Sunday big Borewell story : तीन साल में 15 बच्चे बोरवेल में गिरे : 8 की मौत, एक रेस्क्यू का खर्चा 40 लाख, पढ़िए आखिर क्यों खुले बोर छोड़ने पर कार्रवाई नहीं होती

 
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खुले बोरवेल में बच्चा गिर जाता है। सूचना मिलते ही सारे काम छोड़कर कलेक्टर-एसपी समेत पूरा अमला घटनास्थल पर पहुंच जाता है। फिर शुरू होता है रेस्क्यू ऑपरेशन। सारी कवायद बोर में फंसे बच्चे को बाहर निकालने के लिए होती है। लेकिन, कोई गारंटी नहीं होती कि बच्चा सुरक्षित रहेगा या नहीं। मप्र में पिछले तीन साल में 15 बार ऐसी तस्वीर देखने को मिली है। इन मामलों में 8 बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।

ताजा मामला रीवा के मनिका गांव का है। यहां 12 अप्रैल को खेत में काम कर रहा छह साल का मयंक खुले बोरवेल में जा गिरा। उसे बोरवेल से बाहर निकालने के लिए प्रशासन ने 45 घंटे का रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। लेकिन, उसकी जान नहीं बचाई जा सकी। इस घटना के बाद एक सवाल सबके मन में कौंध रहा है कि आखिर ऐसी घटनाएं बार बार क्यों होती है। इसे रोकने का क्या उपाय है ? आपको ये जानकर भी हैरानी होगी कि खुले बोर में गिरे बच्चे को बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन में जितना खर्च होता है उससे कई गुना कम खर्च बोर को ढंकने में है।

संडे स्टोरी में पढ़िए आखिर क्यों खुले बोर छोड़ने पर कार्रवाई नहीं होती। रेस्क्यू ऑपरेशन में कितना खर्च आता है। बोरवेल को बंद करने का तरीका क्या है। सरकार ने अब तक क्या नियम बनाए हैं और कौन इसके लिए जिम्मेदार है।

सबसे पहले जानिए वो तीन मामले जिनमें रेस्क्यू के बाद भी नहीं बची जान

सीहोर: 48 घंटे के रेस्क्यू के बाद भी नहीं बची सृष्टि की जान

जून 2023 में सीहोर के मुंगावली गांव में ढाई साल की सृष्टि घर के पीछे खेत में बने एक खुले बोरवेल में गिर गई। 48 घंटे के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद एक रोबोट की मदद से उसे बाहर निकाला गया, तब तक उसकी जान जा चुकी थी।

विदिशा: 24 घंटे तक मौत से जंग लड़ा 8 साल का लोकेश
14 मार्च 2023 में विदिशा के खेरखेड़ी गांव में आठ साल का लोकेश अहिरवार बोरवेल में जा गिरा। ये हादसा उस वक्त हुआ जब वह बंदरों को भगा रहा था। बोरवेल 60 फीट गहरा था और लोकेश 43 फीट पर फंस गया। एसडीआरएफ और एनडीआरएफ ने 24 घंटे की मशक्कत के बाद उसे निकाला, लेकिन लोकेश को बचाया नहीं जा सका।

राजगढ़: जिंदगी की जंग जीतकर भी हार गई 5 साल की माही
5 दिसंबर 2023 को राजगढ़ के पिपल्या रसोड़ा गांव में 5 साल की माही बच्चों के साथ खेल रही थी। खेलते-खेलते वह 30 फीट गहरे खुले बोरवेल में जा गिरी। सूचना के बाद मौके पर पहुंची एसडीआरएफ की टीम ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया। करीब 9 घंटे बाद उसे बाहर निकाला गया तब तक उसकी सांसें चल रही थी। उसे भोपाल के हमीदिया अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।

