MP : HIV पीड़ित 14 वर्षीय लड़के को अपनों ने निकाला : 12 साल पहले हो चूका है माता-पिता का निधन, चाचा, दादी समेत सब ने घर से निकला तो मोक्ष संस्था ने अपनाया

 

MP : HIV पीड़ित 14 वर्षीय लड़के को अपनों ने निकाला : 12 साल पहले हो चूका है माता-पिता का निधन, चाचा, दादी समेत सब ने घर से निकला तो मोक्ष संस्था ने अपनाया

दमोह में मानवता और रिश्तों को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। यहां 14 साल के लड़के को घर से इसलिए भगा दिया गया, क्योंकि वो HIV पीड़ित है। लड़का दमोह जिले के बिजौरी का रहने वाला है। अपनों के तिरस्कार के बाद वह बस ड्राइवर व क्लीनर से मिन्नतें कर किसी तरह जबलपुर पहुंच गया। इसके बाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचकर अपनी बीमारी के बारे में बताया। फिलहाल बच्चे को जबलपुर की मोक्ष संस्था ने सहारा दिया है।

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संस्था के प्रमुख आशीष ठाकुर के मुताबिक, 19 अगस्त की रात लड़कने मेडिकल कॉलते पहुंचते ही रोते हुए आपबीती सुनाई। लड़के ने बताया, उसके पिता और मां का 12 साल पहले ही निधन हो गया था। वह दमोह के बिजौरी में दादी के साथ रह रहा था। कुछ समय से तबीयत खराब रहने लगी थी। जांच कराई गई, तो वह HIV पॉजिटिव निकला। इसी के बाद बच्चे के प्रति उसके चाचा, दादी समेत सभी का व्यवहार बदल गया। चाचा ने ये कहते हुए घर से निकाल दिया कि वह उसका इलाज नहीं करा सकते।

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घर से निकलने के बाद बस स्टैंड पहुंचा दमोह से जबलपुर पहुंचे लड़के ने बताया कि वह इलाज की उम्मीद लेकर यहां आया है। वह दो साल से बीमार है। घर से निकाले जाने पर वह बिजौरी के घर से दमोह बस स्टैंड पैदल ही पहुंचा था। उसके पास किराए के लिए पैसे भी नहीं थे। दमोह से जबलपुर पहुंचने के लिए बस के कर्मचारियों से मिन्नतें की, तब वे लटक कर बस से ले जाने के लिए तैयार हुए। दीनदयाल बस स्टैंड से वह पैदल मेडिकल कॉलेज पहुंचा था।

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मोक्ष संस्था ने दिया सहारा

मेडिकल कॉलेज पहुंच कर उसने दवा वाले से मोक्ष संस्था के आशीष के बारे में पूछा। दवा दुकानदार ने कॉल कर आशीष को बताया। वह मौके पर पहुंचे और लड़के को सहारा दिया। आशीष ठाकुर के मुताबिक, लड़के को मेडिकल अस्पताल में भर्ती कराया गया है। HIV छूआछूत की बीमारी नहीं है। ऐसे लोग प्यार के हकदार होते हैं, तिरस्कार के नहीं। उसके इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

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बता दें, मोक्ष संस्था गरीब और असहायों के लिए भोजन प्रबंध करने के साथ मरीजों की देखभाल और लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार उनके धर्म के अनुसार करती है। कोविड में जब अपने भी लाशों को नहीं छू रहे थे, तो इस संस्था के लोगों ने रोज 20 से 25 लाशों का अंतिम संस्कार किया।

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