... तो इसलिए गिरी थी कमलनाथ सरकार, अगर ये बात मान लेते तो बच सकती थी कांग्रेस की 14 माह की सरकार

 

परिवर्तन के पीछे की एक कहानी होती है, जो कहानी अक्सर परिवर्तन की चकाचौंध में अनसुनी ही रह जाती है। मध्यप्रदेश में जनता ने पहले शिवराज सिंह चौहान को बदला और फिर कुछ महीनों बाद शिवराज सिंह चौहान ने कुछ विधायकों की मदद से जनता के परिवर्तन को ही परिवर्तित कर दिया। भारतीय लोकतंत्र में सब कुछ संभव है। यह दुनिया के सबसे मजेदार लोकतंत्रों में से एक है। यहां जनता के वोट एक बार मशीनों में बंद हो गए, तो फिर उसके बाद उन वोटों का कुछ भी किया जा सकता है। इसके लिए जनता से पूछने की भी आवश्यकता नहीं होती है।

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ब्रजेश राजपूत मध्यप्रदेश की राजनीति को लम्बे समय से देख रहे हैं, बहुत करीब से देख रहे हैं। ऐसे में जो कुछ 20 मार्च 2020 को हुआ उस पर उनकी दृष्टि भी पूरे समय जमी हुई थी। उस पर भी और उसके पीछे की कहानी पर भी। उस अनसुनी कहानी को सुनाने के ही लिए ब्रजेश राजपूत ने किताब लिखी "वो सत्रह दिन"। किताब क्या है, जैसे उन सत्रह दिनों का रोज़नामचा है। मध्यप्रदेश की एक पीढ़ी ने पहली बार मध्यप्रदेश में ऐसा कुछ होते हुए देखा। ज़ाहिर सी बात है कि मन में उत्सुकता तो होगी ही कि यह जो परिवर्तन हुआ है इसके पीछे क्या खेल चला ?

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ब्रजेश राजपूत ने अपने ही अंदाज़ में उस पूरे खेल का विवरण दिया है इस किताब में। और ब्रजेश राजपूत ने पुस्तक के समर्पण में ही लिखा है- देश की उस सहनशील जनता को, जो तमाम विद्रूपताओं के बाद भी लोकतंत्र में अटूट आस्था रखती है। इस किताब को पढ़ते समय महसूस होता है कि सचमुच कितनी सहनशील है इस देश की जनता। उसका चुना हुआ प्रतिनिधि खुलेआम सत्ता के खेलों में लग जाता है, और चुनने वाली जनता चुपचाप बैठी खेल की दर्शक बनी रहती है। यह किताब राजनीति की पतन को परत दर परत खोलती जाती है।

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इशारों ही इशारों में बात करती है कि कहाँ क्या सौदे हो रहे हैं। एक अच्छा लेखक तो वही होता है जो सारी बात इशारों में करे। यह किताब राजनीति और पत्रकारिता दोनों के विद्यार्थियों के लिए बहुत काम की किताब है। राजनीति वालों के लिए इसलिए कि इसे पढ़ कर सीखा जा सकता है कि कहाँ, कितना गिरना होता है सत्ता के लिए, और उससे परहेज़ करने के क्या नुकसान हो सकते हैं। ब्रजेश राजपूत के पास एक सधी हुई संतुलित भाषा है, जिसके द्वारा वे पूरी कहानी को खोल कर पाठकों के सामने रख देते हैं।

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कमलनाथ राष्ट्रीय नेता ही बने रहे

इस किताब की चर्चा आज इसलिए क्योंकि 20 मार्च को ही मध्यप्रदेश में विधायकों के हृदय परिवर्तन द्वारा सत्ता परिवर्तन का उदाहरण सामने आया था। एक साल पहले इसी समय जब पूरा देश कोरोना के डर से लॉकडाउन की प्रतीक्षा कर रहा था, तब मध्यप्रदेश में अपनी सरकार बना लेने की प्रतीक्षा देश की सरकार कर रही थी, कि कब वहाँ अपनी सरकार बने और कब लॉकडाउन लगाया जाए। जब एक प्रदेश को अपने स्वास्थ्य मंत्री की सबसे ज़्यादा आवश्यकता थी, तब वही हृदय परिवर्तित स्वास्थ्य मंत्री दूर अपने नए दल की सरकार वाले प्रदेश में किसी रिज़ार्ट में छिपे थे।

