रीवा के पचमठा मंदिर में भोजपुरी गाने का 'वायरल' तड़का: धार्मिक मर्यादा पर सवाल, पुलिस-प्रशासन मौन?

 
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ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक पचमठा मंदिर में आरती से ठीक पहले भोजपुरी गाने बजाए जाने की घटना ने भक्तों और स्थानीय लोगों के बीच गहरा असंतोष पैदा कर दिया है। आदि शंकराचार्य द्वारा लगभग 600 साल पहले 'पंचमठ' के रूप में स्थापित इस मंदिर का धार्मिक महत्व सदियों से रहा है, और ऐसे में यह घटना धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ मानी जा रही है।

आरती से पहले क्या हुआ?
यह घटना बीते दिन शाम 6:45 बजे के आसपास की है। बताया जा रहा है कि आरती से ठीक पहले एक युवा पुजारी द्वारा मंदिर परिसर में मगही-भोजपुरी गाने बजाए गए। इस पर भक्तों ने तत्काल आपत्ति जताई, क्योंकि इसे धार्मिक रस्मों और परंपराओं की घोर अवहेलना के रूप में देखा जा रहा है।

युवा पंडितों की भूमिका पर प्रश्नचिह्न
भक्तों का आरोप है कि आजकल के युवा पंडित पुरातन भजन और मंत्रों को छोड़कर ऐसे लोक-संगीत बजाकर मंदिर की आध्यात्मिकता का उपहास कर रहे हैं। इस कृत्य ने मंदिर के पवित्र माहौल को भंग किया है और ध्यान केंद्रित करने की भक्तों की क्षमता को बाधित किया है। उनका कहना है कि जहाँ भजन की समय-निर्धारित प्रवाह टूटती है, वहाँ श्रद्धा का अनुभव मनोरंजन में बदल जाता है, जिससे भक्तों की आध्यात्मिक अनुभूति बाधित होती है।

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जनता की तीव्र आलोचना
इस घटना पर स्थानीय लोगों ने सोशल मीडिया और प्रत्यक्ष रूप से अपनी नाराज़गी व्यक्त की है। "यह मंदिर हमारी शान है, इसका ऐसा अपमान बर्दाश्त नहीं होगा," जैसे भाव प्रमुखता से सामने आ रहे हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि रीवा की सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा है।

अन्य मंदिरों में मर्यादा
यह बात भी सामने आई है कि अन्य ऐतिहासिक मंदिरों में आरती से पहले हमेशा शास्त्रीय और धार्मिक संगीत को प्राथमिकता दी जाती है। यह श्रद्धालुओं को ध्यान केंद्रित रखने और एक शांत, आध्यात्मिक वातावरण बनाए रखने में मदद करता है। पचमठा मंदिर में ऐसी घटना पहली बार सामने आई है, और इससे पहले ऐसा कोई मामला नहीं देखा गया है।

क्या है आगे की राह?
मंदिर प्रशासन ने इस मामले में जांच शुरू होने की बात कही है, लेकिन अभी तक कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया गया है। भक्तों का सुझाव है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए दृढ़ संगीत नीति, समय-निर्धारण और एक आयोजन समिति का गठन आवश्यक है। यदि आपत्ति जारी रहती है, तो भक्त सुझाव समिति में भाग लेकर या ऑनलाइन फीडबैक देकर अपनी आवाज उठा सकते हैं।

यह घटना धार्मिक स्थलों पर संगीत के चुनाव और युवा पीढ़ी द्वारा धार्मिक मर्यादा के पालन पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ती है। मंदिर प्रबंधन और भक्तों के बीच संवाद स्थापित करके ही इस तरह की समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।

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