रीवा सांसद के वेयर हाउस में 1.27 करोड़ का गबन: सच बोलने वाली लेडी अफसर सस्पेंड! पोर्टल से 58 किसानों का डेटा गायब! ,MLA ने किया पर्दाफ़ाश!

 
DGDG

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र एक बड़े घोटाले की गूँज से गरमा गया। रीवा जिले की सेमरिया सीट से कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा ने सदन में विजया वेयर हाउस में हुए 1.27 करोड़ रुपये के भुगतान गबन का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। यह मामला 58 किसानों के बकाया भुगतान से संबंधित है, जिन्होंने वेयर हाउस में अपना अनाज बेचा था। विधायक मिश्रा ने सीधा आरोप लगाया कि जिस वेयर हाउस में यह बड़ी वित्तीय अनियमितता हुई है, उसका संचालन एक भाजपा सांसद द्वारा करवाया जा रहा है, जिससे मामले को दबाने का प्रयास किया जा रहा है।

विधायक मिश्रा ने इस पूरी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए, जिसमें किसानों को उनका पैसा नहीं मिला, उल्टे उन्हें ही झूठा साबित करने की कोशिश की गई। यह सिर्फ एक वित्तीय अनियमितता नहीं है, बल्कि यह किसानों के सम्मान और कड़ी मेहनत पर हमला है।

गबन की राशि और प्रभावित किसान: किसानों का पैसा कैसे गबन हुआ? 
विधायक अभय मिश्रा के अनुसार, रीवा स्थित विजया वेयर हाउस में सरकारी खरीदी के दौरान 58 किसानों का कुल 1 करोड़ 27 लाख रुपये का भुगतान बकाया है। यह राशि किसी एक किसान की बड़ी रकम नहीं है, बल्कि छोटे और मझोले किसानों के 50 हजार से लेकर 1.5 लाख रुपये तक के भुगतान शामिल हैं।

सदन में विधायक मिश्रा ने कहा: "हमारे रीवा में एक विजया वेयर हाउस है। यह हमारे सांसद जी का वेयर हाउस है, जहां सरकारी लोग खरीदी करते हैं। इसी वेयर हाउस में 58 किसानों ने अपना गल्ला (अनाज) बेचा था, जिनका 1 करोड़ 27 लाख रुपये का भुगतान बकाया है।"

किसानों ने वेयर हाउस को अनाज बेचते समय रसीदें प्राप्त की थीं, जो उनके पास अब भी सबूत के तौर पर मौजूद हैं। इसके बावजूद, उन्हें यह कहकर भुगतान से वंचित किया जा रहा है कि उन्होंने वेयर हाउस को कोई अनाज बेचा ही नहीं है। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि भुगतान की प्रक्रिया में बड़ी हेराफेरी की गई है।

किसानों को चोर बता दिया, पोर्टल से नाम हटा दिए
गबन की यह कहानी यहीं नहीं रुकी। किसानों को उनका बकाया देने के बजाय, उन पर ही चोरी का आरोप लगा दिया गया। विधायक मिश्रा ने सदन को बताया कि किसानों के पास वैध रसीदें होने के बावजूद, उन्हें झूठा करार दिया गया।

सबसे गंभीर पहलू यह है कि साजिश के तहत किसानों के नाम और उनके उपज से संबंधित डेटा को सरकारी उपार्जन पोर्टल से हटा दिया गया। किसानों का पैसा कैसे गबन हुआ? इसका सीधा जवाब यह है कि पोर्टल से डेटा डिलीट करने का मतलब है कि सरकारी रिकॉर्ड में उनका कोई लेनदेन मौजूद ही नहीं है, जिससे उन्हें भुगतान न करने का एक तकनीकी आधार मिल गया।

सच बोलने वाली अधिकारी सस्पेंड, भ्रष्टों को मिली जांच: रीना श्रीवास्तव को क्यों सस्पेंड किया गया? 
इस पूरे मामले को दबाने के लिए प्रशासनिक स्तर पर भी गंभीर अनियमितताएं सामने आईं। जब किसानों ने विरोध किया, तो प्रशासन ने जांच शुरू की।