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कमलनाथ गए और शिवराज लगभग 14 महीनों का वनवास काट कर वापस आ गए। कमलनाथ अपनी ग़लतियों से गए और शिवराज अपनी क़िस्मत से आए। कमलनाथ कार्य में शिवराज से बेहतर, किन्तु राजनीति में शिवराज से बहुत बदतर साबित हुए। कमलनाथ राष्ट्रीय स्तर के नेता थे और मुख्यमंत्री बन कर भी वे वही बने रहे। विधायक तो क्या उनके मंत्रियों तक को उनसे मिलने के लिए अपाइंटमेंट लेना पड़ता था। शिवराज इस मामले में कमलनाथ से बहुत बेहतर हैं। उधर, ज्योतिरादित्य ने जाने से पहले बहुत प्रतीक्षा की।

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कमलनाथ मुख्यमंत्री बन जाने के बाद प्रदेश अध्यक्ष ही नहीं छोड़ पाए। मार्च के पहले सप्ताह में ज्योतिरादित्य को प्रदेश अध्यक्ष बना देने का जो आदेश दिल्ली हाईकमान के यहाँ से सात मार्च को चला वह भोपाल में आकर ठंडे बस्ते में चला गया। नहीं जाता तो शायद सरकार बची रहती। कमलनाथ एक प्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी वही राष्ट्रीय नेता बने रहे, दिल्ली में जिसके घर के बाहर कांग्रेस के मुख्यमंत्री तक मिलने की प्रतीक्षा करते थे।

कांग्रेसी किताब से जान जाएंगे सरकार बचाना

ब्रजेश राजपूत ने बहुत अच्छे से इस किताब में उन 17 दिनों का ब्यौरा दिया है। पत्रकार के रूप में नहीं बल्कि एक लेखक के रूप में। उन 17 दिनों का ऐसा आँखों देखा हाल प्रस्तुत किया है कि इसे पढ़कर हमें भी ऐसा लगता है जैसे कि हम भी वहीं हैं। कांग्रेसियों को यह किताब अवश्य पढ़ना चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें पता चलेगा कि ग़लती कहां हुई है।

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ब्रजेश राजूपत की पहली किताब जो शिवना प्रकाशन से ही आई थी "चुनाव राजनीति और रिपोर्टिंग, मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2013"। इस किताब को पढ़कर भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता नेता ने टिप्पणी की थी कि इस किताब को कांग्रेसियों को मत पढ़ने देना नहीं तो इसे पढ़ कर वो प्रदेश में अगली बार सरकार बना लेंगे। क्योंकि इस किताब में उनकी सारी ग़लतियों और चूकों के बारे में साफ लिखा है।

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उन नेता ने हंसते हुए कहा था कि भाजपा को इस किताब को सारी ख़रीद कर इस आउट ऑफ स्टॉक कर देना चाहिए, यह ख़तरनाक किताब है। मगर शायद उन नेता जी की बात भाजपा ने नहीं सुनी और वह किताब कांग्रसियों ने पढ़ ली तथा अगले चुनाव में प्रदेश में सरकार बना ली। बना ली क्योंकि इतना तो ब्रजेश राजपूत ने पिछली किताब में बता दिया था, मगर बनाने के बाद बचाना कैसे है यह नहीं बताया था। इसलिए सरकार गिर गई। अब बचाने की बात भी इस किताब में बता दी है।

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कैसे सरकार बनाई जाती है उसके लिए "चुनाव राजनीति और रिपोर्टिंग, मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2013" तथा कैसे सरकार बचाई/गिराई जाती है, उसके लिए "वो 17 दिन"। यह किताब आते ही लगातार बेस्ट सेलर में रही और आज भी है। राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के लिए किसी उपहार से कम नहीं है यह पुस्तक। कल सरकार गिरने और बनने का दिन है, कल इस पुस्तक का महत्त्व और बढ़ जाता है।


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