सीधी घटना : यात्रियों से मुनाफा कमाने के चक्कर में लोक परिवहन व्यवस्था हुई ठप : ऑपरेटर की मनमानी से आम आदमी को परेशानी

 

सीधी घटना : यात्रियों से मुनाफा कमाने के चक्कर में लोक परिवहन व्यवस्था हुई ठप : ऑपरेटर की मनमानी से आम आदमी को परेशानी

भोपाल । प्रदेश में राज्य परिवहन निगम को सोलह साल पहले बंद किए जाने का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ा रहा है। जहां लोगों को परिवहन की सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, वहीं सड़क दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं। चाहे बड़वानी में बस जलाने की घटना हो या फिर पन्ना का हादसा, निजी बस ऑपरेटरों की मनमानी यात्रियों पर भारी पड़ी है।

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सीधी बस हादसे में भी यह बात सामने आई कि बस में क्षमता से अधिक यात्री सवार थे। लोक परिवहन व्यवस्था ठप होने से यह क्षेत्र सिर्फ मुनाफा कमाने का जरिया बन गया है। इसके लिए यात्रियों की सुरक्षा को अनदेखा किया जा रहा है। वर्ष 2005 तक मध्य प्रदेश सड़क परिवहन निगम बसों का संचालन करता था। प्रदेश के भीतर और पड़ोसी राज्यों में आवागमन का यह सबसे बड़ा माध्यम था।

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सरकारी व्यवस्था होने की वजह से जांच भी होती थी और नियम-कायदों का पालन भी कराया जाता था। सड़क परिवहन कर्मचारी-अधिकारी उत्थान समिति के प्रमुख श्याम सुंदर शर्मा का कहना है कि निगम की बस के चालक और परिचालक सरकारी व्यवस्था में थे, इसलिए मुनाफे के फेर में नहीं रहते थे।

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नियम से बसें चलती थीं और निर्धारित रूट का पालन किया जाता था। सवारी भी हिसाब से ही बैठाई जाती थी। 2005 में परिवहन निगम को बंद करने का फैसला किया गया और 2010 में पूरी तरह बंद कर दिया। इसके बाद पूरी व्यवस्था निजी हाथों में आ गई। मुनाफा कमाने के चक्कर में नियमों को ताक पर रखकर बसों का संचालन किया जाने लगा। इससे हादसे भी बढ़े और यात्रियों को असुविधा का भी सामना करना पड़ा।

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प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गई कि बड़वानी में एक बस को आग लगा दी गई। इसमें 11 यात्रियों की मौत हो गई। पन्ना में एक पुलिया से टकराकर बस 15 फीट नीचे गिरी। आग लगने से 40 यात्रियों की मौत हो गई। इसी तरह प्रदेश में अन्य सड़क हादसे भी हुए हैं। ताजा मामला सीधी का है, जहां बस में क्षमता से अधिक यात्री बैठाए गए थे।

फिर से बनाया जाए निगम

शर्मा ने बताया कि देश में परिवहन निगम की व्यवस्था किसी न किसी रूप में सभी राज्यों में है। विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ ने निगम का गठन नहीं किया और मध्य प्रदेश में इसे बंद कर दिया गया। अब तो इसकी संपत्ति को बेचने का काम चल रहा है। मुरैना के बाद बीनागंज की संपत्ति बेचने का निर्णय सरकार ने लिया है। लोक परिवहन के लिए कुछ प्रयोग भी किए पर वे उम्मीद पर खरे नहीं उतरे।


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