झूठी है आत्महत्या की कहानी? 2000 KM दूर से आए पुलिसवालों पर लगा कत्ल का आरोप, परिवार के दावे ने खड़े किए सनसनीखेज सवाल!

15 अगस्त की शाम, स्वतंत्रता दिवस के उत्सव के बीच, मध्य प्रदेश के सीधी जिले में एक बेहद असामान्य और दुखद घटना घटी। कर्नाटक की मैंगलोर पुलिस के तीन जवान लगभग 2000 किलोमीटर का सफर तय कर एक दूरदराज के गांव चिलरी पहुंचे। उनका मकसद था, सालों पहले कर्नाटक छोड़ चुके भोले कोरी नाम के शख्स को गिरफ्तार करना। लेकिन तीन घंटे की झड़प, हाथापाई और एक बंद कमरे के बाद जो सामने आया, उसने न केवल पुलिस की कार्रवाई पर सवाल खड़े कर दिए, बल्कि एक परिवार का जीवन भी हमेशा के लिए बदल दिया। भोले कोरी का शव उनके घर के एक कमरे में फंदे से लटका मिला। परिवार इसे आत्महत्या मानने से इनकार कर रहा है और सीधे तौर पर कर्नाटक पुलिस पर हत्या का आरोप लगा रहा है। इस घटना ने एक जटिल कानूनी और मानवीय त्रासदी को जन्म दिया है, जिसकी तह तक जाने के लिए कई सवालों के जवाब तलाशने होंगे।
पृष्ठभूमि: कर्नाटक पुलिस को सीधी क्यों आना पड़ा?
भोले कोरी के दुखद अंत की कहानी को समझने के लिए, हमें उसके अतीत को जानना होगा। जैसा कि भोले की पत्नी प्रेमवती ने बताया, भोले लगभग 25 साल तक कर्नाटक में रहे थे, जहाँ वे मजदूरी करने गए और फिर ठेकेदारी करने लगे थे। उनका जीवन अच्छी तरह चल रहा था, जब तक कि एक महिला के साथ उनका विवाद नहीं हुआ। प्रेमवती का आरोप है कि उस महिला ने झूठे आरोप लगाकर भोले को एक केस में फंसा दिया। इस मामले में, भोले को 90 दिन जेल में भी रहना पड़ा।
जेल से छूटने के बाद भी, वे दो साल तक मैंगलोर में ही रहे और नियमित रूप से पेशी पर जाते रहे, लेकिन कथित तौर पर केस दर्ज कराने वाली लड़की पेशी पर नहीं आती थी। इसी बीच, परिवार में एक सदस्य के बीमार होने के कारण भोले अपनी पत्नी और बच्चों के साथ वापस अपने पैतृक गांव चिलरी लौट आए। पिछले चार साल से वे यहीं रह रहे थे, खेती-किसानी और एक छोटी सी दुकान चलाकर जीवन-यापन कर रहे थे।
कर्नाटक पुलिस को सीधी क्यों आना पड़ा?
कर्नाटक पुलिस एक अदालती वारंट के साथ आई थी। सीधी के एसडीओपी आशुतोष द्विवेदी ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि कर्नाटक के मैंगलोर महिला थाने से आए इन जवानों के पास पॉक्सो एक्ट और भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) व 506 (धमकी) के तहत जारी एक वारंट था। इसी वारंट को तामील करने के लिए वे इतनी दूर का सफर कर सीधी पहुंचे थे। हालांकि, उनकी यह यात्रा एक बड़ी त्रासदी में बदल गई, जिसने एक कानूनी प्रक्रिया को सवालों के घेरे में ला दिया है।
परिजनों के आरोप: हत्या या आत्महत्या? भोले कोरी के परिजनों ने पुलिस पर हत्या का आरोप क्यों लगाया?
भोले कोरी के परिवार का मानना है कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि पुलिस द्वारा की गई हत्या है। उनकी तीसरी बेटी शिवानी, जिसने उस दिन की घटना को करीब से देखा, ने कई ऐसे तथ्य सामने रखे हैं जो उनके आरोपों को बल देते हैं।
घटना के समय, भोले बिना शर्ट पहने अपनी दुकान पर थे। पुलिस के अचानक पहुंचने पर वे डर गए और अपने घर की तरफ भागे। जवानों ने उनका पीछा किया और परिवार से उनकी झड़प हुई। शिवानी के अनुसार, पुलिस ने उनके साथ भी मारपीट की, कपड़े फाड़ दिए और बालों को खींचा, जिसके निशान भी उनके शरीर पर मौजूद थे।
भोले कोरी के परिजनों ने पुलिस पर हत्या का आरोप क्यों लगाया?
परिजनों ने कई चौंकाने वाले दावे किए हैं:
- तीसरा पुलिस वाला कहाँ गया?: शिवानी ने बताया कि जब परिवार के लोग बाहर पुलिस वालों से बहस कर रहे थे, तो तीन में से एक जवान अचानक गायब हो गया। काफी देर बाद वह घर के पिछले दरवाजे से निकलता हुआ दिखाई दिया। परिवार का आरोप है कि इसी शख्स ने घर के अंदर जाकर भोले कोरी की हत्या की।
- ऊंचाई और पैरों की स्थिति: परिवार का कहना है कि जिस फंदे से भोले लटके हुए थे, उनके पैर जमीन को छू रहे थे। भोले की ऊंचाई अच्छी थी, ऐसे में खुद से फांसी लगाना उनके लिए मुश्किल था।
- शरीर पर चोट के निशान: परिजनों ने दावा किया कि जब भोले का शव मिला, तो उनके शरीर पर कई जगह चोट के निशान थे, जो पुलिस की मारपीट का प्रमाण हैं।
- कपड़े पहनने का अनुरोध: भोले की सबसे छोटी बेटी प्रियांशु ने बताया कि उनके पिता ने पुलिस वालों से बार-बार कपड़े पहनने की अनुमति मांगी थी, लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी।
- चप्पल का मिलना: प्रियांशु ने एक चप्पल भी दिखाई, जो उनके अनुसार भागने की कोशिश कर रहे कर्नाटक पुलिस के एक जवान की थी। उनका सवाल है कि अगर पुलिस ने कुछ गलत नहीं किया तो वे डर कर क्यों भाग रहे थे?
ये सभी दावे, अगर सही साबित होते हैं, तो पुलिस की कार्रवाई पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं और इस मामले को आत्महत्या के बजाय हत्या की दिशा में ले जाते हैं।
पुलिस की सबसे बड़ी चूक: कर्नाटक पुलिस ने सीधी आकर सबसे बड़ी गलती क्या की?
इस पूरे घटनाक्रम में एक बड़ा कानूनी और प्रक्रियात्मक उल्लंघन सामने आया है। सीधी के एसडीओपी आशुतोष द्विवेदी ने बताया कि कर्नाटक पुलिस ने आरोपी को पकड़ने से पहले स्थानीय पुलिस को कोई जानकारी नहीं दी थी। वे सीधे गांव पहुंच गए थे।
कर्नाटक पुलिस ने सीधी आकर सबसे बड़ी गलती क्या की?
अंतर-राज्यीय पुलिस कार्रवाई का प्रोटोकॉल कहता है कि जब कोई पुलिस दल दूसरे राज्य में किसी आरोपी को गिरफ्तार करने जाता है, तो उसे सबसे पहले स्थानीय पुलिस स्टेशन को सूचित करना होता है। यह कदम कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
- सुरक्षा और सहयोग: स्थानीय पुलिस की मौजूदगी से पुलिस टीम और आरोपी दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- कानूनी वैधता: यह कार्रवाई को कानूनी रूप से मजबूत बनाता है।
- शांति व्यवस्था: स्थानीय पुलिस बल किसी भी अप्रिय स्थिति को संभालने में मदद कर सकता है।
कर्नाटक पुलिस द्वारा इस प्रोटोकॉल का पालन न करना एक गंभीर चूक है। एसडीओपी ने भी स्वीकार किया कि घटना के बाद ही उन्हें इसकी जानकारी मिली। यह गलती उनके लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है और इस मामले को और भी जटिल बना सकती है।
जांच और जवाबदेही: एमपी पुलिस इस मामले की जांच में कहां तक पहुंची है?
घटना की सूचना मिलने के बाद, कमर्जी थाना की पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची। उन्होंने कर्नाटक पुलिस के जवानों को भागने से रोका और उनसे पूछताछ की। एसडीओपी आशुतोष द्विवेदी के अनुसार, पुलिस ने इस मामले में मर्ग कायम कर लिया है और जांच शुरू कर दी है।
एमपी पुलिस इस मामले की जांच में कहां तक पहुंची है?
पुलिस अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है और वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रही है। एसडीओपी ने कहा है कि पीएम रिपोर्ट से ही यह साफ हो पाएगा कि मौत का कारण आत्महत्या है या हत्या। उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल हत्या के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं, लेकिन जांच में जो भी तथ्य सामने आएंगे, उस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यह दर्शाता है कि एमपी पुलिस इस मामले को गंभीरता से ले रही है, लेकिन कोई भी अंतिम निर्णय लेने से पहले सभी पहलुओं की जांच कर रही है।
कर्नाटक पुलिस की चुप्पी: आरोपों पर कर्नाटक पुलिस का क्या कहना है?
इस मामले में कर्नाटक पुलिस का पक्ष जानने की कोशिश की गई, लेकिन उनका रवैया टालमटोल भरा रहा। फोन पर बात करने पर, एक जवान ने कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि सभी सवाल एमपी पुलिस के जांच अधिकारी से पूछे जाएं।
आरोपों पर कर्नाटक पुलिस का क्या कहना है?
कर्नाटक पुलिस ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। उनकी चुप्पी और फोन कॉल पर टालमटोल, उनके रवैये पर सवाल खड़े करती है। जब एक पुलिस बल पर हत्या जैसे गंभीर आरोप लगाए जा रहे हों, तो उनका चुप रहना कई संदेहों को जन्म देता है।
यह पूरी घटना एक गहरा सबक है कि पुलिस की कार्रवाई में पारदर्शिता और प्रोटोकॉल का पालन कितना जरूरी है। फिलहाल, भोले कोरी के परिवार की न्याय की उम्मीदें एमपी पुलिस की जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर टिकी हैं। यह देखना बाकी है कि क्या एक 2000 किलोमीटर का सफर तय कर आया पुलिस दल अपने पीछे केवल एक अनसुलझी मौत और संदेहों का अंबार छोड़ गया है या फिर इस पूरे मामले की सच्चाई जल्द ही सामने आएगी।