मुख्यमंत्री मोहन यादव, जवाब दें! नवजात की राख और 'हाइट्स' कंपनी का वसूली रैकेट- क्या यही आपका 'सुशासन मॉडल' है? रीवा कमिश्नर/डीन: लीपापोती नहीं, कठोर कार्रवाई चाइये
ऋतुराज द्विवेदी,रीवा/भोपाल। (राज्य ब्यूरो) गांधी स्मृति चिकित्सालय के गायनी विभाग में लगी आग सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि उस बदहाल व्यवस्था का जीता-जागता प्रमाण है जिसने मानवीय संवेदनाओं को भी तार-तार कर दिया। रीवा के श्याम शाह मेडिकल कॉलेज से संबद्ध इस अस्पताल में हुई घटना ने न केवल सिस्टम की घोर लापरवाही उजागर की है, बल्कि नैतिक पतन की पराकाष्ठा को भी दिखाया है।

लापरवाही की पराकाष्ठा: नवजात को भूल गए
घटना के केंद्र में सतना जिले की अहिरगांव निवासी कंचन साकेत थीं, जिनका ऑपरेशन चल रहा था। डॉक्टरों ने बच्चे को गर्भ से बाहर निकाला, जो कथित तौर पर मृत पैदा हुआ। इसके बाद की घटना इतनी वीभत्स है कि क्या इसे मानवीय गलती माना जाए या क्रूर लापरवाही, यह तय करना मुश्किल है।
महिला का पेट खुला था, टांके भी नहीं लगाए गए थे। जैसे ही स्क्रब रूम में शॉर्ट सर्किट से आग भड़की, ड्यूटी पर मौजूद स्टाफ ने महिला को तो आनन-फानन में एमरजेंसी ओटी ले जाकर उसका पेट सिलवाया, लेकिन उसी नवजात शिशु को, जिसे कुछ देर पहले ही ओटी में बार्नर पर रखा गया था, वहीं क्यों भूल गए?
आग ने जब पूरी ओटी को जलाकर राख कर दिया, तब कर्मचारियों ने बच्चे का अधजला शव बार्नर पर पड़ा पाया। जिस माँ ने नौ महीने तक उसे पेट में रखा, उसे अंतिम बार देखने को भी नहीं मिला। यह प्रश्न खड़ा होता है कि कौन है इस अमानवीयता और संवेदनहीनता का जिम्मेदार?
आग लगने का कारण: स्क्रब रूम के कटे-फटे तार
अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही का पहला सबूत स्क्रब रूम से मिला। जहां डॉक्टर और स्टाफ प्रवेश से पहले हाथ धोते हैं, वहीं बिजली के तार झूल रहे थे और कटे-फटे थे। कैसे इन कटे-फटे तारों से शॉर्ट सर्किट हुआ, यह अस्पताल के मेंटेनेंस विभाग पर एक बड़ा सवाल है।
- शॉर्ट सर्किट: स्क्रब रूम में झूलते और कटे-फटे तारों से चिंगारी निकली।
- तेजी से फैली आग: पास रखे कपड़ों में आग लगी और मिनटों में ही पूरी ओटी को अपनी चपेट में ले लिया।
- ऑक्सीजन सिलेंडर का खतरा: गनीमत यह रही कि ओटी के अंदर रखे दो भरे हुए ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं फूटे। अगर वे फूट जाते तो पूरी बिल्डिंग उड़ सकती थी, जिससे बड़ी जनहानि होनी तय थी। क्या अस्पताल प्रशासन को पता नहीं था कि ये सिलेंडर आग के करीब हैं?
डेढ़ घंटे बाद आग पर काबू: एक्सपायरी अग्निशमन यंत्र
स्थानीय स्टाफ ने पहले खुद आग बुझाने की कोशिश की, लेकिन उनकी यह कोशिश भी लापरवाही की भेंट चढ़ गई।
- एक्सपायरी यंत्र: कर्मचारियों ने जिन अग्निशमन यंत्रों (Fire Extinguishers) का इस्तेमाल किया, उनकी डेट सितंबर में ही खत्म हो चुकी थी। क्या एक्सपायरी अग्निशमन यंत्र काम करते हैं? यह सीधे तौर पर सुरक्षा मानकों की अनदेखी है।
- फायर ब्रिगेड का इंतजार: आग पर काबू पाने में डेढ़ घंटे का समय लगा, जिससे ओटी पूरी तरह जल गई और मासूम की जान चली गई।
प्रशासनिक विफलता: पर्देदारी और वसूली का धंधा
इस पूरे मामले में अस्पताल प्रबंधन और जिम्मेदार अधिकारियों का रवैया बेहद आपत्तिजनक रहा है। अधीक्षक राहुल मिश्रा पर पूरे मामले को दबाने का आरोप लगा है। किसने दबाया बच्चे की मौत का मामला?
सुपर स्पेशियलिटी में अमानवीयता की पराकाष्ठा
स्वास्थ्य व्यवस्था में मानवीय संवेदना का अभाव सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में भी दिखा, जहाँ चमेली साकेत की मृत्यु के बाद उनके परिजनों को घंटों स्ट्रेचर के लिए भटकना पड़ा।
- शव का अपमान: परिजनों को स्वयं शव उठाकर स्ट्रेचर पर रखना पड़ा और धकेलते हुए ले जाना पड़ा।
- जवाबदेही का अभाव: हाइट्स कंपनी के अधिकारी अमृतांश शर्मा ने 'मामले की जानकारी न होने' की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया। क्या अमृतांश शर्मा को पता नहीं था कि स्ट्रेचर की व्यवस्था किसकी जिम्मेदारी है?
