MP : पिता की कोरोना से मौत / पंक्चर मैकेनिक विजय ने तीन लाख जेब से खर्च कर राजधानी के 5 हजार घरों को किया सैनिटाइज, बने सैनिटाइजेशन BRAND AMBASSADOR

 

MP : पिता की कोरोना से मौत / पंक्चर मैकेनिक विजय ने तीन लाख जेब से खर्च कर राजधानी के 5 हजार घरों को किया सैनिटाइज, बने सैनिटाइजेशन BRAND AMBASSADOR

भोपाल। कोरोना काल के दौरान कई लोग मददगार तौर पर उभरे हैं। भोपाल के 34 वर्षीय विजय अय्यर भी उनमें से एक हैं। टीला जमालपुरा क्षेत्र में रहने वाले विजय को शहर में ‘सैनिटाइजेशन मैन’ के नाम से पुकारा जाने लगा है। बीते एक साल दो महीने में उन्होंने शहर की 400 कॉलोनी के 5 हजार से अधिक कोविड मरीजों के घरों का सैनिटाइजेशन किया है।

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मूलरूप से पंक्चर सुधारने का काम करने वाले विजय के इस समर्पण को देखते हुए डिटॉल कंपनी ने उन्हें मप्र का ब्रांड एंबेसडर बनाते हुए अवर प्रोटेक्टर का टाइटल दिया है। खुद विजय, मां और पिता कोरोना पॉजिटिव हुए। पिता की कोरोना से मौत हो गई। इसके बाद भी विजय पूरे जज्बे के साथ कोरोना मुक्त भारत अभियान को अभी भी चला रहे हैं। सैनिटाइजेशन करते हुए उन्होंने बीते साल ढाई लाख और इस वर्ष अब तक 65 हजार रुपए खर्च किए।

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अभियान के दौरान ही विजय अगस्त 2020 में संक्रमित हुए। कुछ दिनों में वे रिकवर हो गए। फिर माता-पिता संक्रमित हुए। पिता को बेड दिलाने के लिए अस्पतालों में भटकते रहे। सितंबर में पिता लक्ष्मी नारायण की मौत हो गई थी। वहीं, मां कमला भी सीवियर पेशेंट थीं, लेकिन वो रिकवर हो गईं।

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पिता ने कहा था- डर के मरने से अच्छा है, लड़कर मरो

विजय बताते हैं कि उनके पिता रिटायर्ड फौजी थे। बचपन से ही उनका भी सपना सेना में जाने का था, लेकिन पैर में एल्कलाइन फ्रैक्चर था, इसलिए सेना में शामिल होने का मौका नहीं मिला। दादा, पापा और चाचा सेना में रहे हैं। इसलिए देश सेवा करने का जज्बा ही मुझे जनसेवा में खींच लाया। पिताजी हमेशा कहते थे कि डर के मरने से अच्छा है लड़कर मरो… बस उनकी यही लाइन मेरा हौसला बनाए रखती है। यही वजह है कि इतना ज्यादा संक्रमण फैलने के बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी और सैनिटाइजेशन का काम जारी रखा है।

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सोशल मीडिया से भी जुड़े रहे, कई घरों में मरीजों को भोजन और अन्य सामान पहुंचाया

विजय बताते है कि शहर बड़ा होने से हर दिन एक किनारे से दूसरे किनारे तक पहुंचना मुश्किल होता था। इसलिए मैंने शहर को 6 जोन कोलार, बीएचईएल, बैरागढ़, ओल्ड भोपाल, करोंद और अरेरा कॉलोनी में बांटा। हर दिन एक अलग जोन में सैनिटाइजेशन के लिए गया। लोगों को जब मेरे इस काम के बारे में पता चला तो वे खुद सोशल मीडिया के माध्यम से मेरा नंबर खोजकर फोन करने लगे। इतना ही नहीं, जरूरत पड़ने पर कई घरों में मैंने कोविड मरीजों के पास खाना और जरूरत का अन्य सामान भी पहुंचाया।

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