रीवा: 'बच्चों का निवाला' चुरा रहा कौन? बिना बेसन की कढ़ी परोसने से लेकर सिलेंडर चोरी तक, मिड-डे मील का महाघोटाला : कलेक्टर के आदेश पर भी कार्रवाई होगी या सिर्फ जांच?

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) रीवा जिले के लाद गांव में स्थित एक प्राथमिक स्कूल में चल रही मिड-डे मील योजना ने एक बार फिर प्रशासन की लापरवाही को उजागर किया है। यह केवल एक स्कूल का मामला नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर मुद्दा है जो बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य से जुड़ा है। यहां बच्चों को पौष्टिक दाल, हरी सब्जियां और सलाद की जगह सिर्फ चावल और एक पानी जैसी कढ़ी परोसी जा रही है, जिसमें बेसन का नामोनिशान तक नहीं है। यह सीधे तौर पर सरकारी योजना के नियमों का उल्लंघन है, जिसका उद्देश्य बच्चों को स्कूल में पौष्टिक भोजन प्रदान कर उनके शारीरिक और मानसिक विकास को सुनिश्चित करना है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन बच्चों को सबसे ज्यादा पोषण की जरूरत है, उन्हें गुणवत्ताहीन और अधपका खाना दिया जा रहा है। इस घटना ने पूरे शिक्षा विभाग और संबंधित एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रीवा में मिड-डे मील में क्या गड़बड़ी है, यह जानने के लिए इस मामले की तह तक जाना जरूरी है।
दाल-सब्जी की जगह चावल-कढ़ी: मेन्यू की अनदेखी
सरकार ने मिड-डे मील योजना के तहत हर दिन के लिए एक निर्धारित मेन्यू बनाया है, ताकि बच्चों को विविधतापूर्ण और पौष्टिक आहार मिल सके। लेकिन लाद के प्राथमिक स्कूल में इस मेन्यू की खुलेआम अनदेखी की जा रही है। बच्चों को हफ्ते में कई बार मिलने वाली दाल, सलाद, पनीर या मौसमी सब्जियों की जगह केवल सूखे चावल और खट्टी कढ़ी परोसी जा रही है। स्कूल की छात्रा शुभी यादव ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा, "मुझे आज भी खाना बिल्कुल पसंद नहीं आया। सूखे चावल के साथ बिल्कुल खट्टी कढ़ी दे दी गई थी। कढ़ी में बेसन ही नहीं डाला गया था। गले में जाकर अटक गई।" यह दर्शाता है कि न केवल भोजन की गुणवत्ता खराब है, बल्कि उसे बनाने में भी घोर लापरवाही बरती जा रही है। यह सीधे तौर पर बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है, क्योंकि इस तरह के भोजन से उन्हें जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं। मिड-डे मील का मेन्यू क्या है, इस बारे में शिक्षकों और समूह की महिलाओं को पूरी जानकारी होनी चाहिए।
शिक्षकों की मजबूरी और समूह की लापरवाही
इस मामले में सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि स्कूल के प्रधानाचार्य कमल नारायण शर्मा ने खुद इस बात को स्वीकार किया है कि स्कूल में सालों से खराब खाना परोसा जा रहा है। उन्होंने बताया कि यह सब भोजन बनाने वाले समूह की लापरवाही के कारण हो रहा है। उन्होंने कहा, "हम क्या कर सकते हैं, यह समूह की लापरवाही है।" लेकिन, सवाल यह है कि यदि शिक्षकों को यह पता था कि बच्चों को पौष्टिक भोजन नहीं मिल रहा है, तो उन्होंने इसकी शिकायत उच्च अधिकारियों से क्यों नहीं की? दूसरी ओर, खाना बनाने वाली समूह की महिला विमला का बयान इस लापरवाही के पीछे की एक और दुखद कहानी बयां करता है। उन्होंने बताया, "सिलेंडर एक साल से खत्म है। इसलिए चूल्हे पर ही खाना बना रहे हैं। जो मिल जाता है वही बनाते हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें सलाद और सब्जी के लिए कुछ नहीं दिया जाता, इसलिए वे बच्चों को नहीं देती हैं। यह साफ दिखाता है कि समूह को न तो पर्याप्त संसाधन मिल रहे हैं और न ही पर्याप्त निर्देश दिए जा रहे हैं।
