REWA : लठ्ठ का जवाब फूल से ,बोली रिमहि जनता हमारी परंपरा में संस्कार हैं ,तुम भले ही लट्ठे बरसाओ लेकिन हम विंध्यवासी फूल बरसाएंगे
(ग्राउंड एमपी 17 ऋतुराज द्विवेदी की रिपोर्ट ) रीवा न्यूज. विंध्य पर्वतमाला के ऊपर खबर पहाड़ियों पर बसे रीवा जिला के लोगों की एक अलग ही तासीर है अपने व्यंजन व मीठी बघेली बोली के साथ ही अपने संस्कार के साथ जीने वाली रिमहि जनता इन दिनों जिले के पुलिस से यह कहती नजर आ रही है कि हमारी सभ्यता एवं संस्कार कमजोरी ना समझी जाए जनता यह बोल रही है भले ही तुम चाहे जितना हमारे किसान मजदूर भी हो रोजमर्रा का काम करके जीवन यापन करने वाले लोगों पर लठ्ठ बरसाओ लेकिन हम फूल बरसा कर आपका स्वागत करेंगे।
इशारा साफ है की अब लोग पुलिस द्वारा भाजी जा रही लाठी का जवाब देना शुरू कर दिया है समय रहते अगर इन भावनाओं को नहीं समझा गया तो इसके परिणाम हाल में ही संपन्न होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भी देखने को मिल सकता है। रीवा का अपना एक अलग इतिहास व तासीर भी है यहां मिलने वाला सुंदरजा जितनी मिठास है। उतनी ही कला भी यहां पाई जाती है की कठोरता के लिए मशहूर सुपारी को छीलकर खिलौने बना दिए जाते हैं अब तय करना है यहां के हुक्मरानों को कि वह कलाकार के हाथों को परखना चाहते हैं या फिर विंध्य के सीधे पन की तासीर को।
उक्त लाइनों को पढ़ने के बाद आप सोच रहे होंगे कि इतिहास व वर्तमान परिस्थितियों का किया लेना लगना लेकिन हम आपको बताते चलें की हाल में ही जिले के पुलिस विभाग के आला अफसर जहां एक तरफ किसानों की सब्जियों को जहरीला बता कर उनकी आत्मा को ठेस पहुंचा रहे हैं वहीं दूसरी ओर उनके द्वारा कराई जा रही मारपीट की निंदा रीवा सहित पूरे देश में हो रही है अब तुम कप्तान के साथ उनके थाना प्रभारी लठैत की भूमिका में आ गए। हो भी क्यों ना जैसी राजा वैसी प्रजा।
क्या है मामला
विगत 5 मई से अपनी बातों एवं पुलिस के शारीरिक श्रम को लेकर सुर्खियों में आए पुलिस कप्तान लगातार दमनकारी नीति चला रहे हैं तो दूसरी ओर रीवा जिले के कलेक्टर डॉक्टर इलैया राजा टी गरीबों के जख्मों पर मरहम लगाने का काम कर रहे हैं बात तो यही हुई एक जख्म दे रहा है दूसरा मल हम लगा रहा है लेकिन इन सब बातों के बीच एक ही प्रश्न बार बार विंध्य जनता के सामने आकर खड़ा हो रहा है कि आखिर किसान का सम्मान है भी या नहीं। सफेद पोशों की भी जिम्मेदारी बराबरी की बनती है। अब तो लोग कहने लगे हैं कि कोई तो होगा जो न्याय दिलाएगा। इन दिनों सोशल मीडिया में कवि डॉ हरिओम पवार की उस लाइन को टैग किया जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा है कि मन करता है फूल चढ़ा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर बस नारों में गाते रहिए कश्मीर हमारा है.....
रिमहि जनता की गांधी गिरी
यह तो रिमहि जनता की गांधीगिरी ही है जोकि एक तरफ पुलिस कप्तान अपने थाना रूपी लठयेतो से किसानों व मजदूरों कहर बरसा रहे हैं तो दूसरी तरफ जानता फूल बरसा रही है लेकिन कौन समझाए जिस विभाग का पुलिस मैन्युअल ही अंग्रेजों द्वारा बनाया गया है वह अपना मूलस्वरूप कैसे बदल दे। जिन के सम्मान में जन गण मन अधिनायक जय हो गाया जाता रहा हो वह वंदे मातरम कैसे गाने दे।
चलते चलते बस इतना
जब भी कोई बड़ी वारदात होती है हर बार संयम का परिचय जिले की जनता को ही देना पड़ता है जिम्मेदारों को भी यह सोचना चाहिए ज्यादा संयम भविष्य में कायरता ही कहलाता है यह लाइनें भी डॉक्टर हरिओम पवार ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के मंच की उपस्थिति पर भी सुनाई थी समय था 1999, घटना भी कारगिल युद्ध की थी , जिस पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का बयान आया था कि मेरे सब्र का प्याला टूटने वाला है समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया और जनता ने संयम खोया स्थिति विकट नहीं विकराल होगी। आगे आप देखें।
किसी समय विधायक ने लिखा था पत्र
यह बात है पिछले विधानसभा सत्र की यानी 2018 की पहले की रीवा जिले की आठ विधानसभा में से एक विधानसभा के विधायक प्रदेश के मुखिया को संबोधित एक पत्र लिखा था जिसमें पत्र का अंत इन लाइनों से हुआ था कि मरी खाल की सांस से लौह भस्म में हो जाए.....