अब वो मामले जिनमें रेस्क्यू के बाद जिंदगी की जंग जीती

छतरपुर : 6 साल के दीपेंद्र की जान बची, उसे अंधेरे से लगता है डर

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22 जून 2022 को छतरपुर के नारायणपुरा गांव का रहने वाला दीपेंद्र खुले बोर गिर गया था। वह 25 फीट की गहराई में फंसा था। करीब सात घंटे की मशक्कत के बाद बचाव दल ने रस्सी के सहारे बच्चे को बाहर खींच लिया। दीपेंद्र और उसके परिवार के लिए यह चमत्कार जैसा था। दीपेंद्र के घर वालों को लगता है कि उनकी कुलदेवी ने उसे अपने हाथों पर बिठा लिया था। जिसकी वजह से वह बोरवेल में अधिक गहराई तक नहीं खिसक पाया और रस्सी के सहारे बाहर आ गया। दीपेंद्र अब पहली कक्षा में पढ़ता है। दीपेंद्र के पिता अखिलेश यादव कहते हैं कि जिस बोरवेल में वह गिरा उसका मुंह पत्थर से ढका हुआ था। बच्चा उस पत्थर पर खड़ा हुआ और पत्थर बोरवेल में खिसक गया।

छतरपुर : तीन साल की नैंसी ने रस्सी पकड़ी, नई जिंदगी मिली
26 फरवरी 2023 को बोरवेल में गिरी तीन साल की नैंसी को भी दूसरी जिंदगी मिली है। ललगुवां गांव में रहने वाली नैंसी की मां रोहिणी और पिता रवि खेत में काम करने आए थे। पास में ही नैंसी खेल रही थी। शाम 5 बजे वह 30 फीट गहरे खुले बोरवेल में गिर गई। सूचना मिलने पर प्रशासन की टीम ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया।

जेसीबी से बोरवेल के समानांतर गड्ढा खोदा गया। उसे ऑक्सीजन पहुंचाई गई। दूसरी तरफ बोरवेल में रस्सी डालकर उसे निकालने की कोशिश भी की जा रही थी। नैंसी ने रस्सी को पकड़ लिया। उसे धीरे धीरे ऊपर खींचकर सकुशल बाहर निकाला गया। बोरवेल से नैंसी को बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू टीम को 4 घंटे का वक्त लगा।

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छतरपुर : 10 घंटे के रेस्क्यू के बाद सकुशल बाहर निकलीं डेढ़ साल की दिव्यांशी
दो साल पहले 16 दिसम्बर 2021 को छतरपुर के दौनी गांव में ये हादसा हुआ था। डेढ़ साल की दिव्यांशी अपनी मां और बहनों के साथ खेत पर गई थी। मां खेत में पानी लगाने लगी और तीनों बच्चे खेलने में लग गए। खेलते-खेलते दिव्यांशी बोरवेल में गिर गई। दोपहर 3.30 बजे प्रशासन ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया। SDRF के साथ ही सेना की मदद ली गई और रेस्क्यू ऑपरेशन कामयाब रहा। 10 घंटे बाद दिव्यांशी को सकुशल बाहर निकाला गया।

बार-बार क्यों होती है ऐसी घटनाएं, कौन है जिम्मेदार?
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख अभियंता के.के. सोनगरिया का कहना है कि जो व्यक्ति बोर की खुदाई करवाता है वो ही सबसे पहले जिम्मेदार होता है। दरअसल, खेत मालिक जब बोरिंग करवाता है और उसमें पानी नहीं निकलता है तो उसे खुला छोड़ दिया जाता है। इस उम्मीद में कि भविष्य में पानी निकलेगा। के के सोनगरिया कहते हैं कि कायदे से सूखे बोर में केसिंग पाइप डालना चाहिए। 40 फीट का केसिंग पाइप का खर्च 10 से 15 हजार रु. होता है। गड्ढे में पाइप डालकर ऊपर तक छोड़ने पर बोरवेल दूर से ही दिख जाता है। इस पैसे को बचाने के लिए किसान खुला बोर छोड़ देते हैं जो हादसे की वजह बनता है।

