15 दिन के संघर्ष में वापस आई खुशियां : 70 वर्षीय मां को फोन पर हिम्मत देकर मौत के मुंह से निकाल लाईं बेटियां

 
15 दिन के संघर्ष में वापस आई खुशियां : 70 वर्षीय मां को फोन पर हिम्मत देकर मौत के मुंह से निकाल लाईं बेटियां

इंदौर। बेटा मुझे यहां से निकाल ले। यहां माहौल ठीक नहीं है। मैं मर जाऊंगी। यहां लोग मर रहे हैं। मैं भी नहीं बचूंगी। दिल को झकझोर देने वाले ये शब्द प्रदेश के हर शासकीय व निजी अस्पतालों के कोविड वार्ड और सेंटर्स से बाहर खड़े परिजन को सुनने मिल रहे हैं। ऑक्सीजन की कमी, इंजेक्शन नहीं मिलना और उपचार में देरी सभी का तनाव बढ़ा रहे हैं। कोरोना से लड़ने के बजाय मरीज खौफ से डिप्रेशन में जा रहे हैं।

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नकारात्मक मानसिकता के कारण भी कई लोग कम इंफेक्शन के बाद भी जान गंवा रहे हैं। हालात ये हैं कि कोरोना संक्रमण को लेकर बात भी होती है तो सुनने वाला या तो गले में खराश महसूस करता है या घर जाकर सीधे ऑक्सीजन लेवल चेक करता है। ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल अप और डाउन दिखा दिया तो पूरा परिवार डिप्रेशन में चला जाता है। अधिकांश लोग नकारात्मक सोच व डिप्रेशन से उभर नहीं पा रहे हैं। जरूरी है इन उदाहरणों से सीख लें तो शायद आप भी अपने परिजन को बचा सकें।

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न्यूरो साइकायट्रिस्ट डॉक्टर विनीत अग्रवाल की मानें तो यदि कोई पॉजिटिव है तो उससे कोरोना संबंधी चर्चा ही ना करें, क्योंकि डर हमारा इम्युनिटी लेवल कम कर देता है। इसलिए इसकी निगेटिविटी से दूर रहें। बीमारी को दिमाग में बैठाने के बजाय अपना ध्यान डायवर्ट कर संगीत सुनें, भजन गाएं। परिजन से बात करें। बच्चों से गेम्स खेलें, पहेलियां पूछें ये आपको राहत देगा।

अस्पताल का माहौल देखकर मां कहने लगी थीं कि अब तो मैं नहीं बचूंगी

राजेंद्र नगर निवासी 70 वर्षीय बृजलता ठक्कर 7 अप्रैल को पति सहित कोरोना पॉजिटिव हुईं। दोनों को अस्पताल ले गए तो वहां की स्थिति देख उनके पति हिम्मत हार गए और उन्होंने दम तोड़ दिया। मां बृजलता भी अस्पताल का माहौल व लगातार दम तोड़ रहे आसपास के मरीजों को देख इतनी घबरा गईं कि बेटियों से कहने लगीं- मैं नहीं बचूंगी। इस पर भोपाल में रह रही बड़ी बेटी प्रिया ने संपर्क किया।

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फोन पर चार-चार घंटे मां को हिम्मत देकर उनकी नकारात्मक सोच को बदला। बाद में बहन पायल व पूजा को भी फोन पर मां के ठीक होने, गिरते ऑक्सीजन लेवल को झूठ बोलकर बढ़ा बताने और अन्य कई तरह के प्रयास कर उनकी नकारात्मक सोच को बदल दिया। 15 दिन संघर्ष के बाद आज उनकी मां पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौट गईं।

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ऐसे बदला माहौल; 87 पल्स आती तो हम 92-94 बताते। ऐसा करने पर उनकी सोच में बदलाव आने लगा : बेटी प्रिया ने बताया मां की तबीयत को लेकर डॉक्टरों ने आश्वस्त किया था वे ठीक हो जाएंगी, बस नकारात्मक न सोचें, क्योंकि उसी कारण उनका बीपी, शुगर और तनाव में ऑक्सीजन लेवल अप-डाउन हो रहा है। मां बार-बार मशीन लगाकर ऑक्सीजन लेवल चेक करती हैं। कम होने पर वह डिप्रेशन में जाती हैं. 

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हमने उनके पास से मशीन हटा दी। नर्स से निवेदन किया कि वे सही लेवल न बताएं। हम नर्स से लेवल पूछते। 87 पल्स आती तो हम 92-94 बताते। ऐसा करने पर उनकी सोच में बदलाव आने लगा। कई बार मां फोन करतीं। कहती कोई डॉक्टर मेरे पास नहीं है। मैं तो नहीं बचूंगी। इस पर हमने उन्हें समझाया कि डॉक्टर क्रिटिकल मरीज की देखरेख में लगे हैं। आप स्वस्थ हो रही हैं, इसलिए कम आते हैं। उन्हें 55 प्रतिशत से ज्यादा इंफेक्शन था। वह भी रिकवर हो गया।

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