जिम्मेदारी और भविष्य के सवाल
डीन डॉ. सुनील अग्रवाल ने घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया, जबकि कमिश्नर बी.एस. जामोद ने जाँच कराने की बात कही है। अस्पताल के सीएमओ डॉ. यत्नेश त्रिपाठी की भूमिका पर भी सवाल उठे हैं कि क्यों स्वास्थ्य मंत्री से सारी कमियाँ छुपाई गईं?
जवाब दो, डॉ. अग्रवाल! स्क्रब रूम में 'कटे-फटे तार' क्यों थे?
मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. सुनील अग्रवाल इस 'दुर्भाग्यपूर्ण हादसा' कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते। OT के प्रवेश द्वार, स्क्रब रूम में, बिजली के तार क्यों झूल रहे थे?
- सीधा कारण: झूलते और कटे-फटे तारों से हुआ शॉर्ट सर्किट। यह लापरवाही नहीं, आपराधिक अनदेखी है।
- विस्फोट का इंतज़ार: दो भरे हुए ऑक्सीजन सिलेंडर धधक रहे थे—सिर्फ 5 मिनट की देरी और पूरी बिल्डिंग उड़ जाती। क्या अस्पताल प्रबंधन सामूहिक जनसंहार का इंतज़ार कर रहा था?
एक्सपायरी सुरक्षा: आग बुझाने वाले यंत्रों पर पर्दा किसने डाला?
डेढ़ घंटे बाद आग पर काबू पाया गया, वह भी तब जब दमकल की गाड़ियाँ आईं।
सबसे बड़ी विफलता: अस्पताल के कर्मचारियों ने जिन अग्निशमन यंत्रों का प्रयोग किया, वे सितंबर में ही एक्सपायर हो चुके थे।
सवाल: अस्पताल की सुरक्षा ऑडिट कौन करता है? क्या इन एक्सपायरी यंत्रों को जानबूझकर रखा गया था?
हाइट्स कंपनी का 'आतंक': वसूली रैकेट और लाशों का अपमान - अमृतांश शर्मा कहाँ हैं?
रीवा अस्पताल अब चिकित्सा का केंद्र नहीं, बल्कि वसूली और अमानवीयता का अड्डा है, जिसकी जिम्मेदारी ठेकेदार हाइट्स कंपनी की है!
- वसूली का धंधा: हाइट्स के कर्मचारी सफाईकर्मी नहीं, संगठित वसूली गिरोह हैं। क्यों हो रही है खुलेआम वसूली?
- शव का अपमान: सुपर स्पेशियलिटी में चमेली साकेत की मौत के बाद परिजनों को शव खुद धकेल कर ले जाना पड़ा। स्ट्रेचर की व्यवस्था किसकी जिम्मेदारी है, अमृतांश शर्मा?
- निकम्मापन: कंपनी अधिकारी अमृतांश शर्मा 'जानकारी न होने' की बात कहकर अपना निकम्मापन साबित कर रहे हैं।
अधीक्षक अक्षय श्रीवास्तव: सिर्फ जुर्माना और नोटिस क्यों? कॉन्ट्रैक्ट रद्द क्यों नहीं?
अस्पताल अधीक्षक अक्षय श्रीवास्तव छोटी मछलियों (कर्मचारियों) पर कार्रवाई का डर दिखाकर हाइट्स कंपनी (मगरमच्छ) को बचा रहे हैं।
- खानापूर्ति: घंटों तक शव ढोने और वसूली के अपमान का मूल्य सिर्फ 'कुछ हजार का जुर्माना' है?
- बचाव का आरोप: क्या कोई 'ऊँचा हाथ' है जो हाइट्स कंपनी को संरक्षण दे रहा है, जिसके सामने आप बेबस हैं?
- कमिश्नर, जामोद: केवल जाँच का आश्वासन देना बंद करें। इस नासूर को जड़ से कौन काटेगा?
निष्कर्ष: यह हत्या है, हादसा नहीं!
रीवा के स्वास्थ्य मंत्री से कमियाँ कौन छुपाई? संजय गाँधी अस्पताल और गांधी स्मृति चिकित्सालय का प्रबंधन, डीन, और ठेकेदार कंपनी सब इस सामूहिक लापरवाही के जिम्मेदार हैं। नवजात की मौत, अमानवीयता और वसूली रैकेट—सब इस बात का सबूत हैं कि रीवा का स्वास्थ्य सिस्टम पूरी तरह से फेल हो चुका है।
सवाल यह है: कौन है इस मासूम की मौत का जिम्मेदार? क्या अस्पताल प्रबंधन, क्या ठेकेदार कंपनी 'हाइट्स', या वह पूरा सिस्टम जो संवेदनहीनता के 'नासूर' को पाल रहा है? यह घटना एक चेतावनी है कि अगर तत्काल और कठोर कार्रवाई नहीं की गई तो ऐसी अमानवीयता की पुनरावृत्ति क्या फिर से होगी?