  • सच्चाई उजागर करने वाली अधिकारी: रीना श्रीवास्तव नामक एक अधिकारी ने अपनी जांच में किसानों के पक्ष में प्रतिवेदन दिया और स्वीकार किया कि किसानों का भुगतान बकाया है।
  • निलंबन की कार्रवाई: विधायक अभय मिश्रा ने आरोप लगाया कि रीना श्रीवास्तव को तुरंत यह कहकर निलंबित कर दिया गया कि उन्होंने 'रिपोर्ट क्यों दी?'
  • भ्रष्ट अधिकारियों को जांच: इसके बाद, कलेक्टर ने एक नई समिति गठित की, जिसमें कथित तौर पर भ्रष्ट अधिकारियों को जांच सौंपी गई। इन अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में किसानों को ही झूठा करार दे दिया।

विधायक ने तंज कसते हुए यह भी कहा कि जिन लोगों पर गबन के आरोप हैं, जैसे कि उपार्जन समिति का अध्यक्ष, वह आज स्कॉर्पियो में घूम रहा है, जबकि किसान न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं।

कलेक्टर ने माना किसानों को सही, पर तकनीकी पेंच
किसानों के लगातार आंदोलन के बाद, कलेक्टर ने दूसरी बार मामले की जांच करवाई। इस दूसरी जांच में कलेक्टर ने स्वीकार किया कि किसान सही हैं और उनका पैसा वास्तव में बकाया है। लेकिन अब सबसे बड़ी समस्या पोर्टल बन गई है। चूँकि किसानों के नाम और डेटा पहले ही जानबूझकर पोर्टल से डिलीट किए जा चुके हैं, इसलिए अब तकनीकी रूप से उनके भुगतान की प्रक्रिया अटकी हुई है। किसान अपना बकाया भुगतान कैसे प्राप्त करें? यह सवाल अब भी विधानसभा के पटल पर अनुत्तरित है।

यह मामला दिखाता है कि कैसे सरकारी पोर्टल और डेटा प्रबंधन की कमियों का इस्तेमाल भ्रष्टाचार को छिपाने और किसानों को परेशान करने के लिए किया जा सकता है। विधायक मिश्रा ने सदन को बताया कि आज किसान एक ओर खाद के लिए लाठी खा रहा है, और दूसरी ओर अपनी मेहनत के पैसे के लिए भटक रहा है।

आईटी एक्ट और गबन के कानूनी आयाम
इस मामले में केवल वित्तीय गबन ही नहीं, बल्कि डेटा हेराफेरी का भी मामला बनता है।

  • आपराधिक विश्वासघात (Criminal Breach of Trust): वेयर हाउस और उपार्जन समिति ने किसानों का अनाज अपने पास रखा, लेकिन उनका भुगतान नहीं किया, जो IPC की धारा 406 के तहत आ सकता है।
  • धोखाधड़ी (Cheating): किसानों को रसीदें देना और बाद में यह कहना कि अनाज नहीं खरीदा गया, IPC की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी का स्पष्ट मामला है।
  • आईटी एक्ट 2000 (IT Act 2000): किसानों के डेटा को जानबूझकर सरकारी पोर्टल से हटाना या डिलीट करना, डेटा की चोरी/विनाश और कंप्यूटर स्रोत दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ के दायरे में आता है (धारा 65, 66, 67)।

इस प्रकार, यह एक सुनियोजित साइबर जालसाजी का मामला है, जिसका सीधा असर गरीब किसानों पर पड़ा है।

भ्रष्टाचार और किसान: न्याय की लड़ाई 
रीवा वेयर हाउस घोटाला सिर्फ एक क्षेत्रीय समस्या नहीं है, बल्कि यह देशव्यापी किसान समस्याओं का प्रतिबिंब है, जहां बिचौलिए और भ्रष्ट अधिकारी उनकी मेहनत का फायदा उठाते हैं। विधायक अभय मिश्रा ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाकर किसानों के लिए न्याय की लड़ाई को नई दिशा दी है। अब देखना यह है कि विधानसभा में मुद्दा उठने के बाद सरकार किसानों को न्याय दिलाने के लिए क्या कर रही है और कब तक 1.27 करोड़ रुपये का यह बकाया भुगतान किसानों के खातों तक पहुंच पाएगा।

Related Topics

Latest News