MP : बड़ी लापरवाही : भोपाल के एम्स, हमीदिया समेत जेपी जैसे बड़े अस्पतालों में इंफेक्शन कंट्रोल गाइडलाइन की अनदेखी; वेंटिलेटर पर भर्ती 1000 में से 775 लोग गंवा चुके जान

 

MP : बड़ी लापरवाही : भोपाल के एम्स, हमीदिया समेत जेपी जैसे बड़े अस्पतालों में इंफेक्शन कंट्रोल गाइडलाइन की अनदेखी; वेंटिलेटर पर भर्ती 1000 में से 775 लोग गंवा चुके जान

भोपाल। जो वेंटिलेटर मरीजों की अंतिम सांसें बचाने के लिए हैं, उन्हीं पर अब सबसे ज्यादा मौतें हो रही हैं। भोपाल में कोरोना की पहली और दूसरी लहर में करीब 3 हजार मरीजों काे एनआईवी और मैकेनिकल वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन मैकेनिकल वेंटिलेटर पर शिफ्ट हुए एक हजार मरीजों में से 775 की मौत हो गई। ये मौतें भी एक घंटे से लेकर 26 दिन तक के इलाज के दौरान हुईं। 331 कोविड मृतक ऐसे हैं, जिनकी मौत मैकेनिकल वेंटिलेटर पर शिफ्ट होने के 24 घंटे में हो गई।

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यह जानकारी पॉजिटिव पेशेंट लाइन स्टेटस रिपोर्ट की डेथशीट में दी गई है। इनमें 846 मृतकों की कोविड हिस्ट्री है। बता दें कि एनआईवी वेंटिलेटर मास्क के जरिए प्रेशर से ऑक्सीजन को सीधे फेफड़ों तक पहुंचाने वाली मशीन है, जबकि मैकेनिकल वेंटिलेटर में ट्यूब को मुंह के रास्ते सीधे गले से फेफड़ों तक पहुंचाकर हाई प्रेशर से ऑक्सीजन देते हैं।

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ये तो खबर का एक पार्ट है। भास्कर ने इसके आगे पड़ताल की। पता लगाया कि वेंटिलेटर पर ज्यादा मौतें क्यों हुईं। अस्पतालों के इंफेक्शन कंट्रोल प्लान की पड़ताल में पता चला कि सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के आईसीयू, एचडीयू, ऑक्सीजन सपोर्टिड बेड वार्ड में इंफेक्शन कंट्रोल गाइडलाइन का पालन ही नहीं हो रहा। वेंटिलेटर की ईटी पाइप, ऑक्सीजन प्वाइंटर पर लगे ह्यूमीडिफायर हर 6 घंटे में साफ करना चाहिए, लेकिन सफाई दिन में एक बार हो रही है।

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छोटे नर्सिंग होम्स तो छोड़िए, एम्स, हमीदिया, जेपी जैसे बड़े अस्पतालों में भी यही स्थिति है। इसे जांचने वाली इंफेक्शन कंट्रोल कमेटी ने 4 महीने से कोविड वाॅर्ड, नॉन कोविड वॉर्ड में वायरल, बैक्टीरियल इंफेक्शन की जांच नहीं की। वेंटिलेटर की साफ-सफाई नहीं होने से मरीजों को ज्यादा दिन अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है और उन्हें दूसरी संक्रामक बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है। वेंटिलेटर पर कोविड मरीजों की मौत के पीछे सबसे बड़ी वजह यही है।

मरीज बोला- 5 दिन से नहीं बदला ह्यूमीडिफायर का पानी

जेपी अस्पताल में ऑपरेशन थिएटर के सामने बने नॉन कोविड वार्ड के हर बेड पर सेंट्रल प्लांट से ऑक्सीजन सप्लाई हो रही है। हर बेड पर लगे ऑक्सीजन प्वाइंट के ह्यूमीडिफायर में पानी भरा है, जो मटमैला दिख रहा है। वार्ड में भर्ती एक मरीज ने बताया कि ये पानी 5 दिन से नहीं बदला है। ह्यूमीडिफाइयर के ऑक्सीजन आउट प्वाइंट से मास्क के लिए प्लास्टिक पाइप लगा है, लेकिन इस पर भी गंदा पानी जमा हुआ है।

जगह : हमीदिया हॉस्पिटल, समय : 3:15 बजे

ह्यूमीडिफायर में तेज बुलबुले, पानी भी पीला पड़ गया

यहां इमरजेंसी यूनिट के पास बने आईसीयू में 5 मरीज ऑक्सीजन सपाेर्ट पर हैं। सभी के पलंग के ऊपर बने ऑक्सीजन प्वाइंट के ह्यूमीडिफायर में प्रेशर ज्यादा हाेने से तेज बुलबुले उठ रहे हैं। इससे ह्यूमीडिफायर का रंग पीला हाे गया है। जबकि इसे साफ होना चाहिए था। यहां भर्ती मरीज ने बताया कि चार दिन से ह्यूमीडिफायर की सफाई नहीं हुई, जबकि तीन दिन से वेंटिलेटर ट्यूब साफ नहीं हुआ।

शिफ्टिंग के समय करते हैं सफाई

मरीज काे जब मैकेनिकल वेंटिलेटर पर शिफ्ट करते हैं, तब ईटी ट्यूब साफ करके ही लगाते हैं। ह्यूमीडिफायर का पानी जरूरत पड़ने पर बदला जाता है।

डाॅ. राकेश श्रीवास्तव, अधीक्षक, जेपी

गाइडलाइन का पालन कर रहे हैं

एम्स के आईसीयू, काेविड वार्ड की सफाई गाइडलाइन से होती है। ह्यूमीडिफायर में आरओ वॉटर यूज कर रहे हैं। स्टेराॅइल व डिस्ट्रिल वाॅटर ही हो, ये जरूरी नहीं।

डाॅ. मनीषा श्रीवास्तव, एमएस, एम्स

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