चिकित्सा सेवा पर कलंक: हंगामा, ड्रामा और फिर... पैसे का खेल: क्या अस्पतालों पर आरोप लगाना एक नया धंधा है?
 

 
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रीवा के नामी मिनर्वा अस्पताल पर लगे आरोपों के पीछे छिपे अनसुलझे सवाल। क्या इलाज के बाद बिल से बचने के लिए ऐसे ड्रामे किए जाते हैं?

ऋतुराज द्विवेदी, रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) आजकल यह देखना बहुत आम हो गया है कि लोग किसी भी निजी अस्पताल पर, विशेष रूप से बड़े और प्रसिद्ध अस्पतालों पर, आसानी से आरोप लगा देते हैं। पहले इलाज करवा लो, लाखों का बिल बन जाने दो, और फिर जब पैसे देने की बारी आए तो हंगामा करना शुरू कर दो। यह एक तरह का 'धंधा' या 'पेशे' जैसा हो गया है। बिना किसी जांच या पुख्ता सबूत के, केवल एक-दूसरे का देखकर या सुनकर, लोग डॉक्टरों और अस्पतालों को बदनाम करने लगते हैं। ऐसा लगता है कि किसी भी अस्पताल के बाहर धरना, अनशन या 'ड्रामा' करने से बिल माफ हो जाएगा। यह प्रवृत्ति न केवल डॉक्टरों का मनोबल तोड़ती है बल्कि पूरी चिकित्सा प्रणाली पर जनता का विश्वास भी कम करती है।

रीवा का चिकित्सा केंद्र: क्या मिनर्वा अस्पताल वास्तव में सबसे बेहतर है?
जब बात रीवा शहर के स्वास्थ्य सुविधाओं की आती है, तो मिनर्वा अस्पताल (Minerva Hospital) का नाम सबसे पहले और सबसे सम्मान के साथ लिया जाता है। इसे शहर का सबसे बड़ा और सबसे बेहतर अस्पताल माना जाता है। यहाँ की सुविधाएं, आधुनिक उपकरण और डॉक्टर का व्यवहार, यह सब वहाँ जाने पर ही पता चलता है। यह वही अस्पताल है जिसने पूर्व में हुई एक गंभीर घटना में घायल हितेंद्रनाथ शर्मा का सफल इलाज किया था, जब उन्हें गोली लगी थी। उस समय भी इस अस्पताल की क्षमता और विश्वसनीयता पर कोई शक नहीं किया गया था। यह तथ्य अपने आप में साबित करता है कि Minarva Hospital सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि रीवा की स्वास्थ्य सेवा का एक मजबूत स्तंभ है।

आरोप-प्रत्यारोप का खेल: बिल से बचने की रणनीति?
हाल ही में हुए एक मामले में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है। एक व्यक्ति, जो 5 दिन पहले मृत हो चुके थे, उनके इलाज पर परिजनों द्वारा गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। ये आरोप ऐसे ही हैं जैसे अक्सर सुने जाते हैं: "गलत इंजेक्शन दे दिया", "दवाई का डोज ज्यादा दे दिया", "इलाज सही नहीं किया"। लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई है कि कोई भी MBBS डॉक्टर, जो वर्षों की पढ़ाई और अनुभव के बाद इस मुकाम पर पहुँचा है, वह जानबूझकर गलत दवाई या गलत इलाज नहीं करेगा। खासकर तब जब वह किसी बड़े और नामी अस्पताल में काम कर रहा हो।

कई मामलों में यह देखा गया है कि जब मरीज की स्थिति गंभीर होती है, तो डॉक्टर हर संभव प्रयास करते हैं। लेकिन जब परिणाम मनमुताबिक नहीं आता, तो परिजन अक्सर डॉक्टर की बातों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं और बाद में सारे आरोप उन पर ही लगा देते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चिकित्सा का विज्ञान हमेशा सफल नहीं हो सकता, और कई बार गंभीर बीमारियों में मरीज को बचाना मुश्किल होता है। ऐसे में, पैसे का मुद्दा उठाकर हंगामा करना और अस्पताल को बदनाम करना एक आसान रास्ता बन गया है।

NTPC इंजीनियर का मामला: आरोपों के पीछे की सच्चाई क्या है?
सतना के निवासी सम्पत लाल वर्मा, जो एनटीपीसी में इंजीनियर थे, उन्हें पैरालिसिस अटैक के बाद मिनर्वा अस्पताल में भर्ती कराया गया। उन्हें तुरंत ऑपरेशन की जरूरत थी। परिवार की सहमति से ऑपरेशन भी हुआ, लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें होश नहीं आया और उन्हें लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखा गया। इस दौरान इलाज का बिल भी लाखों में बन गया। अब, जब मरीज की मृत्यु हो चुकी है, तो परिजन आरोप लगा रहे हैं कि उनका गलत इलाज हुआ, जिससे उनकी किडनी फेल हो गई और उनकी मौत 5 दिन पहले ही हो चुकी थी।

