रीवा में ‘वर्दी का गुंडाराज’: महिला से मारपीट का वीडियो वायरल, फिर भी SP-IG-DGP खामोश

 
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रीवा के चोरहटा थाने के पुलिसकर्मियों ने एक महिला के घर में घुसकर मारपीट की। कोर्ट में मामला लंबित होने के बावजूद हुई इस कार्रवाई पर SP-IG-DGP मौन हैं।

मध्यप्रदेश में एक बार फिर पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इस बार मामला रीवा के चोरहटा थाने से जुड़ा है, जहाँ पुलिसकर्मियों ने कानून को ताक पर रखकर एक महिला के घर में घुसकर न सिर्फ उसके साथ मारपीट की, बल्कि संपत्ति को भी नुकसान पहुँचाया। यह घटना इसलिए भी ज्यादा गंभीर है क्योंकि यह विवाद पिछले तीन साल से न्यायालय में लंबित है, और बावजूद इसके, पुलिस ने निजी व्यक्तियों के कहने पर जबरन हस्तक्षेप किया।

पीड़िता अमृता सिंह का आरोप है कि 4 अगस्त, 2025 को कुछ पुलिसकर्मी और मकान मालिक नीलम वर्मा उनके घर में घुस आए। हैरानी की बात यह है कि कुछ पुलिसकर्मी सादे कपड़ों में थे, जबकि अन्य बिना नेम प्लेट वाली वर्दी पहने हुए थे। अमृता सिंह के अनुसार, ये पुलिसकर्मी प्राइवेट एजेंट की तरह काम कर रहे थे। उन्होंने न केवल उनके साथ गाली-गलौज और धक्का-मुक्की की, बल्कि महिला पुलिस आरक्षक विभा सिंह ने भी उनके साथ मारपीट की। यह सब एक मकान विवाद को लेकर हुआ, जिसके लिए अमृता सिंह ने मकान मालिक को पैसे भी दिए थे, लेकिन न तो रजिस्ट्री हुई और न ही पैसे वापस मिले।

महिला सुरक्षा के दावे और पुलिस की बर्बरता
जहाँ एक तरफ भाजपा सरकार महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी तरफ उसकी पुलिस ही इन दावों की पोल खोल रही है। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें पुलिसकर्मी एक महिला के साथ दुर्व्यवहार करते साफ देखे जा सकते हैं। इस वीडियो में नीरज पाण्डेय और बांधता तिवारी जैसे पुलिसकर्मी भी शामिल थे। यह वीडियो न केवल शर्मनाक है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वर्दी की आड़ में किस तरह कानून का दुरुपयोग हो रहा है।

यह सवाल उठता है कि क्या भाजपा सरकार में पुलिस को यह अधिकार मिल गया है कि वह किसी के भी घर में बिना वारंट या आधिकारिक आदेश के घुस सकती है? क्या पुलिस अब निजी विवादों में पक्षपातपूर्ण तरीके से हस्तक्षेप कर सकती है? यह घटना सीधे तौर पर नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और यह पुलिस के नैतिक पतन को दर्शाता है।

कोर्ट के मामले में पुलिस का हस्तक्षेप: सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का खुला उल्लंघन
इस मामले की गंभीरता को एक और पहलू से समझा जा सकता है। यह विवाद पिछले 3 साल से न्यायालय में चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने राजस्व और नागरिक विवादों (जैसे जमीन, मकान) में पुलिस के सीधे हस्तक्षेप को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार:

  • पुलिस की भूमिका सीमित: पुलिस को ऐसे मामलों में किसी एक पक्ष का साथ देने का अधिकार नहीं है। उनकी भूमिका केवल शांति व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित है।
  • अधिकार क्षेत्र: ऐसे मामलों में तहसीलदार, एसडीएम जैसे राजस्व अधिकारी ही उचित कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई कर सकते हैं। पुलिस बल का उपयोग तभी किया जा सकता है जब राजस्व अधिकारी इसकी मांग करें।
  • न्यायपालिका का सम्मान: जब कोई मामला न्यायालय में हो, तो पुलिस या किसी अन्य सरकारी एजेंसी को उसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। पुलिस को न्यायपालिका की प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए।

