MP : शिवराज सरकार का बड़ा फैसला : नहीं होंगी एमपी 12वीं बोर्ड की परीक्षा; कहा, बच्चों पर परीक्षा का मानसिक बोझ डालना उचित नहीं

 

MP : शिवराज सरकार का बड़ा फैसला : नहीं होंगी एमपी 12वीं बोर्ड की परीक्षा; कहा, बच्चों पर परीक्षा का मानसिक बोझ डालना उचित नहीं

केंद्र सरकार द्वारा सीबीएसई 12वीं की परीक्षा कैंसिल होने के बाद अब मध्य प्रदेश में 12वीं बोर्ड की परीक्षा रद्द कर दी गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार की बैठक के बाद बुधवार को यह निर्णय लिया गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बच्चों पर परीक्षा का मानसिक बोझ डालना उचित नहीं है। उन्होंने कहा है कि रिजल्ट आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर बनेगा या अन्य कोई तरीका है, यह तय करने के लिए मंत्री समूह गठित किया गया है। वे एक्सपर्ट से राय लेकर रिपोर्ट देंगे।

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मध्य प्रदेश में एमपी बोर्ड 10वीं की परीक्षा पहले ही रद्द कर दी गई थी। केंद्र द्वारा सीबीएसई 12वीं की परीक्षा रद्द करने के दूसरे दिन बैठक करके मप्र बोर्ड भी परीक्षा को रद्द किया गया है।

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सरकार ने यह तैयारी की थी, सब धरी रह गई

पहले यह तय किया था कि सामान्य परिस्थिति होने पर ही परीक्षा कराएंगे। 12वीं की परीक्षा काे लेकर 5 जून के बाद एक बैठक होगी, जिसमें कोरोना संक्रमण की समीक्षा करेंगे। स्टूडेंट्स को तैयारी का मौका देने के लिए परीक्षा की घोषणा 20 दिन पहले की जाएगी ताकि हड़बड़ी ना मचे। सभी पेपर्स 15 दिन की समयावधि में ही करा लिए जाएंगे, यानी लंबा नहीं खींचेंगे। परीक्षाएं कराने और रिजल्ट घोषित करने में लगभग 80 दिन लगेंगे। अब ऐसा कुछ नहीं होगा।

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पहले परीक्षा कराने पर सहमत थी शिवराज सरकार

केंद्र सरकार ने 12वीं बोर्ड परीक्षा के लिए दो विकल्पों पर राय मांगी थी। इसके लिए केंद्र को दो विकल्प दिए गए थे। पहला- मुख्य विषयों की परीक्षा ले ली जाए। यह पेपर 3 घंटे का होगा। इन विषयों में मिले अंक और शेष विषयों के छह माही परीक्षा में मिले अंकों के आधार पर रिजल्ट घोषित किया जाए। दूसरा- सभी विषयों के पेपर हों जो डेढ़-डेढ़ घंटे के होंगे। मप्र सरकार ने पहले विकल्प पर जाने की तैयारी कर ली थी। यानी मुख्य विषयों की परीक्षा पर सहमत थी।

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स्कूल संचालकों को आपत्ति, कहा- चुनावी रैलियां हो सकती हैं तो परीक्षा क्यों नहीं

भोपाल के प्रज्ञा विद्यालय हायर सेकेंडरी स्कूल संचालक नरेन्द्र राठौर ने कहा स्टूडेंट्स को बिना परीक्षा आगे बढ़ाएंगे तो करियर पर धब्बा लग जाएगा। सरकार को एग्जाम कराना चाहिए था। गैस त्रासदी के समय भोपाल में 1984 में भी एक बार ऐसी ही स्थिति बनी थी, उस जनरल प्रमोशन को हजारों ने भुगता है। जब सब अनलॉक हो रहा है तो परीक्षा क्यों नहीं हो सकती थी। सरकार ने पहले ही परीक्षाएं ना कराने का मन बना लिया था।

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खंडवा के सेंट जॉन्स हासे स्कूल के संचालक ​​​​​​अमरीशसिंह सिकरवार ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा लिए गए फैसले से संतुष्ट नहीं है। एक्जाम निरस्त करना बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ है। यह जीवन का टर्निंग पाइंट होता है। 12वीं के रिजल्ट के आधार पर बड़े कॉलेजों में एडमिशन के लिए एंट्रेस एक्जाम होते हैं। सरकार संक्रमण को देखते हुए बच्चों के स्वास्थ्य का हवाला दे रही है तो हमारा सवाल है कि जब चुनाव आयोग इलेक्शन करवा सकता है, राजनीतिक पार्टियां बड़ी-बड़ी रैलियां कर सकती है तो एक्जाम क्यों नहीं। जून-जुलाई में शार्ट एक्जाम ली जा सकती थी।

स्कूल से एग्जाम तक टोटल रीकॉल

नवंबर 2020 में 9वीं से 12वीं तक के स्कूल को सशर्त खुलवाया गया था। - स्टूडेंट्स को हफ्ते में एक-दो दिन के लिए अभिभावकों की मंजूरी के साथ स्कूल आने की इजाजत दी गई थी। - मार्च में बढ़ते हुए कोरोना के मामलों को देखते हुए अचानक फैसला कर इन्हें भी बंद कराना पड़ा था। - कक्षा पहली से आठवीं तक के स्कूल खुलने को लेकर शिक्षा मंत्री ने 10 मार्च 2021 को आदेश दिए थे कि 1अप्रैल 2021 से स्कूल खोले जाएंगे। - 2 जून को एमपी बोर्ड की 12वीं की परीक्षा रद्द करने का निर्णय लिया गया।

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