MP : आरक्षण को लेकर राजनीति गर्मायी : भाजपा-कांग्रेस को दिख रहा चुनावी फायदा, MP के OBC आरक्षण का UP में असर
मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण को लेकर राजनीति चरम पर है। प्रदेश की आबादी में 50% से ज्यादा हिस्सेदारी OBC समुदाय की है। इस समुदाय को राज्य में अभी 14% आरक्षण मिलता है, जो मंडल कमीशन की सिफारिशों से भी कम है। अब दोनों ही दल चाहते हैं कि इस समुदाय को मिलने वाले आरक्षण की सीमा 27% हो जाए, लेकिन श्रेय खुद लेना चाहती हैं। फौरी तौर पर इसे आने वाले समय में प्रदेश में होने वाले विधानसभा के तीन उपचुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन असलियत में यह 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी से जुड़ा मामला भी है।
मामले को सबसे पहले कांग्रेस ने पकड़ा था। 2018 में कमलनाथ के नेतृत्व में बनी कांग्रेस की सरकार ने 2019 में कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर राज्य में OBC का आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने का फैसला किया था। बाद में राज्य विधानसभा ने इसे मंजूरी भी दे दी थी। मामला आगे बढ़ता, उससे पहले ही मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा में बैठने वाले कुछ छात्रों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। कोर्ट ने स्टे दे दिया। तब से ही मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
हाईकोर्ट से फैसला कब आएगा और फैसला आने के बाद क्या वह सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक भी जाएगा? यह सब भविष्य की बात है, लेकिन फिलहाल प्रदेश में दोनों ही दलों खासकर कांग्रेस को मामले पर राजनीति करने का अच्छा अवसर मिल गया है। यही वजह है, कांगेस ने विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान इस मुद्दे को फिर से उठाकर सदन में हंगामा किया। इस दौरान कमलनाथ-शिवराज के बीच तीखी नोकझोंक हुई।
कांग्रेस के हंगामे को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पाखंड कहा, तो पूर्व सीएम कमलनाथ ने भाजपा पर चालाकी की राजनीति का आरोप मढ़ दिया। भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान खुद OBC समुदाय से हैं। पिछले 15 सालों में बीच के 15 महीने छोड़कर प्रदेश में भाजपा की ही सरकार रही है। शिवराज ही मुख्यमंत्री रहे हैं। बावजूद OBC आरक्षण का मुद्दा बैकग्राउंड में ही रहा है।
OBC आरक्षण का दूसरा एंगल राज्य सरकार द्वारा मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में दायर हलफनामे से जुड़ा है। हाईकोर्ट पिछले करीब 2 साल से राज्य में OBC आरक्षण की सीमा बढ़ाने के मामले की सुनवाई कर रहा है। सरकार ने हाल में कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया, उसमें कहा गया है कि मध्यप्रदेश में OBC की आबादी 50.09% है। OBC की आबादी के ये जिलेवार आंकड़े आधिकारिक रूप से पहली बार ऑन रिकॉर्ड सामने लाए गए हैं। जैसे ही, इस हलफनामे की बात बाहर आई, तो कांग्रेस को इस मामले को हवा देने का मौका मिल गया।
सरकार ने बड़े वकीलों को किया तैयार
इस मामले में 1 सितंबर को हाईकोर्ट अंतिम सुनाई करेगा। इससे पहले शिवराज सरकार सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता समेत अन्य बड़े वकीलों से पैरवी कराने की तैयारी कर रही है। दूसरी तरफ पिछड़ा वर्ग तक यह संदेश पहुंचाने की कवायद भी कर रही है, इस समुदाय की हितैषी सिर्फ भाजपा है। इसे लेकर मुख्यमंत्री इस माह 3 बैठकें कर चुके हैं।
एडवोकेट जनरल ने सरकार को दिया था अभिमत
सूत्रों का कहना है, एडवोकेट जनरल पुरुषेन्द्र कौरव ने सरकारी नियुक्तियों और प्रवेश परीक्षाओं में OBC आरक्षण को लेकर समान्य प्रशासन विभाग को अभिमत दिया था। इसमें कहा गया, सरकारी नियुक्तियों और प्रवेश परीक्षाओं में OBC को 27% आरक्षण दिया जा सकता है, क्योंकि हाईकोर्ट ने सिर्फ 6 प्रकरणों में ही रोक लगाई है। अन्य मामले में सरकार स्वतंत्र हैं।
उन्होंने कहा कि सरकारी नियुक्तियों और प्रवेश परीक्षाओं में OBC को बढ़ा हुआ आरक्षण देने पर रोक नहीं है। हाईकोर्ट ने सिर्फ पीजी, NEET 2019-20, MPPSC, मेडिकल अधिकारी भर्ती और शिक्षक भर्ती में रोक लगाई है। इसके अलावा, सभी भर्तियों और परीक्षाओं में 27% OBC आरक्षण दिया जा सकता है।
एमपी के ओबीसी आरक्षण का यूपी में असर
राजनीति के जानकार मानते हैं, OBC आरक्षण का मुद्दा कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के लिए मायने रखता है, क्योंकि अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। मध्यप्रदेश की जो सीमा उत्तर प्रदेश से लगती है, वहां OBC की जनसंख्या काफी है।
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चंबल से लेकर बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र तक फैली इस पट्टी में 13 जिले मुरैना, भिंड, दतिया, शिवपुरी, अशोकनगर, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, पन्ना, सतना, रीवा और सिंगरौली आते हैं। इन जिलों के लोगों का न सिर्फ उत्तर प्रदेश में लगातार आना जाना होता है, बल्कि वहां उनके पारिवारिक रिश्ते वाले भी लोग हैं।
ऐसे में चुनाव के समय इन लोगों की भूमिका अहम हो जाती है। ऐसे में बीजेपी नहीं चाहेगी, उत्तर प्रदेश जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील और अहम राज्य के चुनाव के वक्त वह ऐसा कोई जोखिम मोल ले, जिससे उसे चुनाव में खमियाजा भुगतना पड़े।