इस तरह के आरोप लगाना आसान है, लेकिन क्या ये सच हैं? इन आरोपों को साबित करने के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं है। डॉक्टर ने भी तो इलाज किया होगा, दवाइयाँ दी होंगी, जाँचें कराई होंगी। क्या परिवार ने कभी डॉक्टर से खुलकर बात की? क्या उन्होंने डॉक्टर की सलाह को पूरी तरह समझा? अक्सर, परिजन डॉक्टर की बात नहीं सुनते, और बाद में सारा दोष उन पर मढ़ देते हैं। पुलिस ने भी शव को पीएम के लिए भेजा है। जब तक पीएम रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। यह भी संभव है कि ये आरोप केवल इसलिए लगाए जा रहे हों ताकि 20 लाख रुपए का बिल माफ हो जाए।

क्यों होता है ऐसा: डॉक्टरों पर विश्वास या संदेह?
यह सोचने वाली बात है कि लोग क्यों डॉक्टरों और अस्पतालों पर इतना आसानी से संदेह करने लगे हैं। क्या यह केवल पैसे का मामला है? या फिर लोगों में जागरूकता की कमी है? एक डॉक्टर का काम लोगों की जान बचाना होता है, न कि उन्हें नुकसान पहुंचाना। आज के समय में, जब मेडिकल क्षेत्र इतना विकसित हो चुका है, तब भी ऐसे आरोपों का लगना निराशाजनक है। यह न केवल डॉक्टरों और अस्पताल के स्टाफ के मनोबल को प्रभावित करता है, बल्कि समाज में चिकित्सा के प्रति एक नकारात्मक भावना भी पैदा करता है।

चिकित्सा उद्योग की चुनौतियाँ: लागत और जिम्मेदारी
हमें यह भी समझना चाहिए कि आज के निजी अस्पतालों को चलाने की लागत बहुत अधिक होती है। आधुनिक उपकरण, प्रशिक्षित स्टाफ, दवाइयां, और अन्य सुविधाओं का खर्च लाखों में होता है। ऐसे में, जब कोई मरीज 26 दिन तक वेंटिलेटर पर रहता है, तो उसका बिल स्वाभाविक रूप से लाखों में ही आएगा। यह कोई 'लूट' नहीं है, बल्कि सेवाओं का खर्च है। जिन अस्पतालों पर ऐसे मनगढ़ंत आरोप लगाए जाते हैं, उन्हें कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ती है, जिससे उनका समय, पैसा और प्रतिष्ठा तीनों का नुकसान होता है।

भविष्य की राह: कैसे बनेगा रीवा मेडिकल हब?
डिप्टी सीएम रीवा को एक मेडिकल हब बनाना चाहते हैं, लेकिन क्या यह तभी संभव है जब यहाँ के प्रतिष्ठित अस्पतालों पर इस तरह के निराधार आरोप लगाए जाते रहें? मिनर्वा अस्पताल जैसी संस्थाएं रीवा के मेडिकल हब बनने की रीढ़ हैं। अगर इन संस्थानों का मनोबल इस तरह के आरोपों से तोड़ा जाएगा, तो यह सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा। समाज के हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि डॉक्टरों पर आरोप लगाने से पहले एक बार सोचना चाहिए और तथ्यों का इंतजार करना चाहिए।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
प्रश्न: क्या मिनर्वा अस्पताल पर आरोप सही हैं?

उत्तर: इन आरोपों की सच्चाई अभी साबित नहीं हुई है। पुलिस जांच कर रही है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही इसका खुलासा होगा।

प्रश्न: क्या मरीज का बिल माफ करने के लिए आरोप लगाए गए?

उत्तर: यह केवल एक अनुमान है, लेकिन ऐसा अक्सर होता है कि पैसे बचाने के लिए लोग अस्पतालों पर आरोप लगाते हैं।

प्रश्न: क्या कोई डॉक्टर जानबूझकर गलत इलाज करता है?

उत्तर: किसी भी प्रशिक्षित और अनुभवी डॉक्टर से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। गलतियां हो सकती हैं, लेकिन जानबूझकर गलत इलाज करना बेहद दुर्लभ है।

प्रश्न: रीवा में मिनर्वा अस्पताल क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर: Minerva Hospital अपनी आधुनिक सुविधाओं, अनुभवी डॉक्टरों और आपातकालीन स्थितियों में सफल इलाज के लिए जाना जाता है।

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