13 करोड़ का कबाड़! ढाई महीने 'आराम' के बाद MRI ने दिया धोखा, रीवा में मचा हंगामा
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में प्रदेश की सबसे महंगी और हाईटेक एमआरआई मशीन स्थापित करने के पीछे मरीजों को बेहतर सुविधा देने का उद्देश्य था। 13 करोड़ रुपये की लागत वाली इस मशीन को डिप्टी सीएम की विशेष पहल पर स्वीकृत किया गया था। जुलाई महीने में इसका बड़े धूम-धाम से लोकार्पण भी हो गया। लेकिन, यह खुशी अल्पकालिक साबित हुई। उद्घाटन के ढाई महीने बाद, जब मशीन मुश्किल से चलना शुरू हुई, तो अचानक यह ठप पड़ गई। यह पूरी घटना सरकारी व्यवस्था में 'गजब फर्जीवाड़ा' और लापरवाही को उजागर करती है, जिससे जनता की गाढ़ी कमाई पर सवाल खड़े होते हैं।
क्यों 13 करोड़ की एमआरआई मशीन शुरू होने में इतना समय लगा?
मशीन इंस्टाल होने के बाद भी मरीजों के लिए जांच शुरू करने में पग-पग पर अड़चनें आईं। यह देरी प्रशासनिक उदासीनता का सीधा प्रमाण है।
- टेक्नीशियन की कमी: सबसे पहले मशीन चलाने के लिए योग्य टेक्नीशियन की नियुक्ति में कई दिन लग गए।
- ट्रेनिंग में समय: टेक्नीशियन की नियुक्ति के बाद उन्हें मशीन चलाने की ट्रेनिंग में 15 दिन का वक्त लगा दिया गया।
- डाई की अनुपलब्धता: ट्रेनिंग पूरी होने के बाद पता चला कि जांच के लिए आवश्यक डाई उपलब्ध नहीं है, जिसका आर्डर देने में और समय लगा।
- सुरक्षागार्ड का अभाव: अंत में, मशीन और कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षागार्ड और वार्डब्वाय की मांग ने भी काम को धीमा कर दिया।
इतनी सारी बाधाओं को पार करने के बाद, जब जांच मुश्किल से शुरू हुई थी, तो यह अचानक बंद हो गई।
एमआरआई मशीन क्यों खराब हुई? क्या एमआरआई मशीन कमरे के तापमान पर निर्भर करती है?
13 करोड़ की हाईटेक एमआरआई मशीन के अचानक ठप होने का मुख्य कारण एक मूलभूत तकनीकी आवश्यकता की पूर्ति न होना था। एमआरआई मशीनें उच्च तकनीक और संवेदनशील उपकरण होती हैं जो कमरे के तापमान पर पूरी तरह से निर्भर करती हैं।
- निश्चित तापमान की आवश्यकता: मशीन को सुचारू रूप से चलाने के लिए कमरे का तापमान 20 से 22 डिग्री सेल्सियस के बीच होना अनिवार्य है।
- एसी में खराबी: मंगलवार को अचानक रूम का टम्प्रेचर बढ़ गया।
- मशीन ने लोड लेना बंद किया: तापमान बढ़ते ही एमआरआई मशीन ने काम करना बंद कर दिया और स्क्रीन पर एरर आने लगा। मशीन लोड नहीं ले पाई, जिससे सारी जांचें ठप हो गईं।
यह दर्शाता है कि करोड़ो की मशीन लगाने के बावजूद, उसके सहायक उपकरण, जैसे कि एयर कंडीशनिंग सिस्टम (AC), को गंभीरता से नहीं लिया गया, जिससे यह बड़ी खराबी आई।
अधीक्षक को जानकारी तक क्यों नहीं दी गई?
इस मामले में सबसे गंभीर पहलू यह है कि मशीन खराब होने की सूचना अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अक्षय श्रीवास्तव को तक नहीं दी गई। उन्होंने मीडिया को बताया कि उन्हें मशीन खराब होने की जानकारी ही नहीं है, जबकि सुबह तक मशीन चालू थी। यह आंतरिक संचार की भयानक कमी और जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। एक 13 करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण मशीन का ठप होना और शीर्ष अधिकारी को इसकी जानकारी न होना, अस्पताल प्रशासन की लापरवाही पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
अब मरीजों को क्या करना पड़ रहा है?
एमआरआई जांच बंद होने से अब मरीजों को फिर से निजी केंद्रों (Private Centers) पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जहां एक ओर सरकारी अस्पताल में यह जांच सस्ते में होनी थी, वहीं अब मरीजों को अपनी जेब से ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। यह स्थिति उस उद्देश्य को पूरी तरह से विफल करती है जिसके लिए यह महंगी मशीन अस्पताल में स्थापित की गई थी। इस हाई-प्रोफाइल मशीन का लगातार काम न करना, रीवा के स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
निष्कर्ष
13 करोड़ रुपये की एमआरआई मशीन का पहले ढाई महीने तक न चलना और फिर मामूली तकनीकी खराबी से ठप हो जाना, सरकारी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में व्याप्त भ्रष्टाचार और प्रशासनिक शिथिलता का जीता-जागता उदाहरण है। यह आवश्यक है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए ताकि मरीजों को शीघ्रता से इस सुविधा का लाभ मिल सके।