जब तक हादसा न हो, तब तक सोया रहता है सिस्टम
बोरवेल में बच्चों के गिरने की घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त 2010 को एक आदेश पारित किया था। आदेश में कोर्ट ने व्यापक दिशा निर्देश दिए थे। कलेक्टरों को इनका पालन करवाने की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन, इनका पालन नहीं हुआ। प्रशासन तभी एक्टिव होता है जब कोई नया हादसा नहीं होता। 12 अप्रैल को रीवा में बच्चे के बोरवेल में गिरने के बाद कलेक्टर प्रतिभा पाल ने मातहत अधिकारियों की बैठक ली। तय हुआ कि पंचायत का अमला हर एक गांव में बोरवेल का रजिस्टर बनाए। उसमें दर्ज करे कि पुराने बोरवेल में से कितने बेकार हो चुके हैं। ऐसे बोरवेल को साइंटिफिक तरीके से बंद किया जाए।

अब जानिए कितना खर्चीला होता है रेस्क्यू ऑपरेशन
नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स यानी एनडीआरएफ, गाजियाबाद के रेस्क्यू इंचार्ज कुणाल तिवारी कई बचाव अभियान का नेतृत्व कर चुके हैं। वे कहते हैं कि बोरवेल में फंसे बच्चे को बचाने का ऑपरेशन बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। एक तो बोरवेल का डायमीटर बहुत छोटा होता है। उसमें बच्चा गिरता है तो वो पहले ही अपरिपक्व होता है। अंधेरी-तंग जगह फंसने की वजह से मेंटल ट्रॉमा के दौर से गुजरता है। ऐसे में वे सही तरीके से रिस्पॉन्स नहीं करते तो चुनौती और बढ़ जाती है। कुणाल के मुताबिक ऐसे ऑपरेशन में चार तरह की चुनौती सामने आती है।

  • पहली: फंसे हुए बच्चे को स्थिर रखना।
  • दूसरी: उस तक खाना-पानी और आक्सीजन पहुंचाना।
  • तीसरी: बच्चा फंसी हुई जगह से और गहराई में न जा पाए ।
  • चौथा: बच्चे तक पहुंचने के लिए तेजी से पैरेलल गड्ढा तैयार करना।

सरकार आज तक नियम नहीं बना सकी, अब ऐप से पंजीयन
खुले बोर में बच्चों के गिरने की बढ़ती घटनाओं को लेकर 12 जून 2023 को मप्र हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा था। एक अगस्त को सुनवाई के दौरान सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि सरकार राज्य में खुले बोरवेल और उससे होने वाली आपदा के संबंध में एक नीति बनाने वाली है।

इस साल 24 जनवरी को, अतिरिक्त महाधिवक्ता ने सरकार की ओर से हाईकोर्ट को बताया कि नीति का मसौदा तैयार है, इसे दो हफ्ते में जमा करेंगे। लेकिन, अभी तक कोई नीति नहीं बनाई गई है। इसी साल पीएचई विभाग ने सभी जिला कलेक्टरों को एक पत्र जारी किया, जिसमें 2010 में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन करने के लिए कहा गया था।
अब रीवा में एक और मासूम की जान जाने के बाद पीएचई विभाग ने बोरवेल खनन की निगरानी के लिए एक नया ऐप शुरू किया है।

अब बोरवेल करने वाले ठेकेदारों को इस पर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। नया बोरवेल खुदवाने या ठेकेदार का चयन भी ऐप के जरिए करना होगा। जमीन मालिक और खुदाई करने वाले ठेकेदार अथवा एजेंसी को बोरवेल का काम पूरा होने की सूचना इसी ऐप के जरिए देना होगी। अगर बोरवेल बंद होता है तो उसे 50-50-60 सैंटीमीटर के सीमेंट-कंक्रीट ब्लॉक से ढंकना होगा। इसकी फोटो ऐप पर अपलोड करनी होगी। अगर कहीं खुला बोरवेल दिखता है तो इसकी शिकायत भी इसी ऐप के जरिए होगी।

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