'भगवान' के दरबार में भेदभाव: मैहर में 'VIP दर्शन' पर 55,000 का ऐतिहासिक जुर्माना, क्या अब खत्म होगा 'वीआईपी कल्चर'?

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल मैहर में स्थित शारदा माता मंदिर अक्सर अपनी भव्यता और श्रद्धालुओं की भीड़ के लिए जाना जाता है। लेकिन हाल ही में यह मंदिर एक ऐसे फैसले की वजह से सुर्खियों में है, जिसने देशभर के धार्मिक स्थलों में चल रही वीआईपी संस्कृति पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जिला उपभोक्ता आयोग ने मंदिर प्रबंधन और रोपवे संचालन कंपनी को 55 हजार रुपये का हर्जाना भरने का आदेश दिया है। यह फैसला एक ऐसे मामले में आया है, जहाँ भोपाल के एक परिवार को वीआईपी दर्शन के कारण माता के दर्शन करने से रोक दिया गया था। यह फैसला इस बात का स्पष्ट संकेत देता है कि अब भक्तों के साथ होने वाले भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
पूरा मामला: भोपाल के परिवार को क्यों नहीं मिले दर्शन?
मामला भोपाल के एक परिवार से जुड़ा है, जो मैहर स्थित शारदा माता मंदिर में दर्शन करने गया था। मंदिर के दर्शन करने के लिए उन्हें रोपवे का सहारा लेना पड़ा। लेकिन, जब वे मंदिर के गर्भगृह के पास पहुंचे, तो उन्हें रोक दिया गया। बताया गया कि मंदिर में वीआईपी दर्शन चल रहे हैं, जिसके कारण आम भक्तों को इंतजार करना होगा। घंटों इंतजार करने के बाद भी जब उन्हें दर्शन नहीं मिले, तो वे निराश होकर वापस लौट आए। परिवार ने महसूस किया कि यह उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और सेवा में कमी का मामला है। इसके बाद, उन्होंने जिला उपभोक्ता आयोग में इसकी शिकायत की।
उपभोक्ता आयोग का फैसला: मंदिर प्रबंधन और रोपवे कंपनी पर क्यों लगा हर्जाना?
जिला उपभोक्ता आयोग ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए मंदिर प्रबंधन और रोपवे संचालन कंपनी को दोषी पाया। आयोग ने अपने फैसले में कहा कि मंदिर में दर्शन करना भक्तों का अधिकार है और किसी भी भक्त के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भक्तों के लिए रोपवे का उपयोग करना एक सेवा है, और इस सेवा में कमी की गई थी, क्योंकि उन्हें दर्शन नहीं मिल पाए। आयोग ने दोनों पर 55 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है, जिसमें से 50 हजार रुपये मानसिक पीड़ा और आर्थिक नुकसान के लिए और 5 हजार रुपये वाद-व्यय के लिए हैं। यह फैसला इस बात को साबित करता है कि धार्मिक स्थलों पर भी उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
सेवा में कमी: भक्तों के साथ भेदभाव क्यों?
उपभोक्ता आयोग ने अपने फैसले में "सेवा में कमी" को एक प्रमुख आधार बनाया है। उनका मानना है कि जब कोई भक्त मंदिर में दर्शन के लिए टिकट खरीदता है, तो वह एक सेवा खरीदता है। इस सेवा में न केवल मंदिर तक पहुंचना, बल्कि समान रूप से दर्शन करना भी शामिल है। वीआईपी दर्शन के नाम पर भक्तों को रोकना इस सेवा में एक स्पष्ट कमी है। यह भक्तों के साथ भेदभाव को बढ़ावा देता है, जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं। आयोग ने स्पष्ट किया कि सभी भक्तों को समान रूप से दर्शन का अधिकार है, चाहे वह अमीर हो या गरीब, वीआईपी हो या सामान्य नागरिक।
मंदिरों में वीआईपी संस्कृति: क्या यह सही है?
मैहर मंदिर का यह मामला भारत के अन्य बड़े मंदिरों में चल रही वीआईपी संस्कृति पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। कई मंदिरों में वीआईपी दर्शन के लिए अलग से टिकट खरीदे जाते हैं, जिससे आम भक्तों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। यह संस्कृति न केवल भक्तों के बीच असमानता पैदा करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि धार्मिक स्थल भी अब 'वर्गों' में बंट गए हैं। आयोग का यह फैसला इस वीआईपी संस्कृति पर एक कड़ा प्रहार है और यह संदेश देता है कि धार्मिक स्थलों पर समानता और सम्मान का पालन होना चाहिए।
क्या यह फैसला अन्य मंदिरों के लिए एक मिसाल बनेगा?
जिला उपभोक्ता आयोग का यह फैसला एक ऐतिहासिक निर्णय है। यह फैसला न केवल मैहर मंदिर के लिए, बल्कि भारत के सभी धार्मिक स्थलों के लिए एक मिसाल बन सकता है। यह फैसला भक्तों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करेगा और उन्हें यह सिखाएगा कि अगर उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव होता है, तो वे उपभोक्ता आयोग में शिकायत कर सकते हैं। यह उम्मीद की जा सकती है कि इस फैसले के बाद अन्य मंदिर प्रबंधन भी अपनी नीतियों में बदलाव लाएंगे और वीआईपी संस्कृति को खत्म करने की दिशा में काम करेंगे।