Rewa Story Cover : “सुबह 5 बजे से महकती कमाई: कोठी कंपाउंड ने फूलों को बनाया सोने का बाजार”

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा। जब 1985 में बैसा गांव के रामदास शुक्ला के पिता ने अपने खेतों में सुगंधा‑रजनीगंधा के पौधे उगाकर माला बनाई, तब शायद उन्होंने नहीं सोचा होगा कि उनके पोड़ पर एक दिन पूरे शहर की खुशबू बिखेरने वाला फूल बाजार खड़ा हो जाएगा। कोठी कंपाउंड स्थित यह बाजार आज लाखों की आय देने वाला व्यावसायिक केंद्र बन चुका है।

 हाइलाइट्स

  • शुरुआत: 1985 में एक माला की कीमत सिर्फ ₹0.10

  • आज की आय: सालाना मात्र फूलों से 2.5–3 लाख रुपये

  • काम का समय: सुबह 5 बजे से खेत में काम, 7–8 बजे बाजार में बिक्री

  • फूलों की वैरायटी: सुगंधा, रजनीगंधा, जूही, बेला, चंपा, गुलदाउदी, डहलिया, अपराजिता, गेंदा, जरबेरा आदि

  • अन्य फसलें: आम, पपीता, केला, नारियल, नींबू, कटहल, चीकू, सागौन, धान, गेहूं

बोरी बिछाकर बिक्री से स्थायी बाजार तक का सफर

रामदास बताते हैं, “शुरुआत में हम केवल बोरी बिछाकर फूल बेचते थे। धीरे-धीरे मांग बढ़ी तो नगर निगम से शिव मंदिर के पास स्थायी स्थान मिला, और वहीं से कोठी कंपाउंड में फूलों का व्यवस्थित बाजार शुरू हुआ।”

सुबह 5 बजे से महकती मेहनत

प्रति दिन रामदास सुबह 5 बजे अपने खेत में पहुंचकर फूल तोड़ते हैं। 7–8 बजे के बीच वह कोठी कंपाउंड मार्केट में फूल पहुंचाकर बिक्री शुरू कर देते हैं। “भले ही अब फूलों का उत्पादन पहले जितना नहीं रहा, फिर भी सालाना 2.5–3 लाख की आमदनी होती है,” वे कहते हैं।

विभिन्न मौसम, विभिन्न फूल

फूल व्यापारी इस बाजार में वर्ष भर 15 से अधिक किस्मों का उत्पादन करते हैं—सुगंधा, जूही, बेला से लेकर गेंदा, जरबेरा तक। शादी‑ब्याह और त्योहारी सीजन में इनकी मांग चरम पर होती है, जबकि बरसात में कारोबार थोड़ी सुस्ती दिखाता है।

केवल फूल नहीं—फल और औषधीय पौधे भी

रामदास ने फूलों के साथ-साथ आम, पपीता, केला, नारियल, नींबू, कटहल, चीकू, सागौन, धान, गेहूं और चंदन जैसी फसलों व औषधीय पौधों की खेती कर कृषि में विविधता लाई है और प्राकृतिक संसाधनों का संतुलन भी बनाए रखा है।

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