बच्चों की जुबानी, खाने की कहानी
सबसे दुखद पहलू यह है कि इस पूरी अव्यवस्था का खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। छात्रा शुभी यादव और छात्र प्रथम यादव जैसे कई बच्चों ने बताया कि उन्हें हर दिन खराब खाना दिया जाता है। प्रथम यादव ने कहा, "खाने में न सब्जी मिलती है और न ही सलाद मिलती है।" इसके अलावा, वीडियो में यह भी देखा गया कि बच्चों को खाने के बाद अपने बर्तन खुद ही धोने पड़ रहे हैं। यह स्थिति न केवल स्वास्थ्य और स्वच्छता के नियमों का उल्लंघन है, बल्कि बच्चों के आत्म-सम्मान पर भी असर डालती है। बच्चों को खुद बर्तन क्यों धोने पड़ रहे हैं, यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब शिक्षा विभाग और प्रशासन को देना होगा। यह सिर्फ खाने की गुणवत्ता का मामला नहीं, बल्कि स्कूल में बच्चों के साथ होने वाले व्यवहार का भी मामला है।
कलेक्टर का हस्तक्षेप: क्या होगी कार्रवाई?
मामला सामने आने के बाद, इसकी गंभीरता को देखते हुए रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल ने तुरंत संज्ञान लिया है। उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) को तत्काल मौके पर जाकर निरीक्षण करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कलेक्टर के इस हस्तक्षेप से उम्मीद जगी है कि इस मामले में दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी। रीवा कलेक्टर ने क्या कार्रवाई की है, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा, लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि केवल एक जांच तक ही यह मामला सीमित न रह जाए। प्रशासन को यह भी जांचना चाहिए कि क्या अन्य स्कूलों में भी यही हाल है? मिड-डे मील योजना के कार्यान्वयन में पारदर्शिता लाने और भोजन की गुणवत्ता की नियमित जांच सुनिश्चित करने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। समूह को पर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षण दिए जाने चाहिए, और शिक्षकों को भी इस योजना की निगरानी में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1: रीवा के लाद स्कूल में मिड-डे मील में क्या गड़बड़ी मिली?
A: स्कूल में बच्चों को निर्धारित मेन्यू के हिसाब से खाना नहीं मिल रहा था। उन्हें पौष्टिक सब्जियां, दाल और सलाद की जगह सिर्फ चावल और बिना बेसन की कढ़ी दी जा रही थी।
Q2: खाना बनाने वाली महिला ने क्या कारण बताया?
A: समूह की महिला ने बताया कि सिलेंडर एक साल से खत्म है और उन्हें सलाद या सब्जी के लिए कोई सामग्री नहीं दी जाती, इसलिए वे सिर्फ जो मिल जाता है वही बनाती हैं।
Q3: बच्चों को खुद बर्तन क्यों धोने पड़ रहे थे?
A: बच्चों को खुद बर्तन धोने पड़ रहे थे, जो कि स्वच्छता और शिष्टाचार के नियमों का उल्लंघन है। स्कूल प्रशासन और समूह ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
Q4: कलेक्टर ने इस मामले में क्या कार्रवाई की?
A: कलेक्टर प्रतिभा पाल ने जिला शिक्षा अधिकारी को तुरंत मौके पर जाकर निरीक्षण करने और विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
Q5: मिड-डे मील की गुणवत्ता कैसे जांचें?
A: मिड-डे मील की गुणवत्ता की जांच के लिए स्कूल प्रबंधन समिति, अभिभावक और स्थानीय प्रशासन के सदस्य नियमित रूप से निरीक्षण कर सकते हैं। खाने के मेन्यू और स्वच्छता के नियमों का पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।