चोरहटा थाने के पुलिसकर्मियों ने इन सभी नियमों और दिशा-निर्देशों की खुलकर अवहेलना की। उन्होंने मकान मालिक के पक्ष में काम करते हुए जबरन मकान खाली कराने का प्रयास किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उन्हें कानून से ज्यादा किसी निजी व्यक्ति का दबाव महत्वपूर्ण लगा।

वायरल वीडियो के बाद भी SP-IG-DGP मौन: क्या आला अधिकारी सो रहे हैं?
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस घटना का वीडियो वायरल होने के बावजूद, रीवा पुलिस के शीर्ष अधिकारी (CSP,SP, IG, DGP) चुप्पी साधे हुए हैं। ऐसे गंभीर मामलों में तत्काल निलंबन और जांच की कार्रवाई होनी चाहिए थी, लेकिन अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।

पुलिस के आला अधिकारियों की यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है:

  • क्या उन्हें अपने पुलिसकर्मियों की गुंडागर्दी के बारे में जानकारी नहीं है?
  • या फिर वे जानबूझकर ऐसे पुलिसकर्मियों को बचा रहे हैं?
  • क्या भाजपा सरकार में पुलिस को इतनी छूट मिल गई है कि वे कानून तोड़कर भी सुरक्षित हैं?

यह जनता और पीड़िता का सवाल है, जिसका जवाब उन्हें सीधे मुख्यमंत्री से चाहिए। जब वीडियो में साफ दिख रहा है कि पुलिस ने एक महिला के साथ क्या किया है, तब भी तत्काल निलंबन जैसी कार्रवाई क्यों नहीं हुई? यह दिखाता है कि रीवा में कानून-व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।

पुलिस की जवाबदेही क्यों जरूरी है? 

पुलिस की जवाबदेही लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है। जब पुलिस अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करती है, तो नागरिकों का कानून और न्याय व्यवस्था से भरोसा उठ जाता है। इस तरह के मामलों में, पुलिस की जवाबदेही तय करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि:

  • नागरिकों के अधिकारों की रक्षा: पुलिस का काम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है, न कि उन्हें धमकाना और मारना।
  • कानून का शासन: पुलिस को खुद कानून का पालन करना चाहिए। अगर वे खुद कानून तोड़ते हैं, तो कोई भी कानून का पालन क्यों करेगा?
  • सार्वजनिक विश्वास: पुलिस पर जनता का विश्वास बनाए रखना जरूरी है। अगर पुलिस पर से विश्वास उठ जाए, तो कानून-व्यवस्था बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा।
  • जनता और पीड़िता, दोनों ही न्याय की मांग कर रहे हैं और चाहते हैं कि दोषी पुलिसकर्मियों को उनके किए की सजा मिले।

FAQ
Q1: रीवा में महिला के साथ मारपीट का मामला क्या है?
A: यह मामला रीवा के चोरहटा थाने से जुड़ा है, जहाँ एक महिला के घर में पुलिसकर्मियों ने घुसकर मारपीट की। यह विवाद एक मकान को लेकर है, जिसका मामला न्यायालय में लंबित है।

Q2: पुलिसकर्मियों पर क्या आरोप लगे हैं?
A: उन पर बिना वारंट घर में घुसने, महिला के साथ मारपीट करने, गाली-गलौज करने और न्यायालय के आदेश की अवहेलना करने का आरोप है।

Q3: वायरल वीडियो में कौन-कौन से पुलिसकर्मी शामिल हैं?
A: वायरल वीडियो में महिला पुलिस आरक्षक विभा सिंह, नीरज पाण्डेय और बंधाटा तिवारी समेत अन्य पुलिसकर्मी शामिल हैं।

Q4: पुलिस ने इस मामले में क्या कार्रवाई की?
A: पीड़िता के अनुसार, इस मामले में अभी तक किसी भी वरिष्ठ अधिकारी (SP, IG, DGP) ने कोई कार्रवाई नहीं की है।

Q5: राजस्व मामलों में पुलिस का हस्तक्षेप क्यों गलत है?
A: सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार, राजस्व मामलों में पुलिस का सीधा हस्तक्षेप वर्जित है। ऐसे मामलों में तहसीलदार या एसडीएम जैसे राजस्व अधिकारी ही उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाते हैं।

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