या आंतरिक राजनीति जैसे कारण डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस या अन्य बेहतर संस्थानों में जाने के लिए मजबूर कर सकते हैं। जब डॉक्टर ही संतुष्ट नहीं होंगे, तो वे गुणवत्तापूर्ण सेवाएं कैसे प्रदान कर पाएंगे? सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में फैसिलिटीज कैसी हैं? डॉक्टरों के इस्तीफे से लगता है कि वहां का कार्य माहौल ठीक नहीं है।

जीएमएच की स्थिति: स्त्री रोग विशेषज्ञ का भी इस्तीफा
श्याम शाह मेडिकल कॉलेज से संबद्ध गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल (जीएमएच) की स्थिति भी बहुत अलग नहीं है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. कल्पना यादव का इस्तीफा जीएमएच में डॉक्टरों की कमी को और बढ़ाएगा। गायनी विभाग किसी भी अस्पताल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, खासकर जब बात महिला स्वास्थ्य और प्रसूति सेवाओं की हो। ऐसे विशेषज्ञ डॉक्टर का जाना मरीजों के लिए एक बड़ा नुकसान है। तालमेल न बैठ पाने और निजी क्षेत्र में अधिक समय देने की इच्छा, दोनों ही बातें सरकारी सेटअप में मौजूदा चुनौतियों को उजागर करती हैं।

यह दिखाता है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों को न सिर्फ अधिक दबाव झेलना पड़ता है, बल्कि उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन या समर्थन भी नहीं मिलता, जो उन्हें निजी प्रैक्टिस की ओर धकेलता है। GMH में डॉक्टर्स की कमी कैसे पूरी होगी? यह सवाल अब अस्पताल प्रशासन के सामने है।

पूर्व में भी हो चुके हैं इस्तीफे: डिप्टी सीएम का हस्तक्षेप
यह पहली बार नहीं है जब श्याम शाह मेडिकल कॉलेज और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल से डॉक्टरों ने नौकरी छोड़ी है। पहले भी कई चिकित्सक बेहतर सुविधाओं और प्रबंधन के अभाव में यहां से जा चुके हैं। कुछ समय पहले नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. रोहन द्विवेदी और सीटीवीएस सर्जन डॉ. राकेश सोनी ने भी इस्तीफा दे दिया था। यह तब की बात है जब डिप्टी सीएम ने हस्तक्षेप किया था। डिप्टी सीएम का सपना क्या है? रीवा को मेडिकल हब बनाने का, पर ये इस्तीफे उनके सपने को चुनौती दे रहे हैं।

यह घटना भी कॉलेज प्रबंधन की निष्क्रियता को दर्शाती है, क्योंकि उन्होंने डॉक्टरों को रोकने या व्यवस्थाएं सुधारने के लिए कोई खास प्रयास नहीं किया था। बल्कि, डिप्टी सीएम के व्यक्तिगत हस्तक्षेप से ही उन्हें वापस लाया जा सका था। यदि उच्च राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना कॉलेज अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाता, तो यह उसकी प्रशासनिक अक्षमता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

नए डीन के नेतृत्व पर सवाल: क्या बदल रही हैं व्यवस्थाएं?
नए डीन के आने से उम्मीद थी कि कॉलेज और अस्पताल की व्यवस्थाएं सुधरेंगी और डॉक्टरों का पलायन रुकेगा। हालांकि, ताजा इस्तीफे यह संकेत देते हैं कि हालात में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है, बल्कि वे और खराब हुए हैं। यह नए डीन के नेतृत्व और उनकी प्रशासनिक क्षमता पर सीधा सवाल उठाता है। क्या वे डॉक्टरों की समस्याओं को समझने और उनका समाधान करने में सक्षम नहीं हैं? या क्या आंतरिक ढांचे में कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें कोई भी डीन ठीक नहीं कर पा रहा है?

यूरोलॉजी विभाग से दो चिकित्सकों के इस्तीफे के बाद, उनकी कमी की भरपाई के लिए केवल एक नए चिकित्सक, डॉ. अभिनव द्विवेदी ने ही हाल ही में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में जॉइन किया है। यह एक गंभीर असंतुलन है और यह दर्शाता है कि कॉलेज में डॉक्टरों की भर्ती और उन्हें बनाए रखने की प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं। What are the challenges for Rewa Medical College Dean? उन्हें न सिर्फ डॉक्टरों को रोकना है, बल्कि नए विशेषज्ञों को आकर्षित भी करना है।

डॉक्टरों की कमी का मरीजों पर असर: गंभीर स्वास्थ्य संकट
डॉक्टरों का यह पलायन सीधे तौर पर रीवा और आसपास के क्षेत्रों के मरीजों को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं पर असर डालेगा। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी का मतलब है कि मरीजों को या तो लंबा इंतजार करना पड़ेगा, या उन्हें इलाज के लिए अन्य शहरों (जैसे इंदौर, भोपाल या जबलपुर) की यात्रा करनी पड़ेगी, जो गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए एक अतिरिक्त आर्थिक बोझ होगा। यूरोलॉजी और गायनी जैसे महत्वपूर्ण विभागों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी गंभीर बीमारियों वाले मरीजों और गर्भवती महिलाओं के लिए चिंता का विषय है। Rewa में health services का क्या होगा? यह स्थिति एक बड़े स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करती है, जिसे तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है।

भविष्य की चुनौतियां और समाधान की राह
श्याम शाह मेडिकल कॉलेज के सामने अब बड़ी चुनौतियां हैं। डॉक्टरों को रोकने और नए विशेषज्ञों को आकर्षित करने के लिए प्रबंधन को न केवल वेतन और भत्तों पर विचार करना होगा, बल्कि उन्हें बेहतर कार्य वातावरण, आधुनिक उपकरण, अनुसंधान के अवसर और पेशेवर विकास के लिए प्रोत्साहन भी प्रदान करना होगा। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है।

सरकार को भी इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान देना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि रीवा को 'मेडिकल हब' बनाने का सपना केवल चुनावी नारा न बनकर रहे, बल्कि उसे जमीनी हकीकत में बदला जाए। इसके लिए उच्च स्तर पर राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रभावी प्रशासनिक कदमों की आवश्यकता है। क्या श्याम शाह मेडिकल कॉलेज इस संकट से उबर पाएगा और रीवा के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर पाएगा? यह सवाल भविष्य के गर्भ में है।

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