Posh Putrada Ekadashi 2023 : पुत्रदा एकादशी से होगी नए साल की शुरुआत, पढ़ लीजिये पूजन का शुभ मुहूर्त और महत्व

 
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पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उनके लिए व्रत रखा जाता है। पुत्रदा एकादशी का व्रत अत्यंत ही लाभदायक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसके समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इस व्रत के पुण्य से जातक को तपस्वी, विद्वान और धनवान होने का वरदान मिलता है। पौष पुत्रदा एकादशी को वैकुण्ठ एकादशी और मुक्कोटी एकादशी भी कहा जाता है।

पौष पुत्रदा एकादशी : पूजन का शुभ मुहूर्त
पौष शुक्ल एकादशी तिथि 1 जनवरी को शाम 07 बजकर 11 मिनट पर प्रारंभ होगी और 2 जनवरी को रात्रि 08 बजकर 23 मिनट पर एकादशी तिथि को समाप्त हो जाएगी। पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि यानी 03 जनवरी को होगा। पारण की अवधि 2 घंटे 4 मिनट की रहेगी।

पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
आजकल संतान की प्राप्ति के लिए कई बड़े-बड़े डॉक्टर्स से ट्रीटमेंट लेते है, लेकिन उसके बाद भी संतान की प्राप्ति नहीं हो पाती है। ऐसे में पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से स्त्रियों को संतान की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से माताओं को स्वस्थ व सुंदर पुत्र अथवा पुत्री का वरदान मिलता है।

इसके अलावा इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखने से निसंतान दंपत्तियों को संतान सुख होता है। साथ ही इस व्रत के फल से संतान को हर संकट से बचाया जा सकता है।

पौष पुत्रदा एकादशी की पूजन विधि
एकादशी तिथि के दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत होकर साफ कपड़े पहनें। सूर्यदेव को जल अर्पित करके व्रत का संकल्प लें। घर के पूजा स्थल में भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करें। श्री हरि भगवान विष्णु को पीले पुष्प, पंचामृत, तुलसी, भोग आदि अर्पित करें। पौष पुत्रदा एकादशी की कथा सुनें और अंत में धूप दीप जलाकर आरती करें। संध्या के समय दीपदान करें और नारायण का स्मरण करके व्रत खोलें।

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
भद्रावती नगर में सुकेतु मान नामक एक राजा रहता था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। राजा की कोई संतान नहीं थी। निःसंतान होने के कारण राजा सदैव चिंतित रहता था। पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करते हुए एक बार राजा वन की ओर निकल पड़ा। वहां उसे मुनियों की एक कुटिया दिखाई दी। एक मुनि ने राजा को बताया, “आज संतान प्राप्ति वाली पुत्रदा एकादशी है, अतः हम लोग सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।” यह सुनकर राजा ने मुनियों से संतान का वरदान माँगा। मुनि बोले – “ हे राजन! आप पुत्रदा एकादशी का व्रत करें, भगवान की कृपा से आपके घर में पुत्र होगा।” मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने एकादशी तिथि पर व्रत किया और द्वादशी तिथि को उसका पारण किया। इसके पश्चात कुछ समय बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के अंतराल के बाद राजा के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। इस प्रकार राजा को पुत्रदा एकादशी व्रत का फल मिल गया। और पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा संपन्